डीसीपीसीआर ने अस्तित्वहीन ‘प्रेस विज्ञप्ति’ पर भरोसा करके गैर-जिम्मेदाराना कार्य किया: अदालत
डीसीपीसीआर ने अस्तित्वहीन 'प्रेस विज्ञप्ति' पर भरोसा करके गैर-जिम्मेदाराना कार्य किया: अदालत
नयी दिल्ली, 16 फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) ने ‘अस्तित्वहीन’ प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर वित्तपोषण को कथित तौर पर रोकने को लेकर उप राज्यपाल वी.के.सक्सेना के खिलाफ याचिका दायर कर गैर जिम्मेदाराना कार्य किया है।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि वित्तपोषण रोकने का कोई आदेश नहीं दिये जाने के उपराज्यपाल के विशिष्ट रुख पर याचिकाकर्ता का यह कदम अस्पष्ट है। उन्होंने कहा कि संवैधानिक प्राधिकार के खिलाफ आरोप लगाते समय निकाय को अधिक जिम्मेदारी बरतनी चाहिए थी।
अदालत ने कहा, ‘‘आप ऐसी प्रेस विज्ञप्ति के भरोसे हैं जिसका अस्तित्व नहीं है। आपने एक प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर रिट याचिका दायर की जिसका अस्तित्व ही नहीं था।’’
अदालत ने साथ ही कहा कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) डीसीपीसीआर के खातों की जांच कर सकते हैं।
अदालत ने मौखिक टिप्पणी की, ‘‘याचिकाकर्ता ने पूरी तरह से गैरजिम्मेदाराना काम किया। जब आप संवैधानिक प्राधिकार के खिलाफ आरोप लगा रहे हैं, तो आपको अधिक गंभीर होना पड़ेगा।’’
एकल पीठ ने कहा कि कोई भी इस तरीके से उप राज्यपाल के कार्यालय को ‘नीचा दिखाने’ की कोशिश नहीं कर सकता।
डीसीपीसीआर ने पिछले साल एक याचिका दायर की थी जिसमें उसके खिलाफ जांच और विशेष ऑडिट के आदेश के साथ-साथ उसे मिलने वाले धन को कथित तौर पर रोकने को चुनौती दी गई थी।
बाल अधिकार निकाय ने एक ‘प्रेस विज्ञप्ति’ पर भरोसा करते हुए दावा किया था कि उप राज्यपाल कार्यालय की उक्त कार्रवाई से झटका लगा है क्योंकि इस कदम से वैधानिक रूप से संरक्षित और स्वतंत्र संस्था पंगु हो जाएगी।
उप राज्यपाल ने हालांकि अदालत को बताया कि उनके कार्यालय ने बाल अधिकार निकाय को धन का आवंटन रोकने के लिए कोई आदेश पारित नहीं किया है और इस आशय की कोई प्रेस विज्ञप्ति जारी नहीं की गई थी।
भाषा धीरज माधव
माधव

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