चौबीस घंटों में दूसरी बार नड्डा से मिले मुख्यमंत्री रावत, लगने लगीं नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें
चौबीस घंटों में दूसरी बार नड्डा से मिले मुख्यमंत्री रावत, लगने लगीं नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें
नयी दिल्ली/देहराहून, दो जुलाई (भाषा) तीन दिनों से दिल्ली में डेरा जमाए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने शुक्रवार को, पिछले 24 घंटों के भीतर दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष जे पी नड्डा से मुलाकात की। मुलाकातों के इस दौर से प्रदेश में एक और नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें आरंभ हो गई हैं।
नड्डा के राजधानी स्थित आवास पर उनसे मुख्यमंत्री की लगभग आधे घंटे की यह मुलाकात ऐसे समय में हुई है जब रावत के भविष्य को लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं।
यह अटकलें इसलिए लग रही हैं क्योंकि उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में एक वर्ष से भी कम का समय बचा है और अपने पद पर बने रहने के लिए रावत का 10 सितम्बर तक विधानसभा सदस्य निर्वाचित होना संवैधानिक बाध्यता है।
पौड़ी से लोकसभा सांसद रावत ने इस वर्ष 10 मार्च को मुख्यमंत्री का पद संभाला था।
नड्डा से मुलाकात के बाद रावत ने पत्रकारों से चर्चा में कहा कि उन्होंने भाजपा अध्यक्ष से आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर चर्चा की। उनसे उपचुनाव के संबंध में जब सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह विषय निर्वाचन आयोग का है और इसके बारे में कोई भी फैसला उसे ही करना है। उन्होंने कहा कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व इस बारे में जो भी रणनीति तय करेगा उसे आगे धरातल पर उतारा जाएगा।
प्रदेश में फिलहाल विधानसभा की दो सीटें, गंगोत्री और हल्द्वानी रिक्त हैं जहां उपचुनाव कराया जाना है। चूंकि राज्य में अगले ही साल फरवरी-मार्च में विधानसभा चुनाव होना प्रस्तावित है और इसमें साल भर से कम का समय बचा है, ऐसे में कानून के जानकारों का मानना है कि उपचुनाव कराए जाने का फैसला निर्वाचन आयोग के विवेक पर निर्भर करता है।
उत्तराखंड में अटकलें लगाई जा रही हैं कि रावत गढ़वाल क्षेत्र में स्थित गंगोत्री सीट से उपचुनाव लड़ सकते हैं। मुख्यमंत्री रावत बुधवार को अचानक दिल्ली पहुंचे थे। बृहस्पतिवार को देर रात उन्होंने नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी।
भाजपा विधायक गोपाल सिंह रावत का इस वर्ष अप्रैल में निधन होने से गंगोत्री सीट रिक्त हुई है जबकि कांग्रेस की वरिष्ठ नेता इंदिरा हृदयेश के निधन से हल्द्वानी सीट खाली हुई है। हालांकि, अभी तक चुनाव आयोग ने उपचुनाव की घोषणा नहीं की है।
ज्ञात हो कि कोरोना काल में चुनाव कराने को लेकर निर्वाचन आयोग को पिछले दिनों अदालत की कड़ी टिप्पणियों का सामना करना पड़ा था। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ऐसे में निर्वाचन आयोग के लिए उपचुनाव कराना इतना आसान नहीं है।
हालांकि, भाजपा नेताओं का कहना है कि आम चुनाव में साल भर से कम समय शेष होने के कारण उपचुनाव कराना निर्वाचन आयोग की बाध्यता नहीं है।
विकासनगर से भाजपा विधायक और पूर्व प्रदेश पार्टी प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान ने कहा, ‘‘यह निर्णय पूरी तरह से चुनाव आयोग के दायरे में है कि राज्य में उपचुनाव कराना है या नहीं। सब कुछ निर्वाचन आयोग पर निर्भर करता है।’’
अगर उपचुनाव होता है तो रावत उसमें निर्वाचित होकर मुख्यमंत्री के पद पर बने रह सकते हैं लेकिन प्रदेश के विधानसभा चुनावों में एक साल से भी कम का समय बचे होने के मददेनजर उपचुनाव होने पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि उपचुनाव न होने की स्थिति में संवैधानिक संकट का हल तभी निकल सकता है जब मुख्यमंत्री रावत के स्थान पर किसी ऐसे व्यक्ति को कमान सौंपी जाए जो विधायक हो।
भाषा दीप्ति ब्रजेन्द्र ब्रजेन्द्र पवनेश
पवनेश

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