विधि मंत्रालय ने ‘सबसे बड़े मुकदमेबाज’ का ठप्पा हटाने के लिए बड़ा कदम उठाया

विधि मंत्रालय ने ‘सबसे बड़े मुकदमेबाज’ का ठप्पा हटाने के लिए बड़ा कदम उठाया

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  • Publish Date - December 29, 2025 / 11:43 AM IST,
    Updated On - December 29, 2025 / 11:43 AM IST

नयी दिल्ली, 29 दिसंबर (भाषा) केंद्रीय विधि मंत्रालय ने केंद्र सरकार पर लगे ‘‘सबसे बड़े मुकदमेबाज़’’ के ठप्पे को हटाने की दिशा में इस वर्ष एक अहम कदम उठाया लेकिन अदालतों में लंबित मामलों का बोझ घटाने में सहायक मानी जाने वाली मध्यस्थता को बढ़ावा देने की कोशिशें अपेक्षित गति नहीं पकड़ सकीं।

इस वर्ष नए कानून के तहत ज्ञानेश कुमार को नया मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया गया जिसकी विपक्ष ने “गैर-समावेशी” बताते हुए आलोचना की।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के अप्रासंगिक कानूनों को निरस्त करने के एजेंडे के तहत मंत्रालय ने 70 से अधिक अधिनियमों को निरस्त करने के लिए विधेयक पेश किया जिसे संसद ने शीतकालीन सत्र में मंजूरी दे दी। इनमें 65 संशोधन अधिनियम थे जो समय के साथ अपनी उपयोगिता खो चुके थे जबकि छह मूल कानून भी ऐसे थे जो अप्रासंगिक थे। निरस्त किए गए कानूनों में कम से कम दो कानून ब्रिटिश काल के थे।

मोदी सरकार मई 2014 से औपनिवेशिक काल के पुराने और अप्रासंगिक कानूनों को लगातार निरस्त कर रही है। ताजा निरस्तीकरण के बाद अब तक कुल 1,633 कानूनों को हटाने की प्रक्रिया पूरी की जा चुकी है।

पूर्व और मौजूदा विधि मंत्रियों का यही कहना रहा है कि अप्रासंगिक कानून आम लोगों के जीवन में अनावश्यक बाधा बनते हैं और वर्तमान समय में उनका कोई औचित्य नहीं रह जाता।

मंत्रालय ने लंबे समय से विचाराधीन ‘राष्ट्रीय मुकदमा नीति’ लाने का विचार आखिरकार छोड़ दिया ताकि केंद्र सरकार का ‘‘सबसे बड़े मुकदमेबाज’’ का ठप्पा हटाने में मदद मिल सके। इसके बजाय उसने विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के लिए मुकदमों के प्रभावी प्रबंधन और अनावश्यक अदालती लड़ाइयों को कम करने संबंधी निर्देश जारी किए।

मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि “नीति” शब्द इसलिए नहीं अपनाया गया क्योंकि यह व्यवस्था केवल सरकार एवं उसके विभागों पर लागू होती है, निजी मुकदमों पर नहीं।

उन्होंने कहा, ‘‘यदि कोई नीति केवल सरकार, उसके मंत्रालयों और विभागों पर लागू होती है और निजी मुकदमों पर नहीं, तो उसे नीति कहना उचित नहीं है।’’

उन्होंने कहा कि इसके अलावा ‘नीति’ के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी आवश्यक होती और भविष्य में किसी भी संशोधन के लिए मंत्रिमंडल की स्वीकृति लेनी पड़ती।

विधि कार्य विभाग द्वारा जारी “भारत सरकार द्वारा दायर वाद के कुशल एवं प्रभावी प्रबंधन संबंधी निर्देशों’’ को सचिवों की समिति ने मंजूरी दी और इनकी वार्षिक समीक्षा का प्रावधान रखा गया है। इन निर्देशों का लक्ष्य “सार्वजनिक हित और बेहतर शासन” को बढ़ावा देना है।

विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कानूनी सूचना प्रबंधन एवं ब्रीफिंग प्रणाली (एलआईएमबीएस) पर उपलब्ध आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा था, ‘‘लगभग सात लाख ऐसे मामले लंबित हैं जिनमें भारत सरकार पक्षकार है। इनमें से लगभग 1.9 लाख मामलों में वित्त मंत्रालय का नाम पक्षकार के रूप में दर्ज है।’’

हालांकि सरकार ने उन मुकदमों के बोझ को घटाने के लिए कदम उठाए जिनमें वह पक्षकार है लेकिन मंत्रालय दो साल पहले पारित कानून के तहत अनिवार्य मध्यस्थता परिषद की स्थापना नहीं कर सका।

‘मध्यस्थता अधिनियम, 2023’ के तहत मध्यस्थता परिषद का गठन प्रस्तावित है, जो मध्यस्थता के संस्थागत ढांचे और सेवा प्रदाताओं की मान्यता की व्यवस्था तय करेगी। कानून के कुछ प्रावधान अक्टूबर 2023 में अधिसूचित किए गए थे, लेकिन ‘मध्यस्थता परिषद’ के गठन की प्रक्रिया अभी आगे नहीं बढ़ सकी।

भाषा सिम्मी मनीषा

मनीषा