म्यूकरमाइकोसिस से ठीक होने के बाद चेहरे पर असर और बोलने में दिक्कतें: आईसीएमआर अध्ययन

म्यूकरमाइकोसिस से ठीक होने के बाद चेहरे पर असर और बोलने में दिक्कतें: आईसीएमआर अध्ययन

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  • Publish Date - July 12, 2025 / 04:27 PM IST,
    Updated On - July 12, 2025 / 04:27 PM IST

नयी दिल्ली, 12 जुलाई (भाषा) भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक अध्ययन में पाया गया है कि जो लोग म्यूकरमाइकोसिस (दुर्लभ फंगल संक्रमण) से उबर चुके हैं वे ठीक होने के बाद भी बोलने में कठिनाई और चेहरे में विकृति जैसे दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों से जूझते हैं।

म्यूकरमाइकोसिस को ब्लैक फंगस के नाम से भी जाना जाता है, जिसके मामले कोविड-19 महामारी के वक्त सामने आए थे।

पिछले माह ‘क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजी एंड इंफेक्शन’ नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया कि अस्पताल में भर्ती म्यूकरमाइकोसिस के 686 मरीजों में से 14.7 प्रतिशत मरीजों की एक वर्ष के भीतर मौत हो गई तथा अधिकतर मौतें अस्पताल में भर्ती होने के शुरुआती वक्त में हुईं।

जिन लोगों के मस्तिष्क और आंख में ब्लैक फंगस का संक्रमण था, उनके जीवन को ज्यादा खतरा बताया गया था।

अध्ययन के प्रमुख लेखक और आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के डॉ. रिजवान एस. अब्दुलकादर के अनुसार, जिन मरीजों को शल्य चिकित्सा और ‘एंटीफंगल थेरेपी’ (विशेष रूप से एम्फोटेरिसिन-बी फॉर्मुलेशन के साथ पॉसाकोनाज़ोल) दोनों दी गईं उनकी जीवित रहने की दर काफी अधिक थी।

रिजवान ने कहा, ‘‘लेकिन जो मरीज जीवित बचे, उन्हें अक्सर विकृति और मानसिक तनाव का सामना करना पड़ा, जिनमें से 70 प्रतिशत से अधिक ने कम से कम एक चिकित्सीय दुष्परिणाम (जटिलता या विकलांगता) की बात कहीं और कुछ लोगों ने रोजगार खोया।’’

डॉ. रिज़वान और ‘ऑल-इंडिया म्यूकरमाइकोसिस कंसोर्टियम’ के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में भारत में अस्पताल में भर्ती म्यूकरमाइकोसिस मरीजों के जीवित रहने की दर, उपचार के परिणाम और ठीक होने के बाद जीवन की गुणवत्ता का मूल्यांकन किया गया।

इस अध्ययन में 686 मरीजों को शामिल किया गया था।

भाषा शोभना सुरेश

सुरेश