दिल्ली की अदालत ने ‘नाबालिग’ से बलात्कार के आरोपी को बरी किया
दिल्ली की अदालत ने ‘नाबालिग’ से बलात्कार के आरोपी को बरी किया
नयी दिल्ली, 17 मई (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने 2020 में एक नाबालिग से बलात्कार करने और उसे गर्भवती करने के आरोपी व्यक्ति को यह कहते हुए बरी कर दिया कि कथित घटना के समय ‘‘पीड़िता’’ की उम्र 18 वर्ष से अधिक होने की बात सामने आयी है और उसने यह दावा नहीं किया कि आरोपी ने उसकी सहमति के बिना शारीरिक संबंध बनाये।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पूजा तलवार ने व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा।
हाल ही में उपलब्ध कराये गए तीन अप्रैल के आदेश में अदालत ने कहा, ‘‘आरोपी के खिलाफ वर्तमान कार्यवाही तब शुरू की गई जब वह पीड़िता को मेडिकल जांच के लिए अस्पताल ले गया और पीड़िता, जिसकी उम्र 17 वर्ष दर्ज की गई थी, उसके गर्भवती होने का पता चला। चूंकि वह नाबालिग थी, इसलिए पुलिस को सूचित किया गया और आरोपी को (जनवरी 2021 में) गिरफ्तार कर लिया गया।’’
अदालत ने कहा कि व्यक्ति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार) के अलावा, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम की धारा 4 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
अदालत ने कहा कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि कथित पीड़िता नाबालिग थी, पोक्सो अधिनियम के तहत आरोप नहीं बनता।
अदालत ने कहा, ‘‘जहां तक भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत अपराध का सवाल है, उक्त अपराध को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि आरोपी ने पीड़िता की इच्छा के विरुद्ध, उसके साथ शारीरिक संबंध उसकी सहमति के बिना जबरदस्ती बनाये।’’
अदालत ने लड़की के इस बयान पर गौर किया कि आरोपी के साथ सहमति से शारीरिक संबंध स्थापित करने के दिन वह वयस्क थी।
अदालत ने कहा, ‘‘अभियोजन पक्ष द्वारा जिस अगली गवाह से जिरह की गई वह पीड़िता की मां है। उसने भी गवाही दी कि प्राथमिकी दर्ज होने के समय पीड़िता बालिग थी और स्कूल में दाखिला लेने के समय उसने पीड़िता की उम्र कम कराकर दर्ज करायी थी।’’
अदालत ने कहा कि व्यक्ति को शारीरिक संबंध बनाने के लिए तभी उत्तरदायी ठहराया जा सकता था जब पीड़िता नाबालिग होती।
अदालत ने कहा, ‘‘हालांकि, अभियोजन पक्ष इसे साबित करने में विफल रहा और इसके विपरीत, पीड़िता ने यह बयान दिया कि दोनों के बीच संबंध सहमति से बने थे। जब पीड़िता की इच्छा के विरुद्ध या जबरदस्ती शारीरिक संबंध स्थापित करने का कोई आरोप नहीं है, तो आरोपी को आईपीसी की धारा 376 के तहत उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।’’
अदालत ने आरोपी व्यक्ति को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे उसके अपराध को साबित करने में असफल रहा।
भाषा
अमित पवनेश
पवनेश

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