धर्म संसद: न्यायालय ने अवमानना ​​याचिका पर सुनवाई से इनकार किया, अधिकारियों से नजर रखने को कहा

धर्म संसद: न्यायालय ने अवमानना ​​याचिका पर सुनवाई से इनकार किया, अधिकारियों से नजर रखने को कहा

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  • Publish Date - December 19, 2024 / 04:49 PM IST,
    Updated On - December 19, 2024 / 04:49 PM IST

नयी दिल्ली, 19 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने गाजियाबाद में यति नरसिंहानंद के ‘धर्म संसद’ कार्यक्रम को लेकर उत्तर प्रदेश के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना ​​याचिका पर सुनवाई करने से बृहस्पतिवार को इनकार कर दिया और प्रशासन से घटनाक्रम पर नजर रखने को कहा।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा, ‘‘कृपया अधिकारियों से कहें कि वे घटनाक्रम पर नजर रखें।’’

यति नरसिंहानंद फाउंडेशन की ओर से ‘धर्म संसद’ 17 दिसंबर से 21 दिसंबर के बीच गाजियाबाद के डासना में शिव-शक्ति मंदिर परिसर में आयोजित करने का प्रस्ताव था।

पीठ ने कहा, ‘‘नोडल अधिकारियों को इस पर नजर रखनी चाहिए कि क्या हो रहा है।’’ इसने यह सुनिश्चित करने को कहा कि शीर्ष अदालत के पिछले आदेशों का कोई उल्लंघन न हो।

शीर्ष अदालत ने 28 अप्रैल, 2023 को अपने एक आदेश में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा था कि नफरती भाषण देने वाले लोगों के खिलाफ बिना शिकायत के भी मामले दर्ज किए जाने चाहिए।

न्यायालय ने कहा कि 21 अक्टूबर, 2022 के शीर्ष अदालत के आदेश को धर्म की परवाह किए बिना लागू किया जाना चाहिए और मामले दर्ज करने में किसी भी तरह की देरी को अदालत की अवमानना ​​माना जाएगा।

आदेश में शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश समेत तीन राज्यों को घृणास्पद भाषण देने वालों पर नकेल कसने को कहा था।

पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि याचिकाकर्ता कानून में उपलब्ध उचित उपाय का सहारा ले सकते हैं।

इसने कहा कि तथ्य यह है कि वह अवमानना ​​याचिका पर विचार नहीं कर रही है और इसका मतलब यह नहीं है कि शीर्ष अदालत के पहले के निर्देशों का उल्लंघन होगा।

पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण से कहा, ‘‘हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि सभी मामले उच्चतम न्यायालय में नहीं आ सकते। अगर हम एक पर विचार करेंगे तो हमें सभी पर विचार करना होगा।’’

इसने कहा कि ऐसे अन्य मामले भी हैं जो इसी तरह गंभीर हैं।

अदालत ने कहा, ‘‘हम विचार करने के इच्छुक नहीं हैं…।’’

शीर्ष अदालत ने ‘धर्म संसद’ के खिलाफ आवाज उठाने वाले कुछ पूर्व नौकरशाहों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से 16 दिसंबर को कहा था कि मामले को तत्काल सूचीबद्ध कराने के लिए वे एक ई-मेल भेजें।

कार्यकर्ताओं और पूर्व नौकरशाहों ने नफरत फैलाने वाले भाषण एवं सांप्रदायिक गतिविधियों को अंजाम देने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई में शीर्ष अदालत की ‘‘जानबूझकर अवमानना’’ करने को लेकर गाजियाबाद जिला प्रशासन और उप्र पुलिस के खिलाफ अवमानना ​​​​याचिका दायर की थी।

याचिकाकर्ताओं में कार्यकर्ता अरुणा रॉय, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अशोक कुमार शर्मा, पूर्व आईएफएस अधिकारी देब मुखर्जी और नवरेखा शर्मा एवं अन्य शामिल हैं।

उत्तराखंड के हरिद्वार में पिछले ‘धर्म संसद’ कार्यक्रम में कथित नफरती भाषणों के कारण विवाद पैदा हो गया था और नरसिंहानंद सहित कई लोगों के खिलाफ आपराधिक अभियोग शुरू किया गया था।

भाषा नेत्रपाल सुरेश

सुरेश