लोकतांत्रिक देशों को 'आंतरिक ताकतों' पर भी गौर करना चाहिए : तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख |

लोकतांत्रिक देशों को ‘आंतरिक ताकतों’ पर भी गौर करना चाहिए : तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख

लोकतांत्रिक देशों को 'आंतरिक ताकतों' पर भी गौर करना चाहिए : तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख

:   Modified Date:  December 6, 2023 / 07:52 PM IST, Published Date : December 6, 2023/7:52 pm IST

नयी दिल्ली, छह दिसंबर (भाषा) तिब्बत की निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति पेंपा त्सेरिंग ने कहा है कि तिब्बती लोग चीन के दमन के कारण ‘धीमी मौत मर रहे हैं’ और लोकतांत्रिक देशों को चीनी हठधर्मिता के खिलाफ खड़ा होना चाहिए।

त्सेरिंग ने कहा कि दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों को तिब्बतियों, उइगर नेताओं और हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं जैसी ‘आंतरिक ताकतों’ पर गौर करना चाहिए ताकि बीजिंग पर उसके आक्रामक दृष्टिकोण को बदलने और देश के भीतर ‘सकारात्मक बदलाव’ लाने के लिए दबाव डाला जा सके।

उन्होंने कहा कि चीन के रणनीतिक उद्देश्यों और योजनाओं की हद को लेकर दुनिया में ज्यादा समझ नहीं है और बीजिंग की साजिशें क्या हैं, इस बारे में जागरूकता पैदा करने की जरूरत है।

पंचेन लामा पर एक जागरूकता कार्यक्रम को संबोधित करने के दौरान निर्वासित केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सिक्योंग या राजनीतिक नेता ने चीन पर तिब्बत के अस्तित्व के ऐतिहासिक आधार को नष्ट करने का आरोप लगाया।

उन्होंने मंगलवार रात को कहा कि मैं दुनिया को बता रहा हूं कि ‘हम धीमी मौत मर रहे हैं, ड्रैगन (चीन) द्वारा हमारी सांसें निचोड़े जाने से हम त्रस्त हो रहे हैं।’’

चीन विरोधी विद्रोह के 1959 में असफल होने के बाद 14वें दलाई लामा तिब्बत से भागकर भारत आ गए और यहां उन्होंने निर्वासित सरकार की स्थापना की। चीन सरकार के अधिकारी और दलाई लामा या उनके प्रतिनिधि 2010 के बाद से औपचारिक वार्ता के लिए नहीं मिले हैं।

बीजिंग दलाई लामा पर ‘अलगाववादी’ गतिविधियों में शामिल होने और तिब्बत को विभाजित करने की कोशिश करने का आरोप लगाता रहा है और उन्हें एक विभाजनकारी व्यक्ति मानता है। हालांकि, तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने जोर देकर कहा है कि वह स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि ‘मध्य-मार्ग दृष्टिकोण’ के तहत ‘तिब्बत के तीन पारंपरिक प्रांतों में रहने वाले सभी तिब्बतियों के लिए वास्तविक स्वायत्तता’ की मांग कर रहे हैं।

त्सेरिंग ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा कि चीनी सरकार आर्थिक और राजनीतिक मोर्चों सहित विभिन्न घरेलू चुनौतियों का सामना कर रही है और उस देश के भीतर ‘सकारात्मक बदलाव’ लाने के लिए ‘आंतरिक और बाहरी ताकतों का मिलन’ होना चाहिए।

उन्होंने तिब्बतियों, उइगर नेताओं और हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं को आंतरिक ताकतों के रूप में चिह्नित किया जिनकी चीन और उसकी कम्युनिस्ट सरकार से गहरे मदभेद हैं।

हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थित तिब्बत की निर्वासित सरकार लगभग 30 देशों में रहने वाले एक लाख से अधिक तिब्बतियों का प्रतिनिधित्व करती है।

चीन की आंतरिक स्थिति पर टिप्पणी करते हुए त्सेरिंग ने दावा किया कि यह एकमात्र देश है जो बाहरी सुरक्षा की तुलना में आंतरिक सुरक्षा पर अधिक वित्तीय संसाधन खर्च करता है क्योंकि कम्युनिस्ट शासन को लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘ हम आंतरिक ताकते हैं। सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए आंतरिक और बाह्य शक्तियों का मिलन होना चाहिए। इसीलिए मैं सरकारों से कहता हूं, कृपया हमें साम्यवाद के पीड़ितों के नजरिए से न देखें, जिन पर आप केवल दया कर सकते हैं।’’

तिब्बती नेता ने कहा कि भारत भी अपनी चीन संबंधी रणनीति के लिए तिब्बतियों से जानकारी ले सकता है। उन्होंने भारत सहित लोकतंत्रिक देशों के चीन से संबंधित मुद्दों पर अधिक स्पष्टता से बोलने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।

त्सेरिंग ने कहा, ‘‘जब सहयोग के लिए संपर्क करते हैं, तो हम केवल लोकतांत्रिक विश्व से ही संपर्क कर सकते हैं। हम अन्य अधिनायकवादी शासनों से संपर्क नहीं कर सकते, क्योंकि वे चीन जैसी ही प्रथा का पालन करते हैं। एक बात जो हम कहते रहे हैं वह यह है कि जब चीन की बात आती है तो दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों को एक साथ आना चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ अधिनायकवादी शासन और उनकी विचारधारा तथा उसकी महत्वाकांक्षाओं के खिलाफ लड़ना महत्वपूर्ण है।’’

पूर्वी लद्दाख सीमा विवाद का जिक्र करते हुए, त्सेरिंग ने संबंधों को सामान्य बनाने के लिए सभी क्षेत्रों से सैनिकों की वापसी के लिए ‘कड़ा रुख’ अपनाने के नयी दिल्ली के कदम की सराहना की।

उन्होंने कहा, ‘‘ जब आप चीन से निपटते हैं तो आपको बहुत ही रणनीतिक रुख अपनाना पड़ता है। मुझे लगता है कि भारत सरकार ने अब तक बहुत मजबूत रुख अपनाया है कि जब तक दोनों पक्षों के सैनिक पीछे नहीं हटेंगे, तब तक संबंध सामान्य नहीं होंगे।’’

तिब्बती आध्यात्मिक नेता 14वें दलाई लामा के उत्तराधिकारी के मुद्दे पर भारत से अपेक्षाओं के बारे में पूछे जाने पर त्सेरिंग ने कहा कि नयी दिल्ली का बयान बहुत मददगार होगा। तिब्बती नेतृत्व कहता रहा है कि चीन अगले दलाई लामा का फैसला नहीं कर सकता।

भाषा धीरज संतोष

संतोष

 

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