केंद्र ने फांसी की सजा के तौर पर घातक इंजेक्शन के इस्तेमाल का समर्थन नहीं किया: न्यायालय
केंद्र ने फांसी की सजा के तौर पर घातक इंजेक्शन के इस्तेमाल का समर्थन नहीं किया: न्यायालय
नयी दिल्ली, 15 अक्टूबर (भाषा) केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि मृत्युदंड की सजा पाए दोषियों को फांसी के बजाय सजा के तौर पर घातक इंजेक्शन लगाने का विकल्प देना ‘‘बहुत व्यावहारिक’’ नहीं हो सकता।
केंद्र की इस टिप्पणी के बाद न्यायालय ने कहा कि सरकार समय के साथ बदलाव के लिए तैयार नहीं है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें फांसी की सजा पाये दोषियों को फांसी देने के मौजूदा तरीके को कानून से हटाए जाने का अनुरोध किया गया था।
याचिका दायर करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि कम से कम एक दोषी कैदी को यह विकल्प दिया जाना चाहिए कि वह फांसी चाहता है या घातक इंजेक्शन।
मल्होत्रा ने कहा, ‘‘सबसे अच्छा तरीका घातक इंजेक्शन है, क्योंकि अमेरिका के 50 में से 49 राज्यों ने घातक इंजेक्शन को अपना लिया है।’’
उन्होंने कहा कि घातक इंजेक्शन लगाकर मौत की सजा देना त्वरित, मानवीय और सभ्य है, जबकि फांसी देना क्रूर और बर्बर है, क्योंकि इसमें शव लगभग 40 मिनट तक रस्सी पर लटका रहता है।
न्यायमूर्ति मेहता ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील को सुझाव दिया कि वह मृत्युदंड की सजा पाये दोषी को विकल्प उपलब्ध कराने के संबंध में मल्होत्रा के प्रस्ताव पर सरकार को सलाह दें।
केंद्र के वकील ने कहा, ‘‘इस बात पर भी ध्यान दिया गया है कि यह विकल्प देना बहुत व्यावहारिक नहीं हो सकता है।’’
न्यायमूर्ति मेहता ने कहा, ‘‘समस्या यह है कि सरकार समय के साथ बदलाव के लिए तैयार नहीं है… समय के साथ चीजें बदल गई हैं।’’
केंद्र के वकील ने दलील दी कि जवाबी हलफनामे में कहा गया है कि यह एक नीतिगत फैसला है और सरकार इस पर फैसला ले सकती है।
वकील ने इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा मई 2023 में पारित आदेश का हवाला दिया।
उस आदेश में, पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की उस दलील पर गौर किया था कि सरकार इस मामले में उठाए जाने वाले मुद्दों की समीक्षा के लिए एक समिति की नियुक्ति पर विचार कर रही है।
केंद्र के वकील ने कहा कि वे सरकार से निर्देश लेंगे कि समिति के संबंध में क्या हुआ है।
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 11 नवंबर तय की।
उच्चतम न्यायालय ने मार्च 2023 में कहा था कि वह विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने पर विचार कर सकती है, जो यह जांच करेगी कि क्या मौत की सजा पाए दोषियों को फांसी देना कम दर्दनाक है और उसने फांसी के तरीके से संबंधित मुद्दों पर केंद्र से ‘‘समुचित आंकड़ा’’ मांगा था।
हालांकि, पीठ ने स्पष्ट कर दिया था कि वह विधायिका को दोषी ठहराए गए लोगों को सजा देने का कोई विशेष तरीका अपनाने का निर्देश नहीं दे सकती।
मल्होत्रा ने 2017 में जनहित याचिका दायर कर फांसी पर लटकाकर मौत की सजा देने की मौजूदा प्रथा को समाप्त करने और इसके स्थान पर ‘‘अंतःशिरा घातक इंजेक्शन, गोली मारना, बिजली का झटका देना या गैस चैंबर’’ जैसे कम दर्दनाक तरीकों को अपनाये जाने का अनुरोध किया था।
केंद्र ने 2018 में इस कानूनी प्रावधान का पुरजोर समर्थन किया था कि मौत की सजा पाए दोषी को केवल फांसी पर लटकाया जायेगा और पीठ को बताया था कि घातक इंजेक्शन देकर और गोली मारने जैसे मृत्युदंड के अन्य तरीके भी कम दर्दनाक नहीं हैं।
भाषा
देवेंद्र नरेश
नरेश

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