नयी दिल्ली, छह अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु के पूर्व मंत्री एवं द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) नेता वी. सेंथिल बालाजी की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने यह स्पष्ट करने का न्यायालय से अनुरोध किया था कि कथित ‘नौकरी के बदले नकदी’ घोटाला मामले की सुनवाई के दौरान क्या उन्हें दोबारा मंत्री बनाया जा सकता है।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बालाजी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की वह दलील खारिज कर दी कि इस न्यायालय ने कभी उनके (बालाजी के) मंत्री बनने पर कोई रोक नहीं लगाई है।
पीठ ने कहा, “हम आपके मंत्री बनने को लेकर किसी भी रोक को किसी व्यादेश (इनजंक्शन) के तौर पर नहीं पढ़ते हैं, लेकिन यदि राज्य का माहौल प्रभावित होता है तो न्याय की प्रक्रिया सुनिश्चित करनी होगी।’’
सिब्बल ने कहा कि 28 अप्रैल के आदेश में मंत्री पद संभालने पर कोई प्रतिबंध नहीं है और अभियोजन के दौरान मंत्री बनने पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकती।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने सिब्बल से सवाल किया कि यह अर्जी तमिलनाडु सरकार में मंत्री पद से बालाजी का इस्तीफा मांगने वाले न्यायमूर्ति अभय एस ओका के सेवानिवृत्त होने के बाद क्यों दायर की गयी।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इस अर्जी के समय पर सवाल उठाए।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि न्यायालय ने मंत्री पद संभालने पर रोक नहीं लगाई थी, लेकिन जब पाया गया कि बालाजी जमानत पर रिहा होने पर मंत्री बनने के कुछ ही दिनों के भीतर मामले की जांच पर प्रभाव डाल रहे थे, तब अदालत ने कहा था, ‘‘बेहतर है आप जेल में ही रहिए।’’
पीठ ने बताया कि अदालत ने अप्रैल में बालाजी को स्पष्ट कर दिया था कि वह मंत्री पद या स्वतंत्रता में से एक को चुनें, अन्यथा जमानत रद्द की जाएगी।
इससे पहले बालाजी ने 27 अप्रैल को मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन के नेतृत्व वाली कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था।
पीठ ने एक अन्य याचिका में तमिलनाडु सरकार से पूछा कि इन मामलों को दिल्ली या किसी अन्य तटस्थ स्थान पर स्थानांतरित क्यों नहीं किया जाता, क्योंकि जांच-पड़ताल पूरी हो चुकी है और केवल मुकदमे की सुनवाई बाकी है।
तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी और अमित आनन्द तिवारी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि ऐसा करने से राज्य न्यायपालिका की छवि खराब होगी।
पीठ ने कहा कि यह केवल सुझाव है, क्योंकि जब कोई उच्च सरकारी पदाधिकारी पर मुकदमा चलता है, तो प्रभाव डालने या सुनवाई में देरी के आरोप लगते हैं।
बालाजी ने सितंबर 26, 2024 को ईडी द्वारा दर्ज मामले में जमानत हासिल की थी। उन्होंने जेल में 15 महीने से अधिक समय बिताया है और अदालत ने कहा था कि निकट भविष्य में मुकदमे का पूरा होना संभव नहीं दिखता।
भाषा सुरेश दिलीप
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