कर्नाटक में बंधुआ मजंदूरी से मुक्त कराए गए झारखंड के पांच मजदूर रांची लाए गए

कर्नाटक में बंधुआ मजंदूरी से मुक्त कराए गए झारखंड के पांच मजदूर रांची लाए गए

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  • Publish Date - January 7, 2022 / 11:13 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:50 PM IST

रांची, सात जनवरी (भाषा) कर्नाटक के होसपेट में डेढ़ माह से बंधक बनाये गये गुमला के पांच श्रमिकों को मुक्त कराकर शुक्रवार को रांची लाया गया और यहां पर कोविड-19 जांच कराने के बाद उन्हें गुमला जिला प्रशासन की मदद से उनके पैतृक गांव भेजा गया।

एक सरकारी प्रवक्ता ने शुक्रवार को बताया कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सरकार के हस्तक्षेप के बाद इन मजदूरों को मुक्त कराकर वापस लाया गया है।

उन्होंने बताया कि सोमवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गुमला के पांच मजदूरों के कर्नाटक के होसपेट में फंसे होने की जानकारी मिली, साथ ही उन्हें यह भी पता चला कि रोजगार का झांसा दे कर इन मजदूरों को कर्नाटक ले जाया गया और उन्हें वहां बंधुआ मजदूरी के लिए मजबूर किया जा रहा है।

प्रवक्ता के मुताबिक यह जानकारी मिलते ही मुख्यमंत्री ने श्रम एवं नियोजन मंत्री सत्यानंद भोक्ता को इन मजदूरों की सकुशल घर वापसी सुनिश्चित कराने को कहा।

मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप एवं श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता के निर्देश पर प्रवासी नियंत्रण कक्ष ने कर्नाटक के स्थानीय प्रशासन से संपर्क स्थापित कर इन प्रवासी श्रामिकों की वापसी का कार्य शुरू किया।

उन्होंने बताया कि शुक्रवार को इन सभी श्रामिकों को कर्नाटक से मुक्त करा रांची लाया गया, रांची पहुंचने पर इन सभी श्रामिकों की कोविड-19 जांच कर गुमला जिला प्रशासन की मदद से उनके पैतृक गांव भेजा गया।

छुड़ाए गए श्रामिकों में गुमला के कोयंजरा गांव के प्रकाश महतो, पालकोट निवासी संजू महतो, मुरकुंडा के सचिन गोप, राहुल गोप एवं मंगरा खड़िया शामिल हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘हमें तो लगा था अब लौट नहीं पाएंगे लेकिन सरकार की मदद से आज वापस अपने घर लौट सके।’’ एक अन्य मजदूर प्रकाश ने कहा, ‘‘मैं एक परिचित के झांसे में बेहतर काम की उम्मीद से कर्नाटक गया था, लेकिन वहां हमसे 18-18 घंटे काम करवाया जाता था। डेढ़ महीने से वेतन भी नहीं मिला, खाना भी नहीं मिलता था। ऐसे में काम करने से मना करने पर पिटाई भी की जाती थी।’’ एक अन्य श्रमिक ने कहा, ‘‘हमें वहां 10-10 घंटे तक मछली पकड़ने का काम करना पड़ता, फिर इन मछलियों की छंटाई करनी पड़ती थी।’’

भाषा, इन्दु धीरज

धीरज