ग्रेटर नोएडा। प्रशान्त अद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक एवम पूर्व सिविल सेवा अधिकारी आचार्य प्रशान्त ने कहा कि कि जीवन में करने योग्य एक ही काम है अपनी मुक्ति और जगत का कल्याण। अपनी मुक्ति के लिए आत्मज्ञान जरूरी है।उसके लिए हमें उपनिषदों के पास आने होगा। सामान्यजन के लिए उपनिषदों का व्यवहारिक ज्ञान हमें संतवाणी से ही मिल सकता है।
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नॉलेज पार्क दो में स्थित जीएन ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट में आयोजित दो दिवसीय संत समागम को संबोधित करते हुए आचार्य प्रशान्त ने कहा कि सभी ज्ञानी, संत हमें बता गए हैं और ग्रंथों में भी लिखा हुआ है कि सभी दर्दो की वजह आत्मा से दूरी ही है हम अपने को नहीं पहचानते बाहरी जगत को ही हम सच मानने लगते हैं, यही दुख का कारण है उन्होंने कहा कि व्यक्ति का सर्वोच्च कर्तव्य मुक्ति है इसके लिए जूझना पड़ता है मेहनत करनी पड़ती है वह हम करना नही चाहते हमारे पास अहम के बचाव के बहाने बहुत है।
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उन्होंने कहा कि अहम, प्रकृति व आत्मा जिसने भी इन तीन मन्त्रो को जान लिया तथा अपने जीवन में अपना लिया उसने वास्तविक आध्यात्म को जान लिया। इसलिए जो भी सही कर्म है उसे जान लो तथा ताकत झोंक दो तभी मुक्ति सम्भव है,दोष तो मात्र चुनाव का है प्रकृति के पास चुनाव का विकल्प नही होता उन्होंने कहा कि ज्ञान प्रेम से उठता है , प्रेम नही होगा तो ज्ञान नहीं होगा प्रेम एक चुनाव होता है ।जो खुद हो जाय वह मोह है,प्रेम सीखना पड़ता है। जो युवा में होता है उसे प्रेम नही कहते वह एक प्राकृतिक क्रिया भर है युवा हो गए किसी युवती की तरफ आकर्षित हो गए यह प्राकृतिक क्रिया है।
आचार्य प्रशान्त ने कहा कि दुख तभी होता है जब आत्मा से दूरी होती है कुछ भी न हो हम उसे घोषित कर देते है कि कुछ तो है इसमें अपना ही लालच होता है।उन्होंने कहा कि गुरु जो सही राह दिखाता है निर्गुण निराकार तक जाने का मार्ग बताए। गुरु एक विधि मात्र है ,गुरु एक सीढ़ी है वह मंजिल तक पहुंचा कर मुक्ति का मार्ग प्रशस्त बनने में सहायक भर हो सकता है कर्म तो तुम्हे खुद ही करना होगा। संतवाणी संध्या में कबीरदास, बाबा बुल्ले शाह के भजन भी गाये गए । इससे पूर्व आईआईटी दिल्ली एलुमिनी के सचिव पंकज कपाड़िया ने आचार्य प्रशान्त को अपनी संस्था की और से स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।