शौर्य चक्र विजेता ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह की प्रेरणादायक चिट्ठी, लिखा- ’12वीं के मार्क्स तय नहीं करते कि…’

इस बीच जाबाज जवान की एक प्रेरणादायक चिट्टी सामने आई हैं, जो उनके हौसले की कहानी को बयां कर रहा है।

शौर्य चक्र विजेता ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह की प्रेरणादायक चिट्ठी, लिखा- ’12वीं के मार्क्स तय नहीं करते कि…’
Modified Date: November 29, 2022 / 08:38 pm IST
Published Date: December 10, 2021 1:12 pm IST

नई दिल्ली। तमिलनाडु के कुन्नूर में हुए हादसे में ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह ही सिर्फ जीवित बचे। इस घटना में CDS जनरल बिपिन रावत सहित 13 लोगों का निधन हो गया था। वरुण सिंह का वेलिंगटन स्थित सैन्य अस्पताल में इलाज चल रहा है। इस बीच जाबाज जवान की एक प्रेरणादायक चिट्टी सामने आई हैं, जो उनके हौसले की कहानी को बयां कर रहा है।

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जवान ने अपनी इस चिट्ठी में खुद में विश्वास रखने पर जोर दिया है। उन्होंने लिखा था, ‘ये कभी मत सोचना कि कक्षा 12वीं के मार्क्स ये तय करते हैं कि तुम जिंदगी में क्या हासिल करोगे। खुद में हमेशा भरोसा रखना और उद्देश्य पाने के लिए मेहनत करते जाना। ‘ जब ऐसे एजुकेशन सिस्टम में जिसमें बच्चों में, खासकर रिजर्व रहने वाले बच्चों में जबरदस्त दबाव की प्रवृत्ति दिखती है, उनके शब्द लाखों बच्चों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं।

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चार पन्नों की इस चिट्ठी में ग्रुप कैप्टन ने लिखा- ‘औसत दर्जे का होने में कोई बुराई नहीं है….लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आपकी जिंदगी में आने वाली चीजें भी औसत ही होंगी। अपनी जिंदगी की पुकार सुनिए… जो भी आप कर रहे हैं, उसमें पूरी जान लगा दीजिए…कभी हिम्मत मत हारिए।’

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जवान ने नेशनल डिफेंस एकेडमी में बिताए अपने वक्त और अपनी जिंदगी की कॉलिंग यानी उद्देश्य- एविएशन- को पहली बार महसूस करने के बारे में बताया है। हालांकि, वो कहते हैं कि उनमें तबभी उतना आत्मविश्वास नहीं था। वो लिखते हैं, ‘मैं बहुत ही औसत दर्जे का छात्र था, जो बड़ी मुश्किल से 12वीं कक्षा में फर्स्ट डिवीजन ला सकता था। मैं स्पोर्ट्स और दूसरी करिकुल गतिविधियों में भी उतना ही एवरेज था, लेकिन एयरप्लेन और एविएशन को लेकर मेरे अंदर एक जुनून था।’

Group Captain Varun Singh L… by Sumana Nandy

 

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ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह ने अपनी पढ़ाई हरियाणा के चंडीमंदिर कैंटोन्मेंट स्थित आर्मी पब्लिक स्कूल की। वहीं प्रिंसिपल को एक चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने लिखा था कि वो ये चिट्ठी ‘अपनी शेखी बघारने या अपनी ही पीठ थपथपाने के लिए’ नहीं लिख रहे हैं, बल्कि इस आशा के साथ अपने जीवन के अनुभव साझा कर रहे हैं कि ‘जो बच्चे इस तेज प्रतिद्वंद्विता वाली दुनिया में खुद को औसत महसूस करते हैं, उन्हें इससे कुछ प्रेरणा मिले।’

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