देखिए बलौदाबाजार विधानसभा के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड और जनता का मूड मीटर
देखिए बलौदाबाजार विधानसभा के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड और जनता का मूड मीटर
बलौदाबाजार। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज हम बात करेंगे छत्तीसगढ़ की बलौदाबाजार विधानसभा सीट की। राजधानी रायपुर से लगे इस विधानसभा सीट पर वैसे तो कांग्रेस की मजबूत पकड़ रही है और वर्तमान में भी कांग्रेस के जनकराम वर्मा यहां से विधायक हैं। लेकिन 2012 में बलौदाबाजार के नए जिला बनने के बाद सीट पर सियासी समीकरण काफी बदल गया है। आगामी चुनाव में भी यहां दिलचस्प भिडंत होनी तय है। वैसे मुद्दों की बात की जाए तो बलौदाबाजार विधानसभा में विकास की रफ्तार धीमी नजर आती है और आने वाला चुनाव पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे बुनियादी मुद्दों पर ही लड़ा जाएगा।
2012 में जब बलौदा बाजार अलग जिला बना तो यहां के बाशिंदो को लगा कि उनकी सारी समस्याओँ का अंत हो गया। अब उन्हें किसी भी काम के लिए जिले से बाहर जाने की जरूरत नहीं लेकिन अलग जिला बनने के बाद बलौदाबाजार विधानसभा क्षेत्र के लोगों की जिंदगी में कितना बदलाव आया। आइए उन्हीं से सुन लेते हैं।
चूना पत्थर से भरी बलौदाबाजार की जमीन में सीमेंट फैक्ट्रियां लगाकर उद्योगपति तो मालामाल हो रहे हैं। लेकिन जिनके पास इन जमीनों का मालिकाना हक है, वो फैक्ट्रियों में मजदूर का काम रहे हैं और उनके बच्चे बरोजगारी की मार झेल रहे हैं। दरअसल इस इलाके में 6 से ज्यादा बड़ी सीमेंट फैक्ट्रियां हैं और सीएसआर के रूप में इन फैक्ट्रियों को हर साल करोड़ों रुपए गांव के विकास में खर्च करना होता है। लेकिन विकास के नाम पर गांववालों को केवल लॉलीपाप पकड़ाया जा रहा है..जिसे लेकर ग्रामीणों में काफी आक्रोश है।
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बलौदाबाजार में स्वास्थ्य सुविधाओँ का भी बुरा हाल है। यहां 100 बिस्तरों का खूबसूरत हॉस्पिटल तो है लेकिन न तो वहां डॉक्टर हैं न ही बुनियादी सुविधाएं। मामूली बीमारी और छोटे–मोटे एक्सीडेंट होने पर भी मरीजों को रायपुर रिफर करना पड़ता है। वहीं बदहाल सड़क और पानी का मुद्दा भी आगामी चुनाव में गूंजना तय है।
बलौदाबाजार विधानसभा क्षेत्र के सियासी मुद्दों में तिल्दा नेवरा में सालों पुरानी रेलवे ओवरब्रिज भी शामिल है। इसका निमार्ण कार्य पिछले 6 सालों से जारी है जिसका खामियाजा यहां के लोग भुगत रहे हैं। इसके अलावा बाईपास रोड़ और तिल्दा को अनुविभाग का दर्जा दिए जाने की मांग भी हर चुनाव में उठती है लेकिन और चुनाव खत्म होने के बाद ठंडे बस्ते में चली जाती है।
कुल मिलाकर बलौदाबाजार में समस्याओं की कोई कमी नहीं है और चुनाव के समय सियासतदान इन समस्याओं को प्राथमिकता के साथ पूरा करने का वादा तो करते हैं। लेकिन चुनाव खत्म होते ही एक दूसरे को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कोसते है। ऐसे में इस बार क्षेत्र की जनता इन नेताओँ से पुराने वादों का हिसाब जरूर मांगेगी।
बलौदाबाजार के सियासी इतिहास की बात की जाए तो अपने अस्तित्व में आने के बाद से यहां 5 बार कांग्रेस के विधायक चुने गए। एक बार जनता दल और दो बार बीजेपी के प्रत्याशियों को मौका मिला है। 2 लाख 13 हजार वोटर वाले इस विधानसभा में मतदाताओं ने पार्टी की बजाए ज्यादातर स्थानीय प्रत्याशियों पर ही लोगों ने भरोसा जताया है। वैसे इस बार 22 हजार फस्ट टाईम वोटर भी प्रत्याशियों का भविष्य तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे।
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रायपुर से करीब 48 किलोमीटर दूर बलौदाबाजार मध्यप्रदेश के समय से ही राजनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण रहा है। अंग्रेजों के जमाने में 1854 से 1864 तक बलौदाबाजार रायपुर का अंग रहा। उसके बाद इसे बिलासपुर जिले में शामिल कर लिया गया, मगर प्रशासनिक दिक्कतों की वजह से 1903 में इसे सिमगा तहसील में शामिल कर इसे तहसील का दर्जा दिया गया। इस विधानसभा क्षेत्र में बलौदाबाजार, सुहैला, हथबंद, तिल्दा नेवरा जैसे बड़े व्यावसायिक इलाके सहित 197 गांव आते हैं। कुल 2 लाख 13 हजार मतदाता वाले इस विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख 12 हजार पुरुष और करीब एक लाख महिला मतदाता है।
बलौदाबाजार के सियासी इतिहास की बात की जाए तो 1977 में यहां पहला विधान सभा चुनाव हुआ। इसमें जनता पार्टी के बंसराज तिवारी विधायक चुने गए। हालांकि इसके बाद बलौदाबाजार सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है। लेकिन 1993 में करुणा शुक्ला यहां बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीती फिर गणेश शंकर बाजपेयी तीन बार यहां से कांग्रेस के विधायक रहे। हालांकि 2008 में उन्हें बीजेपी की लक्ष्मी बघेल के हाथों हार का सामना करना पड़ा। 2013 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने यहां जनकराम वर्मा को टिकट दिया जिन्होंने लक्ष्मी बघेल हराया। इस चुनाव में कांग्रेस को जहां 76549 वोट मिले वहीं बीजेपी 66572 वोट ले पाई। इस तरह जीत का अंतर 9977 वोटों का रहा।
बलौदाबाजार में जाति समीकरण भी दिलचस्प है, जो चुनाव नतीजों को प्रभावित करता है। यहां 52 हजार 7सौ कुर्मी और 54 हजार 8सौ साहू मतदाता है। बलौदाबाजार का सियासी इतिहास बताता है कि यहां का मतदाता पार्टी की बजाए ज्यादातर स्थानीय प्रत्याशियों पर ही भरोसा जताया है। लेकिन अलग जिला बन जाने के बाद भी यहां के लोगों के पास शिकायतों की लंबी झड़ी है। अब देखना ये है कि इस बार कांग्रेस अपना जीत क्रम बरकार रखती है या फिर बीजेपी एक बार फिर सीट पर कब्जा करती है।
बलौदाबाजार में बीजेपी, कांग्रेस और बीएसपी में दावेदारों की लम्बी लिस्ट है। कांग्रेस से जहां मौजूदा विधायक जनकराम वर्मा की दावेदारी काफी मजबूत मानी जा रही है। वहीं बीजेपी से पिछला चुनाव हारने वाली लक्ष्मी बघेल पार्टी की सशक्त दावेदार है। हालांकि दोनों ही दलों में टिकट के लिए खींचतान नजर आ रही है। वहीं पहली बार चुनावी मैदान में ताल ठोक रही JCCJ ने प्रमोद शर्मा को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है। मानसून की बूंदाबांदी के बीच बलौदाबाजार विधानसभा क्षेत्र के गांवों में किसान जोर–शोर से धान की रोपाई के काम में लगे हैं। उन्हें उम्मीद है कि ये रोपे चार महीने बाद उन्हें अच्छी फसल देंगे। धान के साथ–साथ इस इलाके में सियासत की रोपाई भी चल रही है। दीवारों और होर्डिंग्स पर जहां रमन सरकार का गुणगान किया जा रहा हैं तो वहीं कांग्रेस ने भी मतदाता के मन में राज्य सरकार के खिलाफ आरोपों के बीज बोने शुरू कर दिए हैं।
बलौदाबाजार में कांग्रेस की स्थिति हमेशा से मजबूत रही है और सीट पर फिलहाल कांग्रेस ही काबिज है। वैसे 2008 के बाद यहां जातिगत समीकरण काफी बदली सी नजर आती है। यही वजह है कि यहां टिकट दावेदारों की लंबी कतार नजर आती है। हालांकि विधायक जनकराम वर्मा अभी भी यहां से कांग्रेस के स्वाभाविक दावेदार हैं और वो खुद भी अपने टिकट को लेकर आश्वस्त हैं। कांग्रेस के दूसरे दावेदारों की बात की जाए तो प्रदेश महिला कांग्रेस की सचिव शारदा सोनी, कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख शैलेष नितिन त्रिवेदी, पूर्व जिला अध्यक्ष विद्याभूषण शुक्ला और कांग्रेस के पूर्व नेता रविशंकर मिश्रा के पुत्र रमेश मिश्रा प्रमुख दावेदार नजर आ रहे है।
बलौदाबाजार में टिकट को लेकर भाजपा में भी हालात कांग्रेस की जैसी ही है। यहां भी दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है। लेकिन पार्टी इस बार कुर्मी या फिर साहू समाज के लोगों पर ही दांव लगाने की तैयारी में है। लेकिन पिछला चुनाव हारने वाले लक्ष्मी बघेल पर एक बार फिर बीजेपी भरोसा कर सकती है। लक्ष्मी बघेल मुख्यमंत्री, संगठन और सांसद रमेश बैस की भी पहली पसंद रही है। बलौदाबाजार के प्रसिद्ध डॉ. केके साहू नाम का भी चर्चा में है। वे कबीर पंथ के गुरु प्रकाश मुनि की पसंद बताए जा रहे हैं। डॉ. केके साहू के छोटे भाई पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष नंदू साहू ने भी दावेदारी पेश की है। इसके अलावा महिला मोर्चा की सुनिता वर्मा और समाजसेवी टंकराम वर्मा का नाम भी चर्चा में है। ये कह कर अपनी पीठ थपथपा रहे है कि बलौदाबाजार का विकास उसकी सरकार की देन है।
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वहीं जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने एक महीने पहले प्रमोद शर्मा को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है । हालांकि प्रमोद का व्यक्तित्व और संपर्क ऐसा नहीं है कि वे आज की स्थिति में भाजपा और कांग्रेस को टक्कर दे सके। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी से प्रदेश अध्यक्ष राजकुमार पात्रे चुनाव लड़ सकते है। कुल मिलाकर सभी पार्टियों में दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है। लेकिन बलौदाबाजार का सियासी इतिहास पर नजर डाले तो आगामी चुनाव में भी सीधा मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होगा।
वेब डेस्क, IBC24

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