High Court took this big decision : नयी दिल्ली| दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि एक वैवाहिक मामले को एक अदालत से दूसरी अदालत में स्थानांतरित करने की याचिका पर फैसला करते समय पत्नी की सुविधा का अधिक ध्यान रखा जाना चाहिए और उसके स्थानांतरण के अनुरोध को तभी खारिज किया जा सकता है जब इसके ‘गंभीर कारण’ हों।
अदालत ने यह टिप्पणी 68-वर्षीया एक महिला द्वारा अपने 72-वर्षीय पति के खिलाफ अपना मुकदमा राजधानी में द्वारका की परिवार अदालत से कड़कड़डूमा की परिवार अदालत में स्थानांतरित करने संबंधी याचिका की सुनवाई के दौरान की।
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महिला ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत उसका मामला और आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत भरण-पोषण की याचिका पहले से ही कड़कड़डूमा जिला अदालत के समक्ष लंबित है।
High Court took this big decision : उनकी याचिका स्वीकार करते हुए, न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने कहा, ‘‘विशेष रूप से वैवाहिक विवादों में याचिका को स्थानांतरित करते समय अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल इस तरह से किया जाना चाहिए कि किसी भी पक्ष को कोई असुविधा न हो। यह एक स्थायी प्रथा है कि ऐसे मामलों में पत्नी की सुविधा को अधिक देखना पड़ता है।”
अदालत ने अपने हालिया आदेश में कहा, ‘‘याचिकाकर्ता-पत्नी के अनुरोध को केवल तभी अस्वीकार किया जा सकता है जब इसके पीछे गम्भीर कारण हों। मुझे वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता-पत्नी के मामले को स्थानांतरित करने के अनुरोध को अस्वीकार करने का कोई कारण नहीं दिखता।’’
पति के वकील ने स्थानांतरण की प्रार्थना का विरोध किया और कहा कि याचिकाकर्ता-पत्नी सभी लाभों का आनंद ले रही हैं और वर्तमान अर्जी सिर्फ उनके मुवक्किल को परेशान करने के लिए दायर की गयी थी।
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