वर्क फ्रॉम होम से मिलेंगी खुशियां! ऐसा सोच रहे हैं तो फिर भ्रम में हैं आप, यहां जानें हकीकत

हद तो तब हो गई जब करीब 19 फीसदी वर्क फ्रॉम होम करने वाले कार्मचारियों ने अपनी जान लेने की कोशिश की। दूसरी तरफ ऑफिस जाकर काम करने वाले अधिक तरोताजा दिखाई दिए।

वर्क फ्रॉम होम से मिलेंगी खुशियां! ऐसा सोच रहे हैं तो फिर भ्रम में हैं आप, यहां जानें हकीकत

Do not panic if you go to job during retrenchment, follow these tips, the problem of household expenses and EMI will go away

Modified Date: November 29, 2022 / 07:53 pm IST
Published Date: September 6, 2022 11:25 am IST

work from home: जयपुर। कोरोना काल में पूरी दुनिया में लाखों कर्मचारियों ने वर्क फ्रॉम होम (घर से काम) किया। जिसके बाद ऐसा माना गया कि कर्मचारी घर में खुश रहेंगे और उत्पादकता बढ़ेगी, लेकिन यह हकीकत नहीं है जस्ट इसके उलट हो गया है। डॉ. सम्पूर्णानंद मेडिकल कॉलेज जोधपुर के अनुसार वर्क फ्रॉम होम ने कर्मचारियों में तनाव अधिक बढ़ाया। ऑफिस नहीं जाने के बावजूद उनमें घर बैठे-बैठे ही थकावट के शिकार हो गए।>>*IBC24 News Channel के WHATSAPP  ग्रुप से जुड़ने के लिए  यहां CLICK करें*<<

हद तो तब हो गई जब करीब 19 फीसदी वर्क फ्रॉम होम करने वाले कार्मचारियों ने अपनी जान लेने की कोशिश की। दूसरी तरफ ऑफिस जाकर काम करने वाले अधिक तरोताजा दिखाई दिए। उनमें तनाव का स्तर भी कम था। कई लोगों से संवाद के बाद तैयार रिसर्च रिपोर्ट में सामने आया कि वर्क फ्रॉम होम करने वाले कार्मिक अपनी निजी और कामकाजी जिंदगी में सामंजस्य बैठाने में सफल नहीं हो सके।

रिसर्च में कुल 200 कर्मचारी

मेडिकल कॉलेज के मनोविकार विभाग की ओर से किए गए शोध में कुल 200 कर्मचारी इस शोध कार्य के लिए चयनित किए गए। कॉलेज प्राचार्य के अनुसार 100 कर्मचारी वर्क फ्रॉम होम और 100 ही कोविड में दफ्तर जाने वाले कर्मचारियों से ऑनलाइन सर्वे किया गया। अधिकांश कर्मचारी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, मध्यप्रदेश जैसे उत्तरी राज्यों से चुने गए। वर्क फ्रॉम होम करने वालों में इंजीनियर व आइटी प्रोफेशनल्स अधिक थे। दफ्तर जाने वालों में अधिकांशतः बैंक कर्मचारियों व अन्य विभाग के कार्मिक शामिल किए।

 ⁠

work from home: ऑफिस जाना ही ठीक

इससे जो चीजें निकलकर सामने आयी इससे तो लगता है ऑफिस जाना ही ठीक है।

-वर्क फ्रॉम होम करने वाले 53 प्रतिशत में मॉडरेट डिप्रेशन दिखा। नियमित कार्मिकों में मॉडरेट डिप्रेशन केवल दो फीसदी और लाइट डिप्रेशन 39 फीसदी में पाया गया।
-शारीरिक व मानसिक थकावट यानी बर्न ऑफ इंडेक्स वर्क फ्रॉम होम करने वाले 56 प्रतिशत लोगों में थकावट की उच्च डिग्री मिली, जबकि रेगुलर ऑफिस वर्कर्स में यह 23 फीसदी ही मिली।
-वर्क फ्रॉम होम करने वाले 66 प्रतिशत कर्मचारी घर बैठे-बैठे थकावट से चूर रहे। इनमें औसत या औसत से अधिक थकान मिली, जबकि ऑफिस जाने वालों में इसका प्रतिशत 47 है।
-वर्क फ्रॉम होम करने वाले 19.8 प्रतिशत में आत्महत्या के विचार आए जबकि ऑफिस जाने वालों में यह लगभग नगण्य रहा।
-आनंद की अनुभूति के मामले में दोनों ही खाली थे। वर्क फ्रॉम होम करने 73.3 प्रतिशत व ऑफिस जाने वाले 76 प्रतिशत का कहना था कि वे कोविड में चीजों का उतना आनंद नहीं ले पा रहे हैं।

read more:Crime : घर में घुसकर महिलाओं के अंडर गारमेंट्स समेत नकदी चुराने वाला चोर CCTV में कैद…Watch Video.

read more:जिला जेल में बंद 26 कैदी मिले HIV पॉजिटिव, स्वास्थ्य विभाग में मचा हड़कंप, अब होगी महिला कैदियों की जांच


लेखक के बारे में

डॉ.अनिल शुक्ला, 2019 से CG-MP के प्रतिष्ठित न्यूज चैनल IBC24 के डिजिटल ​डिपार्टमेंट में Senior Associate Producer हैं। 2024 में महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय से Journalism and Mass Communication विषय में Ph.D अवॉर्ड हो चुके हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से M.Phil और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर से M.sc (EM) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। जहां प्रावीण्य सूची में प्रथम आने के लिए तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के हाथों गोल्ड मेडल प्राप्त किया। इन्होंने गुरूघासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर से हिंदी साहित्य में एम.ए किया। इनके अलावा PGDJMC और PGDRD एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी किया। डॉ.अनिल शुक्ला ने मीडिया एवं जनसंचार से संबंधित दर्जन भर से अधिक कार्यशाला, सेमीनार, मीडिया संगो​ष्ठी में सहभागिता की। इनके तमाम प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में लेख और शोध पत्र प्रकाशित हैं। डॉ.अनिल शुक्ला को रिपोर्टर, एंकर और कंटेट राइटर के बतौर मीडिया के क्षेत्र में काम करने का 15 वर्ष से अधिक का अनुभव है। इस पर मेल आईडी पर संपर्क करें anilshuklamedia@gmail.com