गोमांस को हिंदुओं के खिलाफ हथियार बनाया जा रहा, असम के लोगों को ‘गैर-समझौतावादी रुख’ अपनाना चाहिए: मुख्यमंत्री हिमंत

गोमांस को हिंदुओं के खिलाफ हथियार बनाया जा रहा, असम के लोगों को ‘गैर-समझौतावादी रुख’ अपनाना चाहिए: मुख्यमंत्री हिमंत

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  • Publish Date - June 10, 2025 / 07:20 PM IST,
    Updated On - June 11, 2025 / 12:00 AM IST

(फाइल फोटो के साथ)

गुवाहाटी, 10 जून (भाषा) पिछले सप्ताह ईद के जश्न के बाद सार्वजनिक स्थानों पर मांस के टुकड़े फेंके जाने के मामलों का हवाला देते हुए असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने मंगलवार को आरोप लगाया कि राज्य में हिंदुओं के खिलाफ गोमांस को “हथियार” बनाया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि असम के लोगों को अवैध विदेशियों को वापस भेजने के लिए ‘गैर समझौतावादी’ रुख अपनाना होगा। उन्होंने कहा कि असम उन ताकतों के खिलाफ संघर्ष कर रहा है, जिनके ‘हमदर्द’ दुनिया भर में हैं। यहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राज्य कार्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए शर्मा ने कहा, ‘‘पहले अगर हिंदुओं के पड़ोस में कुछ मुस्लिम परिवार रहते थे, तो वे हिंदुओं के लिए कोई समस्या पैदा न करने के लिए सावधान रहते थे। अगर उन्हें गोमांस खाना होता था, तो वे मुस्लिम बहुल इलाकों में रहने वाले अपने लोगों के पास जाते थे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अब ऐसा हो गया है कि वे बचे हुए भोजन और कचरे को इधर-उधर फेंक देते हैं, ताकि पड़ोस के हिंदुओं को अंततः वह जगह छोड़नी पड़े।’’

उन्होंने पिछले सप्ताह ईद के बाद विभिन्न स्थानों पर कथित तौर पर गोमांस छोड़े जाने की घटनाओं का हवाला दिया, जिसमें यहां कॉटन विश्वविद्यालय के सामने की घटना भी शामिल है।

शर्मा ने कहा, ‘‘कोई इसे ईद पर खा सकता है, लेकिन इसका इस्तेमाल दूसरे लोगों के खिलाफ हथियार के तौर पर नहीं किया जा सकता।’’

उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि इस कृत्य के खिलाफ कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया गया और कहा कि ऐसी घटनाओं के विरोध में उठने वाली आवाज की संख्या कम हो रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘अच्छे मुसलमान ऐसे कृत्यों का विरोध करते हैं। वे फेसबुक पर गोमांस हाथ में लेकर खिंचाई गई फोटो पोस्ट नहीं करते हैं।’’

उन्होंने कहा कि इन घटनाओं के बाद उनके पास मुस्लिम व्यक्तियों की ओर से केवल तीन फोन कॉल आए, जिसमें उन्होंने कहा कि वे इसे स्वीकार नहीं करते हैं।

मुख्यमंत्री ने आशंका जताई कि अगर चीजें अभी की तरह चलती रहीं, तो “20 साल में कामाख्या मंदिर के सामने गोमांस फेंका जाएगा”।

उन्होंने जोर देकर कहा कि असम के लोगों को “खुद की रक्षा के लिए कोई समझौता न करने वाला रुख” अपनाना होगा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार उनकी पूरी मदद करने को तैयार है।

उन्होंने कहा, “मोदी जी कर रहे हैं कि वापस भेजो (अवैध विदेशियों को), लेकिन असम के लोग सवाल कर रहे हैं कि वापस क्यों भेजा जा रहा है। वापस भेजे जाने के खिलाफ सर्वाधिक आलोचना असम के लोग कर रहे हैं… मोदी जी अकेले हमारी रक्षा नहीं कर सकते।’’

उन्होंने दावा किया कि मोदी ने गुजरात से सभी विदेशियों को भगा दिया और उनमें से एक भी अदालत नहीं गया, जबकि असम में अवैध प्रवासियों पर कार्रवाई के खिलाफ असम निवासी याचिकाकर्ताओं और वकीलों द्वारा रोजाना मामले दर्ज किए जाते हैं।

शर्मा ने कहा कि कांग्रेस और उसके विधायक दल के नेता देबब्रत सैकिया ने सोमवार को विधानसभा में विदेशियों को वापस भेजे जाने का विरोध किया था, लेकिन किसी संगठन ने उनके रुख का विरोध नहीं किया और न ही मीडिया ने इसके लिए पार्टी की आलोचना की।

उन्होंने सैकिया द्वारा विधानसभा में दिए गए उस बयान का भी हवाला दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने प्रवासी (असम से निष्कासन) अधिनियम, 1950 का विरोध किया था, जो जिला आयुक्तों को विदेशियों की पहचान करने और उन्हें बाहर निकालने का अधिकार देता है।

उन्होंने कहा, ‘‘इससे पता चलता है कि नेहरू का विदेशियों के पक्ष में रुख 1950 से ही था।’’

शर्मा ने कहा, ‘‘हमारा संघर्ष उन ताकतों के खिलाफ है, जिनके समर्थक दुनिया भर में मौजूद हैं।’’ उन्होंने कहा कि इस्लामाबाद, ढाका और रियाद जैसी जगहों से 2,895 फेसबुक अकाउंट सक्रिय हैं, जो केवल फलस्तीन और असम के बारे में लिखते या टिप्पणी करते हैं।

शर्मा ने कहा, ‘‘हम दुश्मनों से घिरे हुए एक राज्य हैं… हमें अपना शोध करना होगा और ये विवरण मोदी जी को सौंपना होगा, ताकि वह इसे आगे बढ़ा सकें और इंटरपोल जैसी एजेंसियों की मदद ले सकें।’’

राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का जिक्र करते हुए शर्मा ने कहा कि राज्य सरकार, एएएसयू और अन्य इससे “संतुष्ट नहीं” हैं। उन्होंने उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि एनआरसी और विदेशियों के निर्वासन के बीच कोई संबंध नहीं है।

शर्मा ने दावा किया कि कांग्रेस द्वारा प्रशिक्षित वकीलों का एक वर्ग है जो अयोग्य लोगों को एनआरसी में अपना नाम शामिल करवाने में मदद करता है, हालांकि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया।

भाषा संतोष प्रशांत

प्रशांत