(जयंत रॉय चौधरी)
कोलकाता, 11 मई (भाषा) बिहार में सबसे बड़ी वामपंथी पार्टी के रूप में उभरी भाकपा माले (लिबरेशन) ने भाजपा और उसकी विचारधारा को कम्युनिस्ट आंदोलन के लिए प्रमुख खतरा बताते हुए संभावना जताई है कि 2024 में होने वाले आम चुनावों से पहले राज्य में मुख्यमंत्री के लिए अपना चेहरा प्रस्तुत करके भाजपा अपनी स्थिति को और मजबूत करने का प्रयास करेगी।
बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में वामपंथी दलों ने 16 सीटों पर जीत हासिल की थी जिनमें से 12 पर भाकपा माले (लिबरेशन) के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। पार्टी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बढ़त को रोकने के लिए वह किसी भी राजनीतिक समीकरण की संभावना तलाश रही है।
पार्टी के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमारा मानना है कि भाजपा मुख्यमंत्री के रूप में अपने उम्मीदवार को लाने की कोशिश करेगी क्योंकि उसे लगता है कि उनके सहयोगी नीतीश कुमार की उपयोगित कम हो गयी है। वे नीतीश कुमार का नाम उप राष्ट्रपति पद के लिए बढ़ा सकते हैं या उन्हें अन्य किसी तरह मना सकते हैं।’’
इस तरह के कयास लगाये जा रहे थे कि भाजपा नीतीश कुमार को उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना सकती है, हालांकि जदयू ने इस तरह की अटकलों को खारिज कर दिया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) (लिबरेशन) के नेता अपनी पार्टी के सम्मेलन में शामिल होने यहां आये हैं। वह बिहार और झारखंड में अपना आधार मजबूत करने के लिए दशकों से प्रयासरत हैं।
दीपांकर ने यह पूर्वानुमान भी व्यक्त किया कि भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए ‘‘राज्य में जदयू और कांग्रेस दोनों को तोड़ने की कोशिश कर सकती है’’।
उन्होंने कहा कि भाजपा का राज्यों में सरकार बनाने के लिए ऐसा करने का इतिहास रहा है। दीपांकर ने कहा, ‘‘वह बिहार में उत्तर प्रदेश जैसा करेगी।’’
उनका इशारा 1990 के दशक के अंत में उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के विभाजन की तरफ था जिनसे अलग हुए धड़ों ने कल्याण सिंह को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने के लिए भाजपा को समर्थन दिया था।
उत्तर भारत के अधिकतर राज्यों में भाजपा ने अपना आधार मजबूत कर लिया है, लेकिन वह अभी बिहार, पंजाब और जम्मू कश्मीर में अपना मुख्यमंत्री नहीं बना सकी है।
इन तीनों राज्यों में बिहार सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है और इन तीनों में हिंदी पट्टी का भी एकमात्र राज्य है। 2019 के आम चुनाव में राज्य से लोकसभा के 40 सदस्यों में 17 सांसद भाजपा के चुने गये थे।
विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार भी चुपचाप अपने तरीके से आगे बढ़ रहे हैं। वह पिछले महीने इफ्तार पार्टी में शामिल होने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर पहुंचे थे जहां उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं से बात की।
एक सप्ताह बाद ही राजद नेता तेजस्वी यादव को जदयू के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित इफ्तार में बुलाया गया और नीतीश कुमार ने तेजस्वी को उनकी कार तक जाकर छोड़ा था।
बिहार में इस तरह के घटनाक्रम और समान नागरिक संहिता तथा लाउडस्पीकर पर नीतीश कुमार के भाजपा से अलग दिखने वाले रुख को राजनीतिक पंडित किसी पूर्व संकेत के तौर पर ले रहे हैं। हालांकि जदयू ने इन सब को ‘सामान्य शिष्टाचार’ कहकर खारिज कर दिया है।
दीपांकर ने जदयू के भाजपा से अलग होने की संभावना पर कुछ नहीं कहा। हालांकि उन्होंने कहा, ‘‘हमारा मकसद भाजपा को रोकना है और हम किसी भी ऐसे राजनीतिक समीकरण की संभावना तलाशेंगे जो ऐसा कर सकता हो।’’
भाषा वैभव नरेश
नरेश
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