क्या राज्यों को है समान नागरिक संहिता लागू करने का अधिकार ? विशेषज्ञ भी एक राय नहीं…जानें

संविधान विशेषज्ञ एवं लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि केंद्र और राज्य दोनों को इस तरह का कानून लाने का अधिकार है, क्योंकि शादी, तलाक, विरासत और संपत्ति पर अधिकार जैसे मुद्दे संविधान की समवर्ती सूची में आते हैं।

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  • Publish Date - February 13, 2022 / 05:53 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:56 PM IST
common civil code 1

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right to implement uniform civil code

नयी दिल्ली, 13 फरवी । उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शनिवार को कहा था कि अगर भाजपा राज्य में दोबारा चुनी जाती है तो पार्टी समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए एक पैनल गठित करेगी। हालांकि, विशेषज्ञ इस मुद्दे पर बंटे हुए हैं कि क्या किसी राज्य के पास समान नागरिक संहिता पर कानून लाने की शक्ति है।

संविधान विशेषज्ञ एवं लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि केंद्र और राज्य दोनों को इस तरह का कानून लाने का अधिकार है, क्योंकि शादी, तलाक, विरासत और संपत्ति पर अधिकार जैसे मुद्दे संविधान की समवर्ती सूची में आते हैं। लेकिन, पूर्व केंद्रीय कानून सचिव पीके मल्होत्रा ​​का मानना है कि केंद्र सरकार ही संसद के रास्ते ऐसा कानून ला सकती है।

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आचारी के मुताबिक, राज्य विधानसभा संबंधित राज्य में रहने वाले समुदाय के लिए कानून बना सकती है। उन्होंने कहा, ‘इसका मतलब है कि स्थानीय विविधताओं को राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानून के जरिये मान्यता दी जा सकती है। आचार्य के अनुसार, पर्सनल लॉ-विवाह, तलाक, विरासत और संपत्ति के अधिकार से जुड़े कानून-एक समान नागरिक संहिता के दायरे में आते हैं। लेकिन, मल्होत्रा की राय थी कि चूंकि संविधान का अनुच्छेद-44 पूरे भारत में सभी नागरिकों को संदर्भित करता है, तो केवल संसद ही ऐसा कानून बनाने के लिए सक्षम है।

गोवा में समान नागरिक संहिता होने से जुड़े सवाल पर मल्होत्रा ने कहा कि उनकी समझ के अनुसार, गोवा के भारत का हिस्सा बनने से पहले से ही यह कानून अस्तित्व में था। संविधान के अनुच्छेद-44 में यह प्रावधान है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।

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धामी ने शनिवार को कहा था कि समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने वाले पैनल में कानूनी विशेषज्ञ, सेवानिवृत्त लोग, बुद्धिजीवी और अन्य हितधारक शामिल होंगे। उत्तराखंड में सोमवार को मतदान होना है। धामी ने कहा था कि समिति के बनाए मसौदे के दायरे में विवाह, तलाक, संपत्ति और उत्तराधिकार से संबंधित मुद्दे शामिल होंगे। समान नागरिक संहिता भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का लगातार हिस्सा रही है।

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल ही में एक भाजपा सांसद को लिखे पत्र में कहा था कि एक समान संहिता के विषय के ‘महत्व’, इससे जुड़ी संवेदनशीलता और विभिन्न समुदायों को नियंत्रित करने वाले पर्सनल लॉ के प्रावधानों के गहन अध्ययन की आवश्यकता को देखते हुए समान नागरिक संहिता से संबंधित मुद्दों की जांच करने और सिफारिशें करने का प्रस्ताव 21वें विधि आयोग को भेजा गया था।

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हालांकि, 21वें विधि आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त 2018 को समाप्त हो गया। लोकसभा में एक सदस्य द्वारा समान नागरिक संहिता की जरूरत का मुद्दा उठाने पर रिजिजू ने कहा था, ‘22वां विधि आयोग इस मामले को देख सकता है।’

बीते दो वर्षों में विस्तृत शोध और राय-मशविरे के बाद विधि आयोग ने भारत में पारिवारिक कानूनों में सुधार पर एक परामर्श पत्र जारी किया था। विधि आयोग जटिल कानूनी मुद्दों पर सरकार को सलाह देता है।