नयी दिल्ली, 11 सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को इस बात को लेकर गहरी चिंता जताई कि ज्यादातर औद्योगिक इकाइयां अपने यहां पैदा होने वाले कचरे को बिना उपचारित किए सीधे नालों में फेंक देती हैं।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा की पीठ ने कहा कि अवजल शोधन संयंत्र (एसटीपी) और सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्र (सीईटीपी) से निकलने वाला उपचारित जल यमुना नदी में प्रवाहित होने से पहले अनुपचारित अपशिष्ट जल के साथ मिल जाता है, जिससे अपशिष्ट उपचार का पूरा उद्देश्य ही विफल हो जाता है।
पीठ ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (डीपीसीसी) को सभी औद्योगिक क्षेत्रों का चार्ट उपलब्ध कराने और राष्ट्रीय राजधानी में कारखानों एवं उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट के उपचार की निगरानी के लिए उठाए जा रहे कदमों की जानकारी देने का निर्देश दिया।
उच्च न्यायालय ने डीपीसीसी से यह भी बताने को कहा कि कितने कारखाने और उद्योग सीईटीपी से जुड़े हैं। उसने सुनवाई की अगली तारीख पर शहर में एसटीपी का निरीक्षण करने वाली विशेष समिति की रिपोर्ट पर दलीलें देने को कहा। इस रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश कारखाने अवजल सीधे नालों में बहा रहे हैं और उपचारित जल अनुपचारित अपशिष्ट जल के साथ मिलकर यमुना नदी में बह जाता है।
उच्च न्यायालय दिल्ली में जलभराव की समस्या से जुड़ी एक खबर पर स्वतः संज्ञान लेकर शुरू की गई जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। उसने मामले की अगली सुनवाई 19 सितंबर के लिए निर्धारित की।
भाषा पारुल माधव
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