न्यायालय ने पीएमएलए के तहत दोहरी जमानत शर्त को बरकरार रखा

न्यायालय ने पीएमएलए के तहत दोहरी जमानत शर्त को बरकरार रखा

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  • Publish Date - July 27, 2022 / 08:42 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:37 PM IST

नयी दिल्ली, 27 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 की संशोधित धारा 45 के तहत जमानत के लिए दोहरी शर्तों को बरकरार रखा।

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली न्यायालय की एक पीठ ने कहा कि धनशोधन एक जघन्य अपराध है, जो न केवल राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को प्रभावित करता है, बल्कि अन्य जघन्य अपराधों को भी बढ़ावा देता है।

पीठ ने कहा कि दो शर्तें, हालांकि आरोपी के जमानत देने के अधिकार को सीमित करती हैं, लेकिन पूर्ण अंकुश नहीं लगाती हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि 2018 में संशोधन के बाद से लागू प्रावधान उचित है और मनमानी या अयोग्यता के दोष से ग्रस्त नहीं है।

पीठ ने कहा कि उसका मानना है कि 2018 के संशोधन के बाद 2002 के अधिनियम की धारा 45 के रूप में प्रावधान संशोधन के रूप में उचित है और पैसे के खतरे से निपटने के लिए 2002 के अधिनियम द्वारा प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्यों और लक्ष्यों के साथ उसका सीधा संबंध है। 2002 के अधिनियम का लक्ष्य वित्तीय प्रणालियों और देशों की संप्रभुता और अखंडता को प्रभावित करने सहित अंतरराष्ट्रीय परिणामों वाले धनशोधन के खतरे से निपटना है।

पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार भी शामिल हैं।

दोहरी शर्तों में कहा गया है कि जब धनशोधन मामले में एक आरोपी जमानत के लिए आवेदन करता है, तो अदालत को पहले लोक अभियोजक को सुनवाई का अवसर देना होता है और जमानत तभी दी जा सकती है जब वह संतुष्ट हो जाए कि आरोपी दोषी नहीं है और रिहा होने पर उसके अपराध करने की संभावना नहीं है।

यह देखते हुए कि धनशोधन के अपराध को “दुनिया भर में” अपराध का एक गंभीर रूप माना जाता है, शीर्ष अदालत ने कहा कि यह अपराध का एक अलग वर्ग है जिससे निपटने के लिए प्रभावी और कड़े उपायों की आवश्यकता होती है।

न्यायालय ने कहा, “धनशोधन जघन्य अपराधों में से एक है, जो न केवल राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को प्रभावित करता है, बल्कि आतंकवाद, एनडीपीएस अधिनियम से संबंधित अपराध जैसे अन्य गंभीर अपराधों को भी बढ़ावा देता है।”

शीर्ष अदालत ने पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की व्याख्या से संबंधित याचिकाओं के एक समूह पर अपना फैसला सुनाया।

भाषा

प्रशांत पवनेश

पवनेश