19वीं सदी की ‘तारीख-ए-सांची’, अन्य दुर्लभ अभिलेखीय दस्तावेज भोपाल में एनएआई प्रदर्शनी में प्रदर्शित

19वीं सदी की 'तारीख-ए-सांची', अन्य दुर्लभ अभिलेखीय दस्तावेज भोपाल में एनएआई प्रदर्शनी में प्रदर्शित

19वीं सदी की ‘तारीख-ए-सांची’, अन्य दुर्लभ अभिलेखीय दस्तावेज भोपाल में एनएआई प्रदर्शनी में प्रदर्शित
Modified Date: November 29, 2022 / 08:58 pm IST
Published Date: October 18, 2022 7:06 pm IST

(कुणाल दत्त)

नयी दिल्ली, 18 अक्टूबर (भाषा) भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (एनएआई) द्वारा भोपाल में आयोजित एक प्रदर्शनी में मध्य प्रदेश स्थित सांची स्मारकों पर लगभग 150 साल पहले लिखी गई एक किताब और भोपाल के तत्कालीन नवाबों से संबंधित दस्तावेजों सहित अन्य दुर्लभ मूल अभिलेखीय दस्तावेज प्रदर्शित किए गए हैं।

अधिकारियों के अनुसार, वर्ष 1873 में प्रकाशित ‘तारीख-ए-सांची’ नामक पुस्तक मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित एक पुस्तक का उर्दू अनुवाद है। अनुवाद रियासत की तत्कालीन शासक भोपाल की नवाब शाहजहाँ बेगम के कहने पर किया गया था।

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एनएआई (भोपाल) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘630-पृष्ठों वाली यह दुर्लभ पुस्तक, अनिवार्य रूप से सुलेख का उपयोग करके निर्मित हुई एक पांडुलिपि हमारे पास एक दुर्लभ संस्करण है, जिसे हमने आज प्रदेश की राजधानी में आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी के भाग के रूप में भोपाल स्थित अपने कार्यालय में एक दिन के लिए प्रदर्शित किया है।’’

एनएआई के क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) भोपाल मंडल द्वारा संयुक्त रूप से मंगलवार को ‘अभिलेखागार एवं पुरातत्व’ शीर्षक से संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

एनएआई के उपनिदेशक, अभिलेखागार संजय गर्ग ने कहा, ‘राष्ट्रीय अभिलेखागार और एएसआई, जो दोनों संस्कृति मंत्रालय के दायरे में काम करते हैं, एक साथ आए हैं, जो दोनों एजेंसियों के बीच अधिक तालमेल बिठाएंगे, जो दोनों ही सामग्री और अन्य विरासत के संरक्षण और प्रलेखन से संबंधित हैं।’

उन्होंने कहा कि ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम के तहत कुछ पुरातात्विक कलाकृतियों का भी प्रदर्शन किया जा रहा है।

एनएआई भोपाल अभिलेखागार के सहायक निदेशक एन राजू सिंह ने कहा कि ‘तारीख-ए-सांची’ का मूल स्वरूप से से 1873 में एक शिक्षक फैयाजुद्दीन अहमद द्वारा अनुवाद किया गया था, ‘लेकिन हम अंग्रेजी में लिखी गई पुस्तक का अभी तक शीर्षक नहीं ढूंढ़ पाए हैं और इसके लेखक के बारे में नहीं जान पाए हैं।’’

भाषा नेत्रपाल माधव

माधव


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