न्यायालय में अपील लंबित रहने पर जेल अधिकारी पैरोल और फरलो पर निर्णय ले सकते हैं: उच्च न्यायालय

न्यायालय में अपील लंबित रहने पर जेल अधिकारी पैरोल और फरलो पर निर्णय ले सकते हैं: उच्च न्यायालय

न्यायालय में अपील लंबित रहने पर जेल अधिकारी पैरोल और फरलो पर निर्णय ले सकते हैं: उच्च न्यायालय
Modified Date: July 15, 2025 / 06:54 pm IST
Published Date: July 15, 2025 6:54 pm IST

नयी दिल्ली, 15 जुलाई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को अपने एक फैसले में कहा कि जेल अधिकारी पैरोल और फरलो की अर्जी पर तब भी निर्णय ले सकते हैं जब मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हो।

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की पीठ ने कहा कि यदि किसी दोषी की दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है, तो दिल्ली कारागार नियम पैरोल और फरलो पर विचार करने पर रोक नहीं लगाते।

हालांकि, पीठ ने यह भी कहा कि राहत दी जा सकती है या नहीं, यह एक अलग मुद्दा है और प्रत्येक निर्णय मामले के तथ्यों पर निर्भर करता है।

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फरलो और पैरोल में दोषी की जेल से अल्पकालिक अस्थायी रिहाई शामिल है।

पीठ ने कहा, ‘‘यह एक बिल्कुल अलग प्रश्न है कि यदि सर्वोच्च न्यायालय किसी विशेष अनुमति याचिका या अपील के माध्यम से मामले पर विचार कर रहा है, तो क्या किसी विशिष्ट मामले के तथ्यों के आधार पर जेल अधिकारियों को पैरोल या फरलो देना चाहिए। गुण-दोष के आधार पर पैरोल और फरलो देना या न देना प्रत्येक मामले के तथ्यों पर निर्भर करेगा।’’

पैरोल किसी कैदी को किसी विशिष्ट आवश्यकता को पूरा करने के लिए दी जाती है, जबकि फरलो बिना किसी कारण के निर्धारित वर्षों की सजा काटने के बाद दी जा सकती है।

पीठ ने कहा कि ऐसी स्थिति हो सकती है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने किसी विशेष दोषी की सजा निलंबित करने या उसे जमानत देने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया हो। उच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में जेल अधिकारियों को इस बात की गहन जांच करने की आवश्यकता होगी कि क्या दोषी को पैरोल या फरलो दिया जा सकता है।

पीठ ने स्पष्ट किया कि अधिकारी अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि पैरोल या फरलो को अधिकार के रूप में प्रदान किया जाना चाहिए।

भाषा संतोष माधव

माधव


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