एसीबी का बिछाया जाल पूरी तरह से अवैध: 2015 नकदी के बदले वोट मामले में रेड्डी ने न्यायालय को बताया

एसीबी का बिछाया जाल पूरी तरह से अवैध: 2015 नकदी के बदले वोट मामले में रेड्डी ने न्यायालय को बताया

एसीबी का बिछाया जाल पूरी तरह से अवैध: 2015 नकदी के बदले वोट मामले में रेड्डी ने न्यायालय को बताया
Modified Date: October 15, 2025 / 05:48 pm IST
Published Date: October 15, 2025 5:48 pm IST

नयी दिल्ली, 15 अक्टूबर (भाषा) तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि 2015 के कैश-फॉर-वोट मामले में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा बिछाया गया जाल “पूरी तरह से अवैध” था, क्योंकि ऐसा बिना कोई प्राथमिकी दर्ज किये किया गया था।

कांग्रेस नेता रेवंत रेड्डी को 31 मई 2015 को एसीबी ने उस समय गिरफ्तार किया था, जब वे विधान परिषद चुनावों में तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) उम्मीदवार वेम नरेन्द्र रेड्डी का समर्थन करने के लिए मनोनीत विधायक एल्विस स्टीफेंसन को कथित तौर पर 50 लाख रुपये की रिश्वत दे रहे थे। रेवंत रेड्डी उस समय तेदेपा में थे।

रेड्डी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने बुधवार को न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ के समक्ष दलील दी कि कथित तौर पर रिश्वत देने वाले के रूप में उनका अभियोजन कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है।

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रोहतगी ने कहा, “प्राथमिकी दर्ज होने से पहले ही जाल बिछा दिया गया। यह जाल पूरी तरह से गैरकानूनी है क्योंकि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत प्राथमिकी दर्ज होने से पहले कोई भी जांच शुरू नहीं हो सकती। न तो कोई जनरल डायरी (जीडी) एंट्री थी और न ही कोई प्राथमिकी।”

वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि जाल में तीन व्यक्ति कथित रूप से रिश्वत की पेशकश करते हुए पकड़े गए थे, और रेड्डी पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 12 के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है, जो केवल रिश्वत लेने वालों पर लागू होता है, रिश्वत देने वालों पर नहीं।

रोहतगी ने कहा, “मुझ पर भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 12 के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है, जैसा कि 2015 में था। यह धारा 7 और 11 के तहत अपराधों को बढ़ावा देने से संबंधित है। लेकिन 2010 में, रिश्वत देने वालों को उन प्रावधानों के दायरे में नहीं रखा गया था; केवल रिश्वत लेने वालों को इसके तहत शामिल किया गया था।” उन्होंने कहा कि रिश्वत देने वाले को 2018 के संशोधन के बाद ही कानून के दायरे में लाया गया।

रोहतगी ने कहा कि भले ही आरोपों में अधिनियम की धारा 7, 11 और 12 के तहत प्रावधान हों, लेकिन ये प्रावधान केवल सरकारी कर्मचारी द्वारा उसके आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन में किए गए कार्यों पर ही लागू होते हैं।

उन्होंने कहा कि विधान परिषद चुनाव में मतदान करना या मतदान से दूर रहना कानून के दायरे में कोई आधिकारिक कार्य नहीं है।

सुनवाई कल भी जारी रहेगी।

भाषा प्रशांत पवनेश

पवनेश


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