महामारी के समय में घर चलाने की मजबूरी : गर्भवती महिला मजदूरों को रोजाना जाना पड़ रहा है काम पर

महामारी के समय में घर चलाने की मजबूरी : गर्भवती महिला मजदूरों को रोजाना जाना पड़ रहा है काम पर

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  • Publish Date - September 29, 2020 / 11:07 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:17 PM IST

(अरुण शर्मा)

नयी दिल्ली, 29 सितंबर (भाषा) गर्भवती मजदूर महिलाएं दिन में ईंट और सीमेंट ढो रही हैं तथा काम समाप्त होने के बाद पानी की बड़ी- बड़ी बोतलें ढोकर अपनी आजीविका चला रही हैं। उनको पता भी नहीं है कि कोरोना वायरस संक्रमण के इस दौर में उनका और उनके अजन्मे बच्चे का क्या भविष्य होगा।

उनके जीवन में अनिश्चितताएं हमेशा से रही हैं लेकिन महामारी के दौर में इस अनिश्चितता का साया और घना हो गया है। लेकिन कोविड-19 के विचार और इसके खतरे के बीच काम के लिए बाहर निकलना उनकी मजबूरी है।

मरजीना सात महीने की गर्भवती है और काम एवं धन की समस्या के बीच कठिन समय में उसने ऋण ले रखा है। वहीं, ललिता के प्रसव का समय नजदीक है, फिर भी काम करना उसकी मजबूरी है क्योंकि उसके पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है।

गाजियाबाद के राजनगर एक्सटेंशन में झुग्गी-झोपड़ियों में रह रहीं इन महिलाओं को पता है कि ऐसे समय में जब दो जून की रोटी के लाले पड़े हैं तब नियमित तौर पर चिकित्सक के पास जाना और जांच कराना दूर की कौड़ी है।

महिलाएं कहती हैं कि वे भाग्यशाली हैं कि जब भी चाहती हैं, उन्हें काम मिल जाता है। इनमें से अधिकतर की उम्र 20 वर्ष के आसपास है और इतनी कम उम्र में गर्भधारण के कारण इनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता।

मरजीना (27) कहती है कि वह सुबह जल्दी उठ जाती है, खाना पकाती है, घर का कामकाज निपटाती है और अपनी आठ वर्ष की बेटी मारीश तथा पति माजरू के साथ उस स्थान पर पहुंच जाती है जहां निर्माण कार्य चल रहा है। परिवार दिन में केवल एक बार भोजन करता है। वह थक जाती है, लेकिन उसके पास कोई विकल्प नहीं है।

वह कहती है, ‘‘मैं अपने पति के साथ छह वर्षों से काम कर रही हूं। पहले हम दिन में दो बार भोजन करते थे लेकिन अब ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है।’’

मरजीना को प्रतिदिन जहां 250 रुपये मिलते हैं, वहीं उसके पति को 300 रुपये प्रतिदिन मिलते हैं।

उसने कहा, ‘‘हमने अपना भोजन कम करके प्रतिदिन एक बार कर दिया है क्योंकि एक रिश्तेदार से हमने ऋण लिया है और उसे चुकाना है।’’

मरीजाना की झुग्गी से कुछ दूरी पर ही ललिता का घर है।

ललिता की उम्र महज 18 वर्ष है और वह नौ महीने की गर्भवती है। पहले से ही उसके दो बच्चे हैं।

महामारी से पहले वह प्रतिदिन 300 रुपये और उसका पति संजय 450 रुपये कमाता था। चार लोगों के परिवार के भरण-पोषण के लिए यह धन पर्याप्त था लेकिन अब तीसरा बच्चा आने वाला है और अब वह सशंकित है कि परिवार कैसे चलेगा।

भाषा नीरज

नीरज नेत्रपाल

नेत्रपाल