बजट ‘गोली के घाव पर मरहम पट्टी’ की तरह, बिहार और दिल्ली के मतदाताओं को रिझाने का प्रयास: विपक्ष

बजट ‘गोली के घाव पर मरहम पट्टी’ की तरह, बिहार और दिल्ली के मतदाताओं को रिझाने का प्रयास: विपक्ष

बजट ‘गोली के घाव पर मरहम पट्टी’ की तरह, बिहार और दिल्ली के मतदाताओं को रिझाने का प्रयास: विपक्ष
Modified Date: February 1, 2025 / 08:23 pm IST
Published Date: February 1, 2025 8:23 pm IST

नयी दिल्ली, एक फरवरी (भाषा) कांग्रेस ने शनिवार को केंद्रीय बजट में अर्थव्यस्था से जुड़े संकट के समाधान के लिए कुछ नहीं होने का आरोप लगाया और कहा कि गोली लगने के घाव पर मरहम पट्टी की गई है तथा बिहार एवं दिल्ली के मतदाताओं को रिझाने का प्रयास हुआ है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सुस्त पड़ती आर्थिक वृद्धि को गति देने के मकसद से एक तरफ जहां मध्यम वर्ग को बड़ी राहत देते हुए 12 लाख रुपये की सालाना आय पर कर छूट की घोषणा की है, वहीं दूसरी तरफ बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) सीमा बढ़ाने समेत अगली पीढ़ी के सुधारों को तेज करने का प्रस्ताव किया है। सीतारमण की इस घोषणा से करीब एक करोड़ और लोग कर के दायरे से बाहर हो जाएंगे।

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘गोली लगने के घाव के लिए एक मरहम पट्टी!’’

 ⁠

उन्होंने आरोप लगाया कि वैश्विक अनिश्चितता के बीच, हमारे आर्थिक संकट को हल करने के लिए एक आदर्श बदलाव की आवश्यकता है, लेकिन यह सरकार विचारों को लेकर दिवालिया है।

बाद में उन्होंने दिल्ली के सदर बाजार में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए दावा किया गया कि 2025-26 का केंद्रीय बजट केवल देश के सबसे अमीर लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाया गया है, जबकि आम नागरिकों को थोड़ी राहत प्रदान की गई है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आम बजट को मोदी सरकार द्वारा लोगों की आंखों में धूल झोंकने का प्रयास करार दिया और कहा कि इस पर ‘‘900 चूहे खाकर बिल्ली हज को चली’’ का मुहावरा सटीक बैठता है।

पार्टी महसचिव प्रियंका गांधी ने नई दिल्ली की एक चुनावी सभा में कहा कि मध्य वर्ग को थोड़ी राहत दी गई है, लेकिन देश में बड़े हिस्से की उपेक्षा हुई है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि केवल आयकरदाताओं के लिए राहत दी गई है, लेकिन अर्थव्यवस्था पर इसका वास्तविक प्रभाव क्या होगा, यह देखना अभी बाकी है।

उन्होंने यह भी कहा कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के चलते बिहार के लिए कई घोषणाएं की गई हैं, जबकि आंध्र प्रदेश की अनदेखी की गई है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने आरोप लगाया कि सरकार के पास कोई नया विचार नहीं और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वर्ष 1991 तथा 2004 की तरह आर्थिक सुधार करना नहीं चाहतीं हैं।

उन्होंने संवाददाताओं से बातचीत में यह भी कहा कि इस बजट में सिर्फ मध्य वर्ग व बिहार के मतदाताओं को रिझाने का प्रयास हुआ है और शेष भारत को सिर्फ सांत्वना दी गई है।

चिदंबरम ने कहा कि वर्तमान की आर्थिक वृद्धि दर से 2047 तक विकसित भारत का सपना पूरा नहीं हो सकता।

तृणमूल कांग्रेस के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने कहा कि बजट में पश्चिम बंगाल के लिए कुछ नहीं था।

बनर्जी ने संसद परिसर में संवाददाताओं को बताया, “बजट में आम लोगों के लिए कुछ भी नहीं है। उन्होंने आगामी बिहार चुनावों को ध्यान में रखते हुए बजट पेश किया है। पिछली बार भी सभी घोषणाएं आंध्र प्रदेश और बिहार के लिए की गई थीं। आंध्र प्रदेश के चुनाव खत्म हो चुके हैं और बिहार में चुनाव होने वाले हैं, इसलिए राज्य फोकस में है।”

द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के लोकसभा सदस्य दयानिधि मारन ने बजट को देश के लिए “बड़ी निराशा” बताया।

उन्होंने कहा, “यह देश के लिए, खास तौर पर मध्यम वर्ग के लिए, एक बड़ी निराशा है। वित्त मंत्री का दावा है कि वे 12 लाख रुपये तक की कर छूट दे रही हैं, लेकिन अगली ही पंक्ति में उन्होंने कहा कि 8 से 10 लाख रुपये की आय पर 10 प्रतिशत कर स्लैब है।”

उन्होंने कहा, “चूंकि बिहार में चुनाव आ रहे हैं, इसलिए बिहार के लिए कई घोषणाएं की जा रही हैं, जिससे बिहार की जनता को मूर्ख बनाया जा रहा है।”

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि जब महाकुंभ की भगदड़ में मारे गए लोगों का सही आंकड़ा नहीं दिया जा रहा है तो फिर बजट का क्या मतलब है।

उन्होंने संसद के बाहर संवाददाताओं से कहा, ‘‘महाकुंभ में भगदड़ में मरने वालों की संख्या बजट के आंकड़ों से अधिक महत्वपूर्ण है। सरकार जान गंवाने वालों की संख्या बताने में असमर्थ है।’’

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा कि बजट लोगों के साथ एक ‘‘क्रूर विश्वासघात’’ है।

उन्होंने कहा, ‘‘अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में मांग घटने की समस्या के मूल कारण बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और घटती मजदूरी के कारण आबादी के बड़े हिस्से के हाथों में क्रय शक्ति की कमी होना है। इस समस्या को संबोधित नहीं किया गया।’’

भाषा हक हक धीरज

धीरज


लेखक के बारे में