नयी दिल्ली, 29 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार को वकील सुरेन्द्र गडलिंग से जुड़े 2016 के आगजनी मामले में दस्तावेज दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया। इस मामले में शीर्ष अदालत ने मुकदमे में देरी पर चिंता जताई थी।
न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ गडलिंग की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उन्होंने मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के जनवरी 2023 के आदेश को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने 2016 के सूरजगढ़ लौह अयस्क खदान आगजनी मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था।
उच्चतम न्यायालय ने 24 सितंबर को राज्य से कुछ स्पष्टीकरण मांगे और यह बताने को कहा था कि मुकदमे में देरी का कारण क्या है।
उसने राज्य से यह भी बताने को कहा था कि अभियोजन पक्ष कितने समय में मुकदमा पूरा कर लेगा।
बुधवार को सुनवाई के दौरान राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने पीठ से दस्तावेज़ पेश करने के लिए एक सप्ताह का समय देने का अनुरोध किया।
गडलिंग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने अनुरोध का विरोध किया और कहा कि चार सप्ताह से अधिक समय बीत चुका है तथा राज्य अब भी और समय मांग रहा है।
राजू ने पीठ से आग्रह किया कि दस्तावेज दाखिल करने के लिए अंतिम अवसर के रूप में एक सप्ताह का समय दिया जाए।
पीठ ने महाराष्ट्र को दस्तावेज दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दे दिया।
पीठ ने गडलिंग को जवाबी हलफनामा दाखिल करने की भी छूट दी और मामले की सुनवाई उसके बाद निर्धारित कर दी।
माओवादी विद्रोहियों ने 25 दिसंबर 2016 को कथित तौर पर 76 वाहनों को आग लगा दी थी जिनका उपयोग महाराष्ट्र के गडचिरोली में सूरजगढ़ खदानों से लौह अयस्क के परिवहन के लिए किया जा रहा था।
गडलिंग पर जमीनी स्तर पर सक्रिय माओवादियों को सहायता प्रदान करने का आरोप है। उन पर मामले के कई सह-आरोपियों और कुछ फरार आरोपियों के साथ मिलकर साजिश रचने का भी आरोप है।
गडलिंग 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में भी आरोपी हैं। पुलिस ने दावा किया था कि इन भड़काऊ भाषणों के कारण अगले दिन पुणे जिले में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क उठी थी।
भाषा गोला नरेश
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