भारत की सबसे लंबी रेल सुरंग परियोजना पर मंडरा रहा था खतरा, चुनौतियों से पार पाकर मिली सफलता

भारत की सबसे लंबी रेल सुरंग परियोजना पर मंडरा रहा था खतरा, चुनौतियों से पार पाकर मिली सफलता

भारत की सबसे लंबी रेल सुरंग परियोजना पर मंडरा रहा था खतरा, चुनौतियों से पार पाकर मिली सफलता
Modified Date: April 26, 2025 / 01:45 pm IST
Published Date: April 26, 2025 1:45 pm IST

जनासू, 26 अप्रैल (भाषा) उत्तराखंड में देवप्रयाग और जनासू के बीच भारत की सबसे लंबी रेल सुरंग का निर्माण कार्य पूरा करने में कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें एक आशंका भी थी कि सुरंग ढह सकती है और पूरी परियोजना खतरे में पड़ सकती। लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड (एलएंडटी) ने शनिवार को यह बात कही।

सुरंग के परियोजना निदेशक राकेश अरोड़ा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘शक्ति नामक सुरंग बोरिंग मशीन (टीबीएम) सुरंग के करीब पांच किलोमीटर अंदर थी, तभी उसका सामना चारों ओर से करीब 1,500 लीटर प्रति मिनट की दर से पानी के तेज बहाव से हुआ।’’

उन्होंने कहा, ‘‘उस समय सुरंग के अंदर टीबीएम ऑपरेटर के अलावा 200 लोग थे। यह सबसे कठिन क्षणों में से एक था, जब सुरंग में बाढ़ आने या इसके ढहने का खतरा था। हालांकि, हमने तुरंत सुधारात्मक उपाय किए।’’

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अरोड़ा ने बताया कि करीब एक महीने तक स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि उनकी टीम ने रिंग और आसपास की चट्टानों को स्थिर करने के लिए रसायन और सीमेंट ‘ग्राउटिंग’ के मिश्रण का इस्तेमाल करके इस पर काबू पाने की कोशिश की, जिसके परिणामस्वरूप पानी का प्रवाह कम होने लगा और इंजीनियर अंदरूनी हिस्सों को सफलतापूर्वक स्थिर करने में सफल रहे।

अरोड़ा ने कहा, ‘‘इसके अलावा, ऐसे भी मौके आए जब आसपास की नरम चट्टानों से भारी दबाव के कारण सुरंग के निर्माण कार्य के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया, जिसे टीबीएम शील्ड को बेंटोनाइट का उपयोग करके खुदाई कार्य में तेजी लाकर सफलतापूर्वक काबू कर लिया गया।’’

लगभग 125 किलोमीटर लंबी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लिंक परियोजना के तहत 14.57 किलोमीटर लंबी इस सुरंग की 16 अप्रैल को रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और रेलवे तथा राज्य के अन्य अधिकारियों की उपस्थिति में शुरुआत हुई थी।

देवप्रयाग-जनासू सुरंग सबसे लंबी होने के साथ-साथ, दुनिया में सबसे तेज गति से पूरी होने वाली सुरंग है। यह पहली बार था कि हिमालय में पहाड़ों की खुदाई के लिए 9.11 मीटर व्यास वाली ‘सिंगल शील्ड हार्ड रॉक टीबीएम’ का इस्तेमाल किया गया।

भाषा जोहेब नेत्रपाल

नेत्रपाल


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