छत्तीसगढ़ की ‘गोदना’ आदिवासी कला को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठा रहे हैं युवा कलाकार |

छत्तीसगढ़ की ‘गोदना’ आदिवासी कला को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठा रहे हैं युवा कलाकार

छत्तीसगढ़ की ‘गोदना’ आदिवासी कला को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठा रहे हैं युवा कलाकार

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:19 PM IST, Published Date : August 7, 2022/5:00 pm IST

(टिकेश्वर पटेल)

रायपुर, सात अगस्त (भाषा) छत्तीसगढ़ में बस्तर के स्थानीय लोगों के एक समूह ने क्षेत्र की सदियों पुरानी ‘गोदना’ (टैटू) कला को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया है। आदिवासियों का मानना है कि ‘गोदना’ इकलौता गहना है जो मरने के बाद भी उनके साथ रहता है।

तीर और कमान तथा जंगली भैंसे के सींग जैसे पारंपरिक डिजाइन के लिए पहचाने जाने वाली यह आदिम कला तेजी से बदलती दुनिया में विलुप्त हो रही हैं, क्योंकि लोग आधुनिक टैटू के डिजाइन की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। यह बस्तर के आदिवासी समुदाय के लिए चिंता की बात है।

कुछ स्थानीय युवक अब गोदना कला का पर्यटकों के बीच प्रचारित कर इसे फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं। वे पर्यटकों को इसके महत्व के बारे में बता रहे हैं और सुरक्षा, स्वच्छता तथा अच्छी गुणवत्ता की स्याही एवं अन्य हथियारों का इस्तेमाल कर आधुनिक कलेवर के साथ इसे पेश कर रहे हैं।

राज्य के एक प्रतिष्ठित टैटू कलाकार ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि पारंपरिक गोदना कला को संरक्षित करने के लिए इसके रूपों और उनके पीछे की कहानियों की एक सूची भी तैयार की जा रही है।

जिला प्रशासन ने इस साल मई और जून में बस्तर नृत्य, कला एवं भाषा अकादमी (बादल) में गोदना और आधुनिक टैटू कला पर 15-दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमें करीब 20 स्थानीय युवाओं ने भाग लिया।

इसमें प्रशिक्षण के बाद ज्यादातर लोगों ने टैटू कलाकार के तौर पर काम करना शुरू कर दिया है और राजधानी रायपुर से करीब 300 किलोमीटर दूर माओवाद-प्रभावित जिले जगदलपुर में और उसके आसपास पर्यटक स्थलों पर अपने स्टॉल लगाए हैं।

उनका कहना है उनका मकसद गोदना टैटू बनाकर केवल पैसा कमाना नहीं है, बल्कि इस कला को संरक्षित करना भी है।

बड़े किलेपाल गांव की 21-वर्षीया आदिवासी महिला ज्योति ने कहा, ‘‘लोग जानते हैं कि गोदना हमेशा आदिवासी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है, लेकिन उन्हें इसका महत्व नहीं पता है। इस प्रशिक्षण के दौरान हमें यह बताया गया कि हम इस कला का प्रचार कैसे कर सकते हैं और इसे अपने लिए आजीविका का साधन कैसे बना सकते हैं।’’

ज्योति अपने गांव से जगदलपुर पहुंचने के लिए बस से हर दिन करीब 45 किलोमीटर का सफर तय करती हैं। वह नजदीकी तोकापाल शहर में एक सरकारी कॉलेज से विज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई भी कर रही हैं।

उन्होंने बताया कि पहले ज्यादातर आदिवासी महिलाओं के शरीर पर गोदना टैटू होते थे और आदिवासी पुरुष भी इन्हें बनवाते थे।

ज्योति ने कहा, ‘‘हर डिजाइन का अपना खास महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि कुछ डिजाइन बुरी शक्तियों और बीमारियों को दूर रखते हैं जबकि कुछ कहते हैं कि यह इकलौता गहना है जो मरने के बाद भी लोगों के साथ रहता है। मेरी मां के चेहरे पर होठों के नीचे और माथे पर गोदना टैटू बने हुए हैं।’’

रायपुर के टैटू कलाकार शैलेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि गोदना कला के लुप्त होने की मुख्य वजहों में से एक यह थी कि कई लोगों के लिए एक ही सुई का इस्तेमाल किया जाता था। टैटू बनवाने के दौरान दर्द भी होता है और कई बार इसके नकारात्मक असर भी पड़ते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘मेरे सुझाव पर जिला प्रशासन ने सभी 20 कलाकारों को अच्छी गुणवत्ता के टैटू बनाने वाले उपकरण और अमेरिका निर्मित हर्बल स्याही नि:शुल्क उपलब्ध करायी।’’

बस्तर के जिलाधीश चंदन कुमार ने कहा कि यह क्षेत्र शांति, समृद्धि एवं विकास की ओर बढ़ रहा है, इसलिए इसकी कला, संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करना तथा उनको बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।

भाषा गोला सुरेश

सुरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)