कृष्ण खन्ना की कलाकृतियों में बंटवारे से लेकर वैश्विक महामारी तक की झलक

कृष्ण खन्ना की कलाकृतियों में बंटवारे से लेकर वैश्विक महामारी तक की झलक

कृष्ण खन्ना की कलाकृतियों में बंटवारे से लेकर वैश्विक महामारी तक की झलक
Modified Date: November 29, 2022 / 08:49 pm IST
Published Date: July 21, 2021 11:15 am IST

(त्रिशा मुखर्जी)

नयी दिल्ली, 21 जुलाई (भाषा) भारत के अंतिम बचे आधुनिकतावादियों (कला) में से एक कृष्ण खन्ना अब भी चित्रकारी करते हैं। इस महीने अपना 96वां जन्मदिन मनाने वाले चित्रकार ने कहा कि वह हमेशा किसी न किसी विषय पर काम करते रहते हैं, चीजें तलाशते रहते हैं और चित्रकारी उन्हें अब भी रोमांचित करती है।

खन्ना ने पीटीआई-भाषा को फोन पर दिए साक्षात्कार में कहा, “कला सिर्फ चेहरे या किसी भी चीज की तस्वीर बना देना नहीं है। यह अंतरात्मा का मंथन है जो बहुत जरूरी है। इसके बाद ही किसी दूसरी चीज का नंबर आता है।”

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अगर “आयु महज एक संख्या है” की उक्ति को सही माना जाए तो यह कलाकार जो अपनी कृतियों में विभाजन से लेकर महामारी तक समकालीन भारत के इतिहास को पिरोते हैं, इसे चरितार्थ करते हैं।

इस साल मई में, खन्ना को ग्रोसवेनोर गैलरी में एक प्रदर्शनी के लिए लंदन का सफर करना था जो कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण रद्द हो गई थी और बाद में उन्होंने अपने गुरुग्राम के घर से ऑनलाइन प्रदर्शनी “कृष्ण खन्ना : पेंटिंग्स फ्रॉम माय सिटिंग रूम” का आयोजन किया।

उनके लिए, कलाकृति बनाना कलाकार और उसकी रचना के बीच सहज लेकिन लंबी बातचीत के समान है, एक प्रक्रिया जो उनके पूरे अस्तित्व के केंद्र में रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘कई बार आप सीधे चित्रकारी में उतर जाते हैं। किसी विमर्श की प्रतीक्षा नहीं करते….आपको बस चित्र उतारना होता है। और एकबार जब आप शुरू करते हैं, तो चित्र आपसे बात करने लगते हैं। और यह लंबी बातचीत होती है।’’

उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं होता कि आपको हर बार पता हो कि क्या करना है। आपको नहीं पता होता। और मेरे विचार में चित्रकारी का सबसे बड़ा रोमांच है। आप हर वक्त चीजें तलाशते रहते हैं। यह बहुत खूबसूरत होता है।’’

1947 में देश के बंटवारे से लेकर अब कोविड-19 वैश्विक महामारी तक का सफर तय कर चुके, और बीच में पड़े सभी पड़ावों से खन्ना का साबका पड़ा है। शायद यह समृद्ध जीवन का अनुभव है जिसने उनके बहुमुखी काम को प्रेरित किया है जिसमें चित्र, चित्रांकन और रेखाचित्र शामिल हैं, जो साकार और अमूर्त दोनों हैं।

लेकिन उनका कोई पसंदीदा माध्यम या रूप नहीं है।

नौ जुलाई, 1925 को फैसलाबाद (अब पाकिस्तान में) जन्मे खन्ना अपने घर से बेदखल कर दिए जाने के सदमे से गुजरे जब वह महज 22-23 साल के थे। उनके इस अनुभव की झलक उनके कई कार्यों पर देखने को मिलती है।

मुंबई के ‘बैंडवालों’ पर उनकी श्रृंखला, ट्रक ड्राइवरों, और विभाजन के उनके अनुभवों से प्रेरित चित्र उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से हैं।

खन्ना ने कहा कि कला उनके लिए कभी भी ‘उद्योग’ नहीं रहा जैसा कि आज उसे बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा, यह अच्छा है कि लोग गैलरी चलाते हैं लेकिन उनके पास भी ऐसी वीथिकाओं के लिए एक खास प्रकार की भावना होनी चाहिए।

भाषा

नेहा नरेश

नरेश


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