नयी दिल्ली, 8 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा पर 2021 के लखीमपुर हिंसा मामले में लगाई गई जमानत की शर्त में ढील दी और उन्हें सप्ताहांत पर अपने परिवार से मिलने की अनुमति दी।
आशीष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष दलील दी कि उनके मुवक्किल पिछले चार साल से अपनी बेटियों से नहीं मिले हैं, इसके बाद पीठ ने जमानत की शर्त में संशोधन करते हुए उन्हें इस मुकदमे की सुनवाई लंबित रहने तक लखीमपुर से बाहर रहने को कहा।
शीर्ष अदालत ने पहले आशीष को लखनऊ में रहने की अनुमति दी थी।
पीठ ने संबंधित आदेश में संशोधन करते हुए कहा कि आशीष 10 मई (शनिवार) की रात को लखीमपुर खीरी पहुंच सकते हैं और 11 मई (रविवार) तक वहां रह सकते हैं और उसी शाम लखनऊ लौट सकते हैं।
हालांकि, पीठ ने उन्हें लखीमपुर खीरी में कोई भी राजनीतिक बैठक या गतिविधि करने से रोक दिया।
शीर्ष अदालत ने मामले में तेजी से सुनवाई के लिए गवाहों की सूची में कटौती करने का काम सरकारी वकील पर छोड़ दिया।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा कि मामले में एक प्रत्यक्षदर्शी ने शीर्ष अदालत की छूट के बावजूद पुलिस से संपर्क नहीं किया।
प्रसाद के अनुसार, इस प्रत्यक्षदर्शी को आशीष के खिलाफ गवाही देने के लिए कथित तौर पर धमकाया गया था।
शीर्ष अदालत ने 24 मार्च को आशीष को रामनवमी के त्योहार पर लखीमपुर खीरी में अपने परिवार से मिलने की अनुमति दी थी।
इसके बाद न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दायर की गई स्थिति रिपोर्ट को रिकॉर्ड में लिया, जिसमें पुलिस ने पीड़ितों के इस दावे को खारिज कर दिया कि आशीष ने जमानत शर्तों का उल्लंघन करते हुए लखीमपुर खीरी में एक राजनीतिक रैली में भाग लिया था।
पुलिस ने अपनी स्थिति रिपोर्ट में कहा कि रैली में भाग लेने की उनकी तस्वीर एक पुरानी तस्वीर थी, जिसे अब प्रस्तुत किया गया था।
शीर्ष अदालत ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में गवाहों को प्रभावित करने के आरोप सामने आने के बाद 20 जनवरी को उत्तर प्रदेश पुलिस से रिपोर्ट मांगी थी।
मिश्रा ने आरोपों से इनकार किया था और कहा था कि हर बार जब मामला सूचीबद्ध होता है, तो शीर्ष अदालत द्वारा दी गई उनकी जमानत को रद्द कराने के लिए इस तरह के आरोप लगाए जाते हैं।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 22 जुलाई को उन्हें जमानत दे दी थी और दिल्ली और लखनऊ में उनकी आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया था।
भाषा सुरेश पवनेश
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