Minority status of AMU: खत्म होगा AMU का अल्पसंख्यक दर्जा! केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दी ऐसी दलील
Minority status of AMU: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक राष्ट्रीय संस्थान है, न कि अल्पसंख्यक संस्थान। साथ ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा देने का कोई अर्थ नहीं है।
Minority status of AMU: अलीगढ़। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे की वैधता के मामले में सुप्रीम कोर्ट में 09 जनवरी को सुनवाई शुरू हुई। जिसमें 7 जजों की पीठ ने इसे लेकर सुनवाई कर रही है। एएमयू के मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक राष्ट्रीय संस्थान है, न कि अल्पसंख्यक संस्थान। साथ ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा देने का कोई अर्थ नहीं है।
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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे वाले मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या ‘अल्पसंख्यक टैग’ विश्वविद्यालय के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह विश्वविद्यालय राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के रूप में 100 वर्षों से अधिक समय से मौजूद है। 7 न्यायाधीशों की पीठ के सदस्य जस्टिस दीपांकर दत्ता ने पूछा कि पिछले 100 वर्षों में, अल्पसंख्यक संस्थान टैग के बिना, यह (एएमयू) राष्ट्रीय महत्व का संस्थान बना हुआ है। इससे क्या फर्क पड़ता है कि अगर हम बाशा (अजीज बाशा फैसले) पर आपके साथ नहीं हैं? लोगों को इससे क्या फर्क पड़ता है कि वह अल्पसंख्यक संस्था है या नहीं? यह केवल ब्रांड नाम एएमयू है।
एएमयू के अल्पसंख्यक दावे का समर्थन करने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वकील शादान फरासत ने कहा कि 1967 के अजीज बाशा फैसले तक विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त था। बाद में 1981 में एएमयू अधिनियम में संशोधन के माध्यम से संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया। उन्होंने कहा कि हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2016 में आदेश दिया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है, लेकिन अदालत के यथास्थिति आदेश के अनुसार इसकी अल्पसंख्यक स्थिति जारी है।
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वहीं एएमयू ओल्ड बॉयज (पूर्व छात्र) एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने आज एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने के पक्ष में अपनी दलीलें जारी रखीं। उन्होंने कहा कि प्रशासन का अधिकार संस्थान के मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार है और यह उन लोगों के निकाय को सौंपा गया है। जिन पर संस्थापकों को कार्य जारी रखने का विश्वास था और यह सिर्फ अल्पसंख्यक नहीं है। इस पर मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की कि अनुच्छेद 30 यह अनिवार्य नहीं करता है कि अल्पसंख्यक संस्थानों का प्रशासन केवल अल्पसंख्यकों द्वारा किया जाना चाहिए और बोर्ड में हिंदू बहुमत भी हो सकता है। सीजेआई ने कहा कि यह अल्पसंख्यक को अपनी इच्छानुसार प्रशासन करने का अधिकार देता है, आपके पास अल्पसंख्यक हो सकते हैं या अल्पसंख्यक (सदस्य) नहीं हो सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 30 का मकसद अल्पसंख्यकों को घेरना नहीं है।

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