केंद्र-दिल्ली सेवा विवाद: न्यायालय ने निर्वाचित सरकार की आवश्यकता को लेकर सवाल उठाया |

केंद्र-दिल्ली सेवा विवाद: न्यायालय ने निर्वाचित सरकार की आवश्यकता को लेकर सवाल उठाया

केंद्र-दिल्ली सेवा विवाद: न्यायालय ने निर्वाचित सरकार की आवश्यकता को लेकर सवाल उठाया

:   Modified Date:  January 12, 2023 / 10:56 PM IST, Published Date : January 12, 2023/10:56 pm IST

नयी दिल्ली, 12 जनवरी (भाषा) राष्ट्रीय राजधानी को संघ का विस्तारित क्षेत्र करार देने संबंधी केंद्र की दलीलों पर उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को दिल्ली में निर्वाचित सरकार की आवश्यकता को लेकर सवाल उठाया।

राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण को लेकर केंद्र एवं दिल्ली सरकार के बीच विवाद पर तीसरे दिन सुनवाई कर रही संविधान पीठ के समक्ष केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी होने के नाते दिल्ली का एक ‘‘अद्वितीय दर्जा’’ है और वहां रहने वाले सभी राज्यों के नागरिकों में ‘‘अपनेपन की भावना’’ होनी चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की।

एक फैसले का हवाला देते हुए, विधि अधिकारी ने कहा, ‘‘दिल्ली एक महानगरीय शहर है और यह लघु भारत की तरह है।’’

पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल थे।

दिन भर की सुनवाई के दौरान पीठ ने उन विषयों का उल्लेख किया जिन पर दिल्ली सरकार कानून बनाने में अक्षम है, और राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण के संबंध में कानूनी और संवैधानिक स्थिति के बारे में पूछा।

पीठ ने कहा, ‘‘एक व्यापक सिद्धांत के रूप में, संसद के पास राज्य की प्रविष्टियों और समवर्ती सूची (7वीं अनुसूची की) पर कानून बनाने का अधिकार है। दिल्ली विधानसभा के पास राज्य सूची के तहत सूची 1,2,18,64, 65 (सार्वजनिक आदेश, पुलिस और भूमि आदि) पर कानून बनाने का अधिकार नहीं है।’’

पीठ ने पूछा, ‘‘क्या सेवाओं की विधायी प्रविष्टि केंद्र शासित प्रदेश से संबंधित है?’’ पीठ ने कहा कि अगर संसद का कुछ क्षेत्रों पर विधायी नियंत्रण है, तो दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियों का क्या होगा।

अदालत जानना चाहती थी कि सॉलिसिटर जनरल यह बताएं कि कैसे सेवाओं का विधायी नियंत्रण कभी भी दिल्ली की विधायी शक्तियों का हिस्सा नहीं था।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘‘ राष्ट्रीय राजधानी संघ का विस्तारित क्षेत्र है। केंद्र शासित क्षेत्र (यूटी) को एक भौगोलिक क्षेत्र बनाने का मकसद यह दर्शाता है कि संघ इस क्षेत्र में शासन करना चाहता है।’’

इस पर पीठ ने कहा, ‘‘तो फिर दिल्ली में चुनी हुई सरकार होने का क्या मतलब है? यदि केवल केंद्र सरकार द्वारा ही प्रशासित किया जाना है तो फिर एक सरकार की जरूरत क्या है।’’

विधि अधिकारी ने कहा कि कुछ अधिकार साझे हैं और अधिकारियों पर कार्यात्मक नियंत्रण हमेशा स्थानीय रूप से निर्वाचित सरकार के पास रहेगा।

उन्होंने कहा, ‘‘कार्यात्मक नियंत्रण निर्वाचित सरकार का होगा और हमारा मतलब प्रशासनिक नियंत्रण से है।’’

इस मामले में सुनवाई 17 जनवरी को फिर शुरू होगी।

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने ‘‘सामूहिक जिम्मेदारी, सहायता और सलाह’’ को लोकतंत्र का ‘‘आधार’’ करार देते हुए बुधवार को कहा था कि उसे एक संतुलन बनाना होगा और फैसला करना होगा कि दिल्ली में सेवाओं पर नियंत्रण केंद्र या दिल्ली सरकार के पास होना चाहिए अथवा बीच का रास्ता तलाशना होगा।

शीर्ष अदालत ने पिछले साल 22 अगस्त को कहा था कि दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार की विधायी और कार्यकारी शक्तियों के दायरे से संबंधित कानूनी मुद्दे की सुनवाई के लिए एक संविधान पीठ का गठन किया गया है।

शीर्ष अदालत ने छह मई को दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजा था।

भाषा

देवेंद्र अविनाश

अविनाश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)