अनुच्छेद 370 पर फैसला जनता पर थोपने के बजाय उनकी सहमति से लेना चाहते थे : प्रधानमंत्री मोदी

अनुच्छेद 370 पर फैसला जनता पर थोपने के बजाय उनकी सहमति से लेना चाहते थे : प्रधानमंत्री मोदी

अनुच्छेद 370 पर फैसला जनता पर थोपने के बजाय उनकी सहमति से लेना चाहते थे : प्रधानमंत्री मोदी
Modified Date: August 5, 2024 / 01:49 pm IST
Published Date: August 5, 2024 1:49 pm IST

नयी दिल्ली, पांच अगस्त (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद-370 निरस्त करने के उनकी सरकार के फैसले के बारे में कहा कि ‘‘मेरे मन में यह बात बहुत स्पष्ट थी कि इस फैसले के क्रियान्वयन के लिए जम्मू कश्मीर की जनता को विश्वास में लेना नितांत आवश्यक है।’’

प्रधानमंत्री मोदी ने ‘‘370 : अनडूइंग द अनजस्ट, ए न्यू फ्यूचर फॉर जम्मू कश्मीर’’ नामक नयी किताब की प्रस्तावना में ये टिप्पणियां की हैं।

उन्होंने पुस्तक में लिखा, ‘‘हम चाहते थे कि जब भी यह निर्णय लिया जाए तो यह लोगों पर थोपने के बजाय उनकी सहमति से होना चाहिए।’’

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यह किताब गैर-लाभकारी संगठन ‘ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन’ ने लिखी है और इसे पेंगुइन इंटरप्राइज ने प्रकाशित किया है।

किताब में विस्तार से उन जानकारियों का उल्लेख किया गया है कि मोदी ने अपने लिए जो लक्ष्य तय किए थे, उन्हें कैसे हासिल किया।

प्रकाशकों ने बताया कि इस पुस्तक का विमोचन अगस्त में ही किया जाना है। उन्होंने कहा कि यह किताब ‘‘निस्संदेह भारत के इतिहास की सबसे बड़ी संवैधानिक उपलब्धि के साथ साथ यह भी बताती है कि कैसे प्रधानमंत्री मोदी ने असंभव प्रतीत होने वाला यह काम किया।’’

पेंगुइन ने सोमवार को अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के पांच साल पूरे होने पर एक बयान में कहा कि यह पुस्तक ‘‘स्वतंत्रता के समय की गयी कई भूलों पर प्रकाश डालती है, जिसकी परिणति अनुच्छेद 370 के अन्यायपूर्ण क्रियान्वयन के रूप में हुई। यह 1949 में लागू किए जाने के बाद से ही अनुच्छेद 370 के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रभावों पर चर्चा करती है।’’

प्रकाशकों ने दावा किया है कि यह ‘‘मोदी सरकार पर अपनी तरह की पहली किताब है जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित शीर्ष निर्णय निर्माताओं के साथ बातचीत के माध्यम से असल में निर्णय लेने की प्रक्रिया का दस्तावेजीकरण किया गया है।’’

इस पुस्तक की प्रशंसा करते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, ‘‘एक ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय का अत्यंत पठनीय विवरण, जिसने जम्मू-कश्मीर के विकास और सुरक्षा परिदृश्य को बदलते हुए राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा दिया है। यह पुस्तक इस पर प्रकाश डालती है कि कैसे पहले के युग के राजनीतिक समीकरणों और व्यक्तिगत रुझानों का राष्ट्रीय भावना ने अंतत: प्रतिकार किया।’’

भाषा गोला मनीषा

मनीषा


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