Anti CAA Protest:गुवाहाटी। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) जो कि केंद्र सरकार द्वारा साल 2019 में लाई गई थी। जिस पर काफी बवाल हुआ था। जगह-जगह पर खासकर मुस्लिम समुदाय द्वारा इस कानून का बहुत ज्यादा विरोध हुआ। देश के कई राज्यों में इस कानून का जमकर विरोध हुआ। दिल्ली के शाहीन बाग में तो लोगों ने सड़क पर ही कई महीनों तक इसका विरोध किया और कानून वापसी की मांग की। लेकिन केंद्र सरकार ने कानून वापस नहीं लिया। ये बात जरूर है कि कानून को लागू करने में थोड़ी देर की जा रही है ताकि माहौल को शांत किया जा सके। इन सबके बावजूद 2 साल बाद एक बार फिर पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में सीएए के खिलाफ विरोध शुरू हो गया है। >>*IBC24 News Channel के WHATSAPP ग्रुप से जुड़ने के लिए यहां CLICK करें*<<
असम में सीएए (CAA) के खिलाफ ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ने विरोध प्रदर्शन किया। आसू, NESO से जुड़े कई संगठनों में से एक है। NESO में पूर्वोत्तर भारत के 8 छात्र संगठन जुड़े हुए हैं। NESO के सलाहकार और AASU नेता समुज्जल भट्टाचार्य ने कहा कि उनके संगठन ने सभी राज्यों की राजधानियों में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया।
भट्टाचार्य ने कहा कि सीएए की वापसी के साथ ही बाढ़ से संबंधित मुद्दे, प्रवासियों की बढ़ती आमद, सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम को समाप्त करना, स्वदेशी समुदायों को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करना, सभी पूर्वोत्तर राज्यों में स्वदेशी लोगों की रक्षा के लिए इनर लाइन परमिट लागू करना और असम समझौते, 1985 के खंड 6 का कार्यान्वयन कराने की मांगें भी शामिल हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि फिलहाल उनका संगठन शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांग रख रहा है। अगर सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले वक्त में इसे अगले लेवल तक भी ले जाया जा सकता है
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बताते चलें कि वर्ष 2019 में असम, पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में सीएए (CAA) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे। बाद में कोरोना महामारी शुरू होने पर वर्ष 2020 में उन्हें वापस ले लिया गया ता। शुरू हुआ था और कोविड -19 महामारी के प्रकोप से पहले 2020 तक कुछ समय तक जारी रहा। इस आंदोलन की आड़ में कई जगह हिंसा भी हुई, जिसे देखते हुए कई शहरों में कर्फ्यू भी लगाना पड़ा।
NESO और AASU के अलावा कई आदिवासी संगठनों, कांग्रेस और कई अन्य राजनीतिक दलों ने भी सीएए का कड़ा विरोध किया है। इस कानून में प्रावधान है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर उत्पीड़न के शिकार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता प्रदान की जा सकती है। इसके लिए पीड़ितों का 31 दिसंबर, 2014 तक भारत में प्रवेश की शर्त रखी गई है।
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