‘वन्यजीव अनुसंधान के लिए मील का पत्थर’: अरुणाचल में पहली बार कैमरे में कैद हुई पल्लास बिल्ली

‘वन्यजीव अनुसंधान के लिए मील का पत्थर’: अरुणाचल में पहली बार कैमरे में कैद हुई पल्लास बिल्ली

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  • Publish Date - September 9, 2025 / 03:05 PM IST,
    Updated On - September 9, 2025 / 03:05 PM IST

(तस्वीर सहित)

ईटानगर, नौ सितंबर (भाषा) अरुणाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले जंगलों में एक ऐतिहासिक वन्यजीव सर्वेक्षण में प्रकृति के दुर्लभ खजाने सामने आए हैं- इनमें रहस्यमयी और कम दिखाई देने वाली पल्लास बिल्ली का पहला फोटोग्राफिक प्रमाण भी शामिल है।

राज्य वन विभाग और स्थानीय समुदायों के सहयोग से डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया द्वारा किए गए सर्वेक्षण में 4,200 मीटर से ऊपर हिम तेंदुआ, सामान्य तेंदुआ, धूमिल तेंदुआ (क्लाउडेड लेपर्ड), और धारीदार जंगली बिल्ली की उपस्थिति भी दर्ज की गई।

राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक न्यिलयांग टैम ने कहा, ‘‘अरुणाचल प्रदेश में पल्लास बिल्ली की खोज पूर्वी हिमालय में वन्यजीव अनुसंधान के लिए एक मील का पत्थर है।’’

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया की असम और अरुणाचल कार्यालय की निदेशक अर्चिता बरुआ भट्टाचार्य ने बताया कि डार्विन इनिशिएटिव के माध्यम से ब्रिटेन सरकार द्वारा वित्तपोषित परियोजना के तहत पश्चिम कामेंग और तवांग जिलों में 2,000 वर्ग किलोमीटर के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में 83 स्थानों पर कुल 136 कैमरा लगाए गए हैं।

उन्होंने बताया कि सर्वेक्षण में कई प्रजातियों के लिए अधिकतम ऊंचाई के रिकॉर्ड दर्ज किए गए हैं, जैसे कि सामान्य तेंदुआ 4,600 मीटर, धूमिल तेंदुआ 4,650 मीटर, धारीदार जंगली बिल्ली 4,326 मीटर, हिमालयन वुड आउल 4,194 मीटर, तथा ग्रे-हेडेड फ्लाइंग गिलहरी 4,506 मीटर।

पल्लास बिल्ली ठंड के प्रति अनुकूलित है और सबसे दुर्लभ बिल्लियों में से एक है, इसकी तस्वीरें भी शायद ही कभी ली जा पाती हों और इसलिए इस प्रजाति की बिल्ली पर सबसे कम अध्ययन हुआ है।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के विज्ञान एवं हिमालय संरक्षण कार्यक्रम के प्रमुख ऋषि कुमार शर्मा ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में लगभग 5,000 मीटर की ऊंचाई पर पल्लास बिल्ली की खोज इस बात की ओर इशारा करती है कि उच्च हिमालय में जीवन के बारे में अब भी कितनी कम जानकारी है।

भाषा शोभना सुरेश

सुरेश