अदालत ने प्रतिबंध के खिलाफ पीएफआई की याचिका की विचारणीयता पर फैसला सुरक्षित रखा
अदालत ने प्रतिबंध के खिलाफ पीएफआई की याचिका की विचारणीयता पर फैसला सुरक्षित रखा
नयी दिल्ली, 28 अगस्त (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की उस याचिका की विचारणीयता पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें केंद्र द्वारा उस पर लगाए गए पांच साल के प्रतिबंध को बरकरार रखने का विरोध किया गया था।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और सरकार के वकीलों की दलीलें सुनीं और कहा, ‘हम याचिका की विचारणीयता पर फैसला सुरक्षित रख रहे हैं।’
पीएफआई ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम न्यायाधिकरण के 21 मार्च, 2024 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें केंद्र के 27 सितंबर, 2022 के प्रतिबंध के फैसले को बरकरार रखा गया था।
केंद्र ने याचिका की विचारणीयता पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह विचारणीय नहीं है क्योंकि यूएपीए न्यायाधिकरण का नेतृत्व उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश कर रहे हैं, और इसलिए इस आदेश को भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती।
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘न्यायाधिकरण में इस उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश कार्यरत हैं, और उच्च न्यायालय का न्यायाधीश इस न्यायालय के अधीनस्थ नहीं होता। अनुच्छेद 227 अधीनस्थ न्यायालयों पर लागू होता है।’
सुनवाई के दौरान, पीएफआई के वकील ने दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका, उच्च न्यायालय के कार्यरत न्यायाधीश वाले यूएपीए न्यायाधिकरण के आदेश के विरुद्ध विचारणीय है।
अधिवक्ता ने कहा, ‘यूएपीए के तहत खर्चों का एक प्रावधान है, इसलिए उच्च न्यायालय का धन न्यायाधिकरण को नहीं जाता। न्यायाधिकरण को एक अलग खर्च प्रदान करना होगा। न्यायाधिकरण अपनी प्रक्रिया को विनियमित करने में सक्षम है, इसलिए दिल्ली उच्च न्यायालय के नियम न्यायाधिकरण पर लागू नहीं होते।’
उन्होंने आगे कहा, ‘यूएपीए कानून के विभिन्न प्रावधानों के तहत न्यायाधिकरण की शक्तियां भी विशेष रूप से प्रदान की गई हैं।’
पीएफआई ने दलील दी कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जब तक न्यायाधिकरण के रूप में कार्य कर रहे हैं, तब तक वह न्यायाधिकरण हैं, न कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश।
पीएफआई के वकील ने कहा, ‘‘इस प्रकार, न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। यह पीएफआई न्यायाधिकरण पूरे भारत में घूमता है। न्यायालय अलग-अलग अधिकार क्षेत्रों में जाकर काम नहीं करेगा। इस न्यायालय का अधिकार क्षेत्र सीमित है। न्यायाधिकरण के पास अधिकार क्षेत्र की कोई सीमा नहीं है।’’
न्यायाधिकरण को यूएपीए, 1967 की धारा 5 के तहत गठित एक अलग इकाई बताया गया।
पीएफआई के वकील ने कहा, ‘यह न्यायिक शक्ति का प्रयोग करता है, लेकिन केवल इसलिए कि यह न्यायिक शक्ति का प्रयोग करता है, इसका मतलब यह नहीं है कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत इस न्यायालय को अधिकार क्षेत्र प्राप्त नहीं है।’
केंद्र ने आईएसआईएस जैसे वैश्विक आतंकवादी संगठनों के साथ कथित संबंधों और देश में सांप्रदायिक नफरत फैलाने की कोशिश के लिए पीएफआई पर पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया है।
केंद्र ने पीएफआई और उसके सहयोगियों, संबद्ध संगठनों या मोर्चों को ‘गैरकानूनी संगठन’ घोषित किया है, जिनमें रिहैब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई), अखिल भारतीय इमाम परिषद (एआईआईसी), राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन परिसंघ (एनसीएचआरओ), राष्ट्रीय महिला मोर्चा, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल शामिल हैं।
संगठन पर प्रतिबंध लगाने वाली अधिसूचना में कहा गया है कि केंद्र का दृढ़ मत है कि पीएफआई और उसके सहयोगियों, संबद्ध संगठनों या मोर्चों को यूएपीए के तहत तत्काल प्रभाव से ‘गैरकानूनी संगठन’ घोषित करना आवश्यक है।
सितंबर 2022 में कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा छापेमारी और अखिल भारतीय स्तर पर की गई कार्रवाई में पीएफआई से कथित रूप से जुड़े 150 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया या गिरफ्तार किया गया।
भाषा रंजन रंजन माधव
माधव

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