अयोध्या मसला, शिया बोर्ड ने मंदिर के लिए दिया समर्थन, हिंदू पक्ष को सौंपना चाहते हैं पूरी जमीन.. देखिए

अयोध्या मसला, शिया बोर्ड ने मंदिर के लिए दिया समर्थन, हिंदू पक्ष को सौंपना चाहते हैं पूरी जमीन.. देखिए

अयोध्या मसला, शिया बोर्ड ने मंदिर के लिए दिया समर्थन, हिंदू पक्ष को सौंपना चाहते हैं पूरी जमीन.. देखिए
Modified Date: November 29, 2022 / 08:31 pm IST
Published Date: August 31, 2019 3:09 am IST

नई दिल्ली। अयोध्या मामले में शुक्रवार को सुनवाई में शिया बोर्ड ने राम मंदिर बनाने के लिए हिंदू पक्ष को अपना समर्थन दिया है। शिया बोर्ड के वकील के मुताबिक हाई कोर्ट ने एक तिहाई हिस्सा मुस्लिम पक्ष को देने का आदेश दिया था। लेकिन बोर्ड ने वो हिस्सा भी हिंदुओं को ही सौंप देना चाहते हैं। मामले में मुख्य पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड है।से अपनी जिरह शुरू करेगा।

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शिया वक्फ बोर्ड की. बोर्ड की तरफ से वकील एम सी ढींगरा ने हिंदू पक्ष का खुल कर समर्थन किया। उन्होंने कहा, “अब तक हिंदू पक्ष ने जो कहा है, हम उसका विरोध नहीं करते। हम चाहते हैं कि वह पूरी जगह हिंदुओं को सौंप दी जाए.” ढींगरा ने अपनी बात को मजबूती देते हुए कहा, “मस्ज़िद बनवाने वाला मीर बाकी शिया था। इसलिए, शुरू से ही वह इमारत शिया वक्फ की संपत्ति थी। वहां जब तक नमाज पढ़ी गई, जगह शिया मुतवल्ली के नियंत्रण में थी।

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वहीं राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने दावा किया कि इस्लामी नियमों के मुताबिक विवादित इमारत मस्ज़िद थी ही नहीं। उन्होंने कहा, “8 वीं सदी के विख्यात इस्लामी विद्वान इमाम अबू हनीफा ने कहा था कि जिस इमारत में कम से कम दो वक्त की अजान न हो, उसे मस्जिद नहीं माना जा सकता। विवादित इमारत में 70 साल से नमाज नहीं पढ़ी गई है। उससे पहले भी वहां सिर्फ शुक्रवार को नमाज हो रही थी।

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“इस्लामिक विद्वान यह भी मानते हैं कि कब्रों से घिरी इमारत मस्जिद नहीं हो सकती। अयोध्या के विवादित इमारत के आसपास कब्रगाह थी। पैगंबर मोहम्मद ने खुद यह कहा था कि दूसरे के घर को गिराकर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती। अगर ऐसा किया गया तो वह जगह उसके सही हकदार को सौंप दी जानी चाहिए।”

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जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के वकील ने आगे कहा, “मूल राजस्व रिकॉर्ड में उस जगह का जिक्र जन्मस्थान के तौर पर किया गया है। बाद में ब्रिटिश शासकों ने मुसलमानों को जगह पर कब्जा लेने के लिए उकसाया। 1855 से पहले वहां नमाज पढ़े जाने का कोई प्रमाण नहीं है। उसके बाद राजस्व रिकॉर्ड में हेरफेर की गई। जन्म स्थान के साथ कुछ जगह पर मस्जिद भी लिख दिया गया। यह बात इलाहाबाद हाई कोर्ट में साबित हो चुकी है।

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