नारायण गुरु का दर्शन बहुसंख्यकवाद और असमानता को खारिज करता है: सिद्धरमैया

नारायण गुरु का दर्शन बहुसंख्यकवाद और असमानता को खारिज करता है: सिद्धरमैया

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  • Publish Date - December 31, 2025 / 05:23 PM IST,
    Updated On - December 31, 2025 / 05:23 PM IST

(तस्वीरों सहित)

वरकला (केरल), 31 दिसंबर (भाषा) कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने बुधवार को कहा कि भारत के आर्थिक प्रगति के दावों के बीच देश की कमजोर होती एकता की पृष्ठभूमि में संत एवं समाज सुधारक श्री नारायण गुरु का दर्शन बढ़ते बहुसंख्यकवाद और सामाजिक विभाजन के खिलाफ एक सशक्त अभिव्यक्ति बना हुआ है।

गुरु द्वारा स्थापित शिवगिरी मठ में 93वें शिवगिरी तीर्थ सम्मेलन में मुख्य अतिथि सिद्धरमैया ने इस बात पर अफसोस जताया कि आज का भारत एक विरोधाभास का सामना कर रहा है, जहां ‘हम आर्थिक विकास, डिजिटलीकरण के विस्तार और वैश्विक स्तर पर प्रभाव का दावा करते हैं, लेकिन हमारी सामाजिक एकजुटता कमजोर हो रही है और नफरत आम होती जा रही है’।

उन्होंने कहा कि जाति व्यवस्था समाप्त नहीं हुई है, बल्कि इसने अपना स्वरूप बदल लिया है।

इस बात को रेखांकित करते हुए कि सांप्रदायिकता अब खुले तौर पर ऊंच-नीच की बात नहीं करती बल्कि यह पहचान, डर और बहुसंख्यकवाद पर गर्व की भाषा बोलती है, सिद्धरमैया ने कहा कि गुरु ने इस खतरे को पहले ही भांप लिया था।

सिद्धरमैया ने कहा, ‘‘वह (गुरु) इस बात को समझते थे कि जब धर्म को करुणा और नैतिकता से अलग कर दिया जाता है, तो वह वर्चस्व का एक साधन बन जाता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘गुरु का दर्शन धार्मिक बहुसंख्यकवाद, समानता के बिना सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और न्याय के बिना राजनीतिक पहचान को सीधे तौर पर खारिज करता है। उनका संदेश हमें याद दिलाता है कि सामाजिक न्याय के बिना राष्ट्र निर्माण केवल राज्य निर्माण है, लोकतंत्र नहीं।’’

कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कोई संयोग नहीं था कि गुरु से मिलने के बाद महात्मा गांधी ने छुआछूत के खिलाफ अपना रुख और कड़ा कर लिया था और वह सादा जीवन जीने के पक्ष में आ गए थे।

उन्होंने यह भी कहा कि रविंद्रनाथ टैगोर का ‘सार्वभौमिक मनुष्य’ का विचार गुरु के कार्यों से प्रेरित था।

सिद्धरमैया ने कहा, ‘‘इस प्रकार, गुरु आध्यात्मिकता, तर्कवाद, मानवतावाद और सामाजिक न्याय को जोड़कर आधुनिक भारत के वैचारिक संगम पर खड़े हैं।’’

इस सम्मेलन का उद्घाटन केरल के मुख्यमंत्री पिनारयी विजयन ने किया।

सिद्धरमैया के अनुसार, गुरु का प्रभाव केवल केरल तक ही सीमित नहीं था।

उन्होंने कहा, ‘‘1925 में महात्मा गांधी के साथ उनके ऐतिहासिक संवाद ने स्वतंत्रता आंदोलन की बौद्धिक दिशा बदल दी। इसने गांधीजी को एक मूलभूत सत्य का सामना करने के लिए मजबूर किया कि ‘जाति सांस्कृतिक विविधता नहीं है, बल्कि संस्थागत अन्याय है।’’’

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने बताया कि गुरु ने आम के पेड़ के उदाहरण का प्रयोग करते हुए समझाया कि भले ही पत्तियां अलग-अलग हों, लेकिन उनका सार एक ही है। उन्होंने कहा कि इसी उदाहरण से महात्मा गांधी को यह अहसास हुआ कि दुनिया की सबसे गहरी सामाजिक समस्याएं विविधता नहीं बल्कि जाति और धर्म हैं।

सिद्धरमैया ने कर्नाटक पर गुरु के प्रभाव के बारे में भी बात की।

भाषा यासिर नरेश

नरेश