कृषि कानूनों को रद्द करना ही एकमात्र मांग, ‘कॉस्मेटिक’ संशोधनों से काम नहीं चलेगा: हन्नान मोल्लाह

कृषि कानूनों को रद्द करना ही एकमात्र मांग, ‘कॉस्मेटिक’ संशोधनों से काम नहीं चलेगा: हन्नान मोल्लाह

कृषि कानूनों को रद्द करना ही एकमात्र मांग, ‘कॉस्मेटिक’ संशोधनों से काम नहीं चलेगा: हन्नान मोल्लाह
Modified Date: November 29, 2022 / 07:50 pm IST
Published Date: December 13, 2020 6:40 am IST

नयी दिल्ली, 13 दिसंबर (भाषा) अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों को रद्द करना ही किसानों की एकमात्र मांग है और कुछ ‘‘कॉस्मेटिक’’ संशोधनों से इन कानूनों को किसान हितैषी नहीं बनाया जा सकता है।

ये भी पढ़ें- रन विथ छत्तीसगढ़ का आयोजन, सुबह मंत्रियों ने लगाई दौड़, सीएम भूपेश …

1980 से 2009 तक लगातार आठ बार लोकसभा के सदस्य रह चुके मोल्लाह ने इन कानूनों को किसानों की ‘‘मौत का परवाना’’ करार देते हुए कहा कि जब सरकार 70 साल पुराने श्रम कानूनों को एक झटके में समाप्त कर सकती है तो इन कानूनों को समाप्त क्यों नहीं कर सकती। राजधानी दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर जारी किसानों के आंदोलन को लेकर मोल्लाह से भाषा के पांच सवाल और उनके जवाब:

 ⁠

सवाल: किसानों के आंदोलन को 20 दिन होने आ रहे हैं। सरकार से हुई अब तक की वार्ता भी विफल रही है। आगे क्या रुख रहेगा आंदोलन का?

ये भी पढ़ें- किसान आत्महत्या की घटनाओं पर सरकार को घेरेगी बीजेपी, विधायक दल की ब…

जवाब: हम गरीब लोग और क्या कर सकते हैं। वे लोग शक्तिशाली हैं। उनके पास सत्ता है, सेना है, मीडिया है और सारे संसाधन हैं। वे कुछ भी कर सकते हैं। संविधान ने जो हमें लोकतांत्रिक अधिकार दिए हैं हम उसके अनुरूप आंदोलन कर रहे हैं। हम सरकार से निवेदन कर सकते हैं। नहीं सुने तो हम रास्तों पर उतरते हैं। जुलूस निकालते हैं। मांगपत्र देते हैं सरकार को। धरना देते हैं। इसके अलावा हमारे पास विकल्प क्या है? संविधान में दिए गए अधिकार के बल पर हम संविधान दिवस के दिन दिल्ली पहुंचे। इसके पहले, छह महीने तक हमने यह लड़ाई लड़ी। लेकिन सरकार ने हमारी बात सुनी नहीं। लोकतंत्र में जनता की आवाज सुनने के बाद कार्रवाई की जाती है। मगर ये सरकार तो लोकतांत्रिक है ही नहीं। चुनी हुई लेकिन फासीवादी सरकार है। जनता के ऊपर अपने फैसले थोप देती है। हमने दिल्ली चलो का आह्वान किया तो सरकार ने इसे भी रोकने की भरपूर कोशिश की। सर्दियों में किसानों पर पानी की बौछारें की गई। लाठियां चलाई गईं और आंसू गैस के गोले छोड़े गए। बदनाम करने की भी कोशश की गई। खालिस्तानी, उग्रवादी, आतंकवादी और नक्सली न जाने क्या-क्या किसानों को बताया गया। इतना कुछ करने के बावजूद किसानों ने शांतिपूर्ण तरीके से अपना आंदोलन जारी रखा। 15 लोगों की अभी तक मौत हो चुकी है लेकिन इस सरकार में मानवीयता है ही नहीं। जनता का दुख दर्द समझने के लिए इसके पास कोई समय नहीं है। इसलिए आंदोलन जारी रखने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं है।

सवाल: सरकार तो किसानों को वार्ता के लिए आमंत्रित कर रही है। वार्ता होगी तभी तो कोई समाधान निकलेगा?

 

जवाब: सरकार वार्ता को लंबा खींच रही है। वह अपनी बातें हम किसानों पर थोपना चाह रही है। हमारी बात नहीं सुन रही है। हमें टीबी की बीमारी है और सरकार हैजा की दवा पिला रही है। ऐसे में आंदोलन जारी रखना, हमारी मजबूरी है। हम किसान लोग हैं। खेती-किसानी हमारी संस्कृति है और जीवन पद्धति भी है। हम इसे बरकरार रखना चाहते हैं लेकिन सरकार जबरदस्ती हमें ट्रेडर बनाना चाहती है।

सवाल: सरकार ने कृषि कानूनों को रद्द करने से इंकार कर दिया है लेकिन वह इसके प्रावधानों पर खुले मन से चर्चा को तैयार है। क्या रुख रहेगा आप लोगों का?

 

जवाब: इन कानूनों को रद्द करना ही हमारी एकमात्र मांग है। हमने शुरु से कहा है कि ये कानून ‘ए टू जेड’ किसान विरोधी हैं। दो-तीन संशोधनों से यह किसान हितैषी कानून नहीं बन जाएगा। ‘कॉस्मेटिक बदलाव’ करने से किसानों का हित नहीं होने वाला है। आजादी के बाद 500 किसान संगठन कभी एक साथ नहीं आए और एक सुर में बात नहीं की। यह सरकार अडाणी और अंबानी के निर्देश पर काम कर रही है। कानूनों के सारे फायदे किसानों को नहीं, उन्हें मिलेंगे। उन लोगों ने हजारों एकड़ जमीनें खरीद ली हैं। गोदाम बनाने शुरू कर दिये हैं। 70 सालों से चल रहे श्रम कानूनों को एक घंटे में समाप्त कर दिया गया। सारे मजदूरों का हक छीन लिया और सुविधाएं मालिकों को मुहैया करा दी गईं। तो कृषि कानूनों को समाप्त करने में क्या परेशानी है।

ये भी पढ़ें- आज CM भूपेश बघेल की रेडियो वार्ता लोकवाणी की 13 वीं कड़ी का प्रसार…

सवाल: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फिर कहा है ये कृषि कानून किसानों के हित में हैं?

 

जवाब: उनका ये गाना हम किसान बहुत दिनों से सुन रहे हैं। सुन-सुन कर हम थक गए हैं। ये गाना हमारी मौत का परवाना है। ये जिंदगी देने वाला नहीं है। इन कानूनों को रद्द करना ही किसान हित में होगा। संशोधन में हमें कोई विश्वास नहीं है।

ये भी पढ़ें- रन विथ छत्तीसगढ़ का आयोजन, सुबह मंत्रियों ने लगाई दौड़, सीएम भूपेश …

सवाल: दिल्ली दंगों के आरोपियों के पोस्टर इस आंदोलन में दिखे और उनकी रिहाई की मांग उठी। ये कैसा किसान आंदोलन?

 

जवाब: लाखों किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। कहीं एक कोने में कुछ लोगों ने यदि ऐसा किया तो पूरे आंदोलन पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। कभी हमने एक पत्ता तक नहीं तोड़ा। ये आंदोलन शांतिपूर्ण है और शांतिपूर्ण रहेगा। कोई भी अहिंसा की बात करेगा तो उसे आंदोलन से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। हिन्दू, मुसलमान करने में वे सफल नहीं हो पा रहे हैं तो सरकार आतंकवादी, नक्सली और खालिस्तानी बताकर इस आंदोलन को तोड़ना चाहती है। बदनाम करना चाहती है। ये किसानों का अपमान है।

ये भी पढ़ें- खुदाई के दौरान मिली 2 हजार साल पुरानी मुर्तियां, धातु से बने सिक्के और बर्तन


लेखक के बारे में

Shahnawaz Sadique is a digital marketing powerhouse with over 11 years of experience in the industry. His expertise encompasses a wide range of skills, from content writing and affiliate marketing to product launches and email campaigns. With 11 years of experience in social media, SMM, and SEO, he's an expert at helping businesses increase their online reach. From travel to business, education, media, tech, and cyber security, Shahnawaz has a proven track record of delivering results for clients across various sectors. Shahnawaz is also working as Sr. Digital Marketing Manager @ IBC24 News. He has a 8+ years of releveant experince in news industry as well. Want to take your media company to the next level? Look no further than Shahnawaz Sadique, He has been featured in top publications like FoxNews, Yahoo, MSN, WordStream, TastyEdits, LifeWire, SheFinds , Tech.Co and many more. the ultimate digital marketing pro.