वर्ष 2016 आगजनी मामला: न्यायालय ने मुकदमे में देरी पर चिंता जताई, महाराष्ट्र से मांगा स्पष्टीकरण
वर्ष 2016 आगजनी मामला: न्यायालय ने मुकदमे में देरी पर चिंता जताई, महाराष्ट्र से मांगा स्पष्टीकरण
नयी दिल्ली, 24 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने वकील सुरेंद्र गाडलिंग से जुड़े 2016 के एक आगजनी मामले की सुनवाई में देरी पर बुधवार को चिंता जताई और महाराष्ट्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा।
न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने अभियोजन एजेंसी से बिना मुकदमे के एक व्यक्ति को जेल में रखने के बारे में पूछताछ करते हुए मुकदमे की समाप्ति की समय-सीमा के बारे में पूछा।
गाडलिंग ने बम्बई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के जनवरी 2023 के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें 2016 के सुरजागढ़ लौह अयस्क खदान आगजनी मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया गया था।
गाडलिंग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने इस मामले में अपने मुवक्किल के छह साल से अधिक समय तक जेल में रहने का हवाला दिया।
पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू से कहा, ‘‘इस समय, हम देखना चाहते हैं कि मामले में क्या तथ्य है।’’
शीर्ष अदालत ने अभियोजन पक्ष से मामले की सुनवाई के बिंदु पर स्पष्टीकरण मांगते हुए गाडलिंग की लंबी कैद को एक अन्य मुद्दा बताया।
पीठ ने पूछा, ‘‘हमें कुछ मुद्दों पर स्पष्टीकरण चाहिए। सुनवाई में देरी का क्या कारण है?’’
पीठ को सूचित किया गया कि मामले में आरोप-मुक्ति के लिए अर्जी लंबित है। इसने याचिका का निपटारा न होने का कारण जानना चाहा।
मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी गई।
माओवादी विद्रोहियों ने पच्चीस दिसंबर, 2016 को कथित तौर पर महाराष्ट्र के गढ़चिरौली स्थित सूरजगढ़ खदानों से लौह अयस्क परिवहन के लिए इस्तेमाल किए जा रहे 76 वाहनों में आग लगा दी थी।
गाडलिंग पर जमीनी स्तर पर सक्रिय माओवादियों को सहायता प्रदान करने का आरोप है। उनपर मामले में विभिन्न सह-आरोपियों और कुछ फरार आरोपियों के साथ मिलकर साजिश रचने का भी आरोप है।
उनपर आतंकवाद-रोधी कानून ‘‘गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम’’ और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।
गाडलिंग पर भूमिगत माओवादी विद्रोहियों को सरकारी गतिविधियों और कुछ इलाकों के नक्शों की गुप्त जानकारी मुहैया कराने का आरोप है।
उनपर माओवादियों से सुरजागढ़ खदानों के संचालन का विरोध करने और कई स्थानीय लोगों को इस आंदोलन में शामिल होने के लिए उकसाने का आरोप है।
गाडलिंग, 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में भी आरोपी हैं।
पुलिस का दावा है कि इसी भाषण के कारण अगले दिन पुणे जिले में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क उठी थी।
भाषा सुरेश संतोष
संतोष

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