न्यायाधीशों को केवल आईओ के एकत्र किए गए साक्ष्यों का मूल्यांकन करना चाहिए : उच्च न्यायालय

न्यायाधीशों को केवल आईओ के एकत्र किए गए साक्ष्यों का मूल्यांकन करना चाहिए : उच्च न्यायालय

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  • Publish Date - December 30, 2024 / 06:30 PM IST,
    Updated On - December 30, 2024 / 06:30 PM IST

बेंगलुरु, 30 दिसंबर (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि न्यायाधीशों को केवल जांच अधिकारी (आईओ) द्वारा एकत्र साक्ष्य का मूल्यांकन करके ही उसकी पर्याप्तता का आकलन करना चाहिए।

हाल ही में न्यायमूर्ति एच पी संदेश द्वारा दिए गए फैसले में न्यायालय ने आरोपमुक्त करने के आवेदनों को संशोधित करने की सीमित गुंजाइश पर जोर दिया। अदालत ने कहा कि ऐसी कार्यवाही के दौरान ‘‘संक्षिप्त सुनवाई’’ करना स्वीकार्य नहीं है, और केवल बचाव पक्ष की दलीलों को ध्यान में नहीं रखा जा सकता।

अदालत का यह फैसला डॉ. मोहनकुमार एम. द्वारा दायर समीक्षा याचिका को खारिज करते हुए आया, जिन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 109 के तहत अपराध को बढ़ावा देने और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप थे।

डॉ. मोहनकुमार पर अन्य आरोपी डॉ. सी. अनीशा रॉय की बेटी को एम.एस. रमैया मेडिकल कॉलेज में एमडी (पीडियाट्रिक्स) में दाखिला दिलाने के लिए 25 लाख रुपये की राशि के भुगतान का आरोप लगाया गया था।

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि यह भुगतान रॉय के लिए वित्तीय मदद थी, जिसने अपनी बेटी की शिक्षा के लिए सहायता मांगी थी।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि यह धनराशि उनकी खुद की कमाई थी, जैसा कि उनके बैंक खाते और आयकर रिटर्न से पता चलता है। अदालत को बताया गया कि भुगतान सीधे संस्थान के खाते में किया गया था, और उन्होंने आरोपी रॉय से कोई भी पैसा वापस पाने से इनकार किया।

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि वित्तीय मदद प्रदान करने को उकसावे के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि निचली अदालतों ने अन्य आरोपियों को इसी आधार पर बरी कर दिया था और उन्होंने खुद को भी आरोपमुक्त करने का अनुरोध किया।

अभियोजन पक्ष ने याचिका का विरोध किया, जिसमें याचिकाकर्ता के बैंक स्टेटमेंट और आयकर दस्तावेजों सहित साक्ष्य में विसंगतियों को उजागर किया गया।

अदालत को बताया गया कि 25 लाख रुपये के भुगतान से पहले डॉ. मोहनकुमार के खाते में 17.5 लाख रुपये नकद जमा किए गए थे, जो उनके आयकर रिटर्न में नहीं दर्शाया गया था।

उच्च न्यायालय ने आरोपमुक्त करने के आवेदन को निचली अदालत द्वारा खारिज करने के फैसले को उचित ठहराया। निचली अदालत ने इस बात पर जोर देते हुए आवेदन खारिज किया था कि जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्रियों को केवल बचाव पक्ष की दलीलों के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।

भाषा शफीक अविनाश

अविनाश