नई दिल्लीः Madrasa of Uttar pradesh इस्लामिक स्कूल यानि मदरसे में दी जाने वाली तालीम को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मदरसे में आतंकवादी पैदा किए जाते हैं और कट्टरपंथी बनने की शिक्षा देने की बात कही जाती है। लेकिन उत्तर प्रदेश का एक ऐसा मदरसा है, जो इन सारे दावों को झूठा करार देता है। जी हां…लेकिन आप ये सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसी क्या बात है इस मदरसे में। तो चलिए आपको बताते हैं कि इस मदरसे में क्या खास बात है?
Madrasa of Uttar pradesh मिली जानकारी के अनुसार यह मदरसा उत्तर प्रदेश के औद्योगिक शहर गाजियाबाद के लोनी में स्थित है, जहां पंडित राम खिलाड़ी पिछले 15 साल से यहां पढ़ने वालों को तालीम दे रहे हैं। बताया गया कि तत्कालीन प्रधान मंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा 1994 में शुरू की गई मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत गणित, सामाजिक अध्ययन और विज्ञान जैसे विषयों की शुरूआत ने छात्रों को प्रतियोगी प्रवेश परीक्षाओं और नौकरियों की तैयारी में मदद की है। मदरसा जामिया रशीदिया की स्थापना वर्ष 1999 में 59 छात्रों के साथ की गई थी, जिनमें ज्यादातर आर्थिक रूप से गरीब मुस्लिम परिवारों के बच्चे थे।
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मदरसे के प्रिंसिपल राम खिलाड़ी कहते हैं कि ‘मदरसे में पढ़ने और पढ़ाने में कुछ भी गलत नहीं है। मैं इसका उदाहरण हूं। हम मदरसे में वही शिक्षा देते हैं, जो दूसरे स्कूलों में दी जाती है। हमारे बच्चे यहां नकाब पहनते हैं, हम नमाज के लिए कलमा पढ़ते हैं। हर स्कूल की तरह हमारे भी नियम हैं।” उनको कभी यह महसूस नहीं हुआ कि धर्म उनके काम में बाधा है। वह छात्रों और कर्मचारियों के साथ एक परिवार की तरह रहते हैं। राम खिलाड़ी का मानना है कि भारतीयों को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा पर ध्यान देना जरूरी है। मदरसों के बारे में बुरा बोलने वाले सभी लोगों के लिए उनकी कुछ सलाह है। वो कहते है कि शिक्षा हमें सही और गलत के बीच का अंतर बताती है। हम जो सुनते हैं वह झूठ हो सकता है और जो हम देखते हैं वह झूठ भी हो सकता है। इसके लिए सुनी सुनाई बातों को जज करना चाहिए। मदरसे में कुरान के अलावा हिंदी और अंग्रेजी जैसी भाषाएं और विज्ञान विषय भी पढ़ाए जाते हैं।
राम खिलाड़ी करीब 800 छात्रों और 22 शिक्षकों के प्रधानाध्यापक हैं। एक शिक्षक के रूप में वह बच्चों को हिंदी पढ़ाते हैं। उनका कहना है कि यहां आने से पहले उन्होंने दस साल तक कई स्कूलों में काम किया अध्यापन का कार्य किया, लेकिन यहीं पर उन्हें पढ़ाने के लिए अनुकूल माहौल मिला और नई नौकरी के लिए जाने का कभी मन नहीं किया। छात्र उन्हें “पंडित प्रिंसिपल सर” कहते हैं। वह बताते हैं कि मदरसे के हेड इमाम नवाब अली कहते हैं कि पहले माता-पिता अपने बच्चों को मदरसे में भेजने से हिचकते थे। अब हमारी क्लास फुल हो गई हैं। हम नए छात्रों के बैठाने के लिए कोशिश कर रहे हैं। जिससे उनको भी शिक्षा मिल सके।
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