किशोरों को वयस्क जेलों में रखना उन्हें स्वतंत्रता से वंचित करने के समान : न्यायालय

किशोरों को वयस्क जेलों में रखना उन्हें स्वतंत्रता से वंचित करने के समान : न्यायालय

किशोरों को वयस्क जेलों में रखना उन्हें स्वतंत्रता से वंचित करने के समान : न्यायालय
Modified Date: November 29, 2022 / 08:15 pm IST
Published Date: September 12, 2022 10:17 pm IST

नयी दिल्ली, 12 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि किशोरों को वयस्क जेलों में रखना उन्हें उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने के समान है और कोई आरोपी किशोर है या नहीं- यह तय करने में अति-तकनीकी दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए।

न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला की पीठ ने एक दोषी की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिका में अनुरोध किया गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार को अपराध की तारीख के दिन उसकी सही उम्र की पुष्टि करने का निर्देश दिया जाए।

वर्ष 1982 के एक हत्या के मामले में सर्वोच्च अदालत द्वारा आजीवन कारावास की पुष्टि किए जाने के बाद दोषी ने उम्र के सत्यापन की याचिका शुरू की थी।

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आजीवन कारावास की सजा काटने के दौरान इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले के अनुसरण में राज्य द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड ने उसका मेडिकल परीक्षण किया था।

मेडिकल बोर्ड ने यह प्रमाणित करते हुए अपनी रिपोर्ट दी कि 10 सितंबर, 1982 को कथित अपराध के दिन दोषी की उम्र लगभग 15 वर्ष रही होगी।

परिवार रजिस्टर व अन्य दस्तावेजों के आधार पर, दोषी ने उच्चतम न्यायालय में दावा किया कि 1982 में कथित अपराध के दिन वह किशोर था और मुकदमे में अन्य लोगों के साथ उसकी सुनवाई नहीं की जानी चाहिए थी।

पीठ ने उसकी याचिका पर फैसला सुनाते हुए सत्र अदालत को निर्देश दिया कि वह परिवार रजिस्टर की प्रामाणिकता और वास्तविकता की जांच करे जिस पर दोषी ने भरोसा करने का अनुरोध किया है।

भाषा अविनाश माधव

माधव


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