MNREGA Name Change: बदल जाएगा ‘मनरेगा’ का नाम!.. इस नाम से जानी जाएगी कांग्रेस की यह फ्लैगशिप योजना!.. आ गया मोदी सरकार का प्रस्ताव
MNREGA Name Change: महात्मा गांधी रोजगार योजना कानूनी तौर पर किसी भी ग्रामीण परिवार को, जो बिना स्किल वाला शारीरिक काम चाहता है, साल में 100 दिन की मज़दूरी वाली नौकरी की गारंटी देता है, जिससे यह एक अधिकार-आधारित प्रोग्राम माना गया है।
MNREGA Name Change || Image- Moneycontrol file
- मनरेगा नाम बदलने का बड़ा प्रस्ताव
- कांग्रेस-सरकार के बीच सीधा टकराव
- कैबिनेट में पूज्य बापू बिल पेश
MNREGA Name Change: नई दिल्ली: शहरों, सरकारी इमारतों, चौक-चौराहों के नाम में बदलाव के बाद अब केंद्र की मोदी सरकार एक और बड़ा फैसला लेने जा रही है। हालांकि इस फैसले के साथ ही कांग्रेस से उनका सीधा टकराव हो सकता है। केंद्र की एनडीए सरकार अब महात्मा गांधी रोरगार यानी मनरेगा का नाम बदलने जा रही है। सरकार ने इससे जुड़ा प्रस्ताव भी संसद में पेश कर दिया है।
कैबिनेट में रखा गया प्रस्ताव
सरकार के टॉप सूत्रों ने शुक्रवार को बताया कि केंद्रीय कैबिनेट महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट 2005 (MGNREGA) का नाम बदलकर “पूज्य बापू रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी बिल 2025” करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे सकती है। सूत्रों ने कहा कि नया नाम एम्प्लॉयमेंट गारंटी स्कीम के लिए एक नई पहचान और इसके दायरे को मज़बूत करने का संकेत देता है। इसके अलावा, कैबिनेट विकास भारत शिक्षा अधिष्ठान बिल 2025 को भी मंज़ूरी दे सकती है, जिसका मकसद एजुकेशन सेक्टर में काफ़ी सुधार करना है।
कांग्रेस और मनरेगा का पुराना संबंध
MNREGA Name Change: गौरतलब है कि, तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार में यह योजना सामने आई थी। इसे आजाद भारत के इतिहास में सबसे सफल रोजगार योजना के तौर अपर भी जाना जाता है। कांग्रेस इसे अपने सरकार के सबसे बड़े उपलब्धियों में शामिल करती रही है। हालाँकि मोदी सरकार ने इस योजना को लेकर उतनी गंभीरता नहीं दिखाई जितनी कांग्रेस की सरकार में देखने को मिली थी। खुद पीएम मोदी इस योजना के बहाने कांग्रेस पर तंज कस चुके है जबकि सरकार पर इस योजना के लिए आबंटित राशि में कटौती के आरोप भी लगते रहे है।
रोज़गार गारंटी में मनरेगा की अहम भूमिका
महात्मा गांधी रोजगार योजना कानूनी तौर पर किसी भी ग्रामीण परिवार को, जो बिना स्किल वाला शारीरिक काम चाहता है, साल में 100 दिन की मज़दूरी वाली नौकरी की गारंटी देता है, जिससे यह एक अधिकार-आधारित प्रोग्राम माना गया है। कोविड-19 महामारी के दौरान इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब बेरोजगारी अपने चरम पर पहुँच गई थी तब बड़े शहरों से वापस लौट रहे प्रवासी श्रमिकों की एक बड़ी संख्या को रोजगार हासिल हुआ। इस कार्यक्रम को कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने, घर के पास गारंटीशुदा वेतन प्रदान करने और अनौपचारिक श्रम बाजारों पर उनकी निर्भरता को कम करने का श्रेय भी दिया जाता है।
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