न्यायपालिका अपनी दायित्वों और कर्तव्यों के प्रति सचेत है: न्यायमूर्ति सूर्यकांत |

न्यायपालिका अपनी दायित्वों और कर्तव्यों के प्रति सचेत है: न्यायमूर्ति सूर्यकांत

न्यायपालिका अपनी दायित्वों और कर्तव्यों के प्रति सचेत है: न्यायमूर्ति सूर्यकांत

:   Modified Date:  May 15, 2024 / 10:13 PM IST, Published Date : May 15, 2024/10:13 pm IST

नयी दिल्ली, 15 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश सूर्यकांत ने बुधवार को कहा कि न्यायपालिका अपनी दायित्वों और कर्तव्यों के प्रति सचेत है और शक्तियों के पृथक्करण तथा कानून के शासन के सिद्धांतों को ध्यान में रखती है।

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ऊर्जा और उत्साह से भरपूर न्यायपालिका भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली की पहचान है जहां हम कानून के शासन और सुशासन में विश्वास करते हैं और यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि यह प्रतिबद्धता दिन-प्रतिदिन बनी रहे।’’

‘इंडियन काउंसिल फॉर लीगल जस्टिस’ द्वारा आयोजित ‘लोकतांत्रिक विकास में सतत न्यायशास्त्र’ विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी में न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि यह न्यायपालिका और न्यायिक तंत्र है, जो लगातार आम आदमी की चिंताओं से जुड़ा रहता है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं भारत में विधायिका की भूमिका को नजरअंदाज या कम करके आंकना भी नहीं चाहता। भारत उन लोकतंत्रों में से एक है जहां न्यायिक सक्रियता के अलावा हमने विधायी तंत्र का भी सुखद अनुभव किया है।’’

न्यायमूर्ति कांत ने कहा, ‘‘जब हम न्यायपालिका की भूमिका के बारे में बात करते हैं, तो हम शक्तियों के पृथक्करण और कानून के शासन के सिद्धांतों को भी ध्यान में रखते हैं। हम सभी वास्तव में मानते हैं कि न्यायपालिका अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों के प्रति सचेत है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ये बहुत ही मूलभूत सिद्धांत हैं जो न केवल सत्ता के केंद्रीकरण को रोकते हैं बल्कि यह भी सुनिश्चित करते हैं कि एक सफल और सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत की छवि वैश्विक मंच पर कायम रहे।’’

उन्होंने कहा कि पिछले सात दशकों में, देश ने सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और नैतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव देखा है और लिखित कानून दिन-प्रतिदिन के आधार पर इन सभी परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ‘‘ऐसे में सवाल नागरिकों के अधिकारों को लेकर उठता है। उनकी सुरक्षा कैसे की जाए और (वे) मूल्यों और लोकतांत्रिक अधिकारों को कैसे बनाये रखें? विधायी कार्यों को बार-बार संशोधित, अधिनियमित या निरस्त नहीं किया जा सकता है।’’ उन्होंने कहा कि यहां आधुनिक चुनौतियों से निपटने में न्यायपालिका की भूमिका की बात आती है।

संगोष्ठी में दिल्ली उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन ने कहा कि स्थायी न्यायशास्त्र में लोकतंत्र को बढ़ावा देने में प्रौद्योगिकी की भूमिका आगे बढ़ने वाली है और कहा कि इस संबंध में अदालतों द्वारा सभी कदम उठाए जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी को लेकर भी बड़ी चुनौतियां हैं। उन्होंने सोशल मीडिय पर प्रचारित तकनीक ‘डीप फेक’ का भी उदाहरण दिया और इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया।

भाषा

देवेंद्र माधव

माधव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)