#NindakNiyre: मोटे अनाज जैसे तकनीकी विषय की इतना चर्चा क्यों, क्या भाजपा ने इसमें भी खींच रखा है वोटों का खाका, आइए समझते हैं |

#NindakNiyre: मोटे अनाज जैसे तकनीकी विषय की इतना चर्चा क्यों, क्या भाजपा ने इसमें भी खींच रखा है वोटों का खाका, आइए समझते हैं

ऐसा पहली बार हो रहा है जब एक तकनीकी और खांटी खेतिहर बात को राजनीतिक रूप से भी प्रचारित किया जा रहा है। राजनीति उसी की चर्चा ज्यादा करती है जो उसे फायदा देता हो। तब मोटा अनाज में ऐसा क्या है जो यह सियासत के केंद्र में आता जा रहा है।

Edited By :   Modified Date:  January 4, 2023 / 05:16 PM IST, Published Date : January 4, 2023/3:51 pm IST

बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक-आईबीसी24

आप सुन रहे होंगे वर्ष 2023 को भारत सरकार ने मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाने का फैसला किया है। इस वर्ष को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष यानि इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स मतलब आईवाईएम नाम दिया गया है। ऐसा पहली बार हो रहा है जब एक तकनीकी और खांटी खेतिहर बात को राजनीतिक रूप से भी प्रचारित किया जा रहा है। राजनीति उसी की चर्चा ज्यादा करती है जो उसे फायदा देता हो। तब मोटा अनाज में ऐसा क्या है जो यह सियासत के केंद्र में आता जा रहा है। जिस तरह की योजना है उससे लगता है जी-20 की बैठकों से लेकर शंघाई संघ जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों के साथ यह आम जनमानस में बड़ा स्ट्राइकिंग टॉपिक बनने जा रहा है। आखिर इस मोटे अनाज में ऐसा क्या है जो इसे लेकर सरकार, राजनीतिक दल और स्वास्थ, व्यवसाय और सोशल मीडिया चर्चा कर रहा है। चलिए देखते हैं।
नंबर-1, यह है क्या
?

मोटा अनाज यानि वह अनाज जिसमें रेशा ज्यादा होता है। इसमें ज्वार, रागी, बाजरा, कोदो, कुटकी आदि आते हैं। इसका सेवन सिंधु घाटी सभ्यता के समय भी किया जाता था। इसे 2 वर्षों तक साधारण रखरखाव के साथ संरक्षित रखा जा सकता है। सिर्फ 65 दिनों में यह फसल तैयार हो जाती है। अल्प सिंचित एरिया में भी यह अच्छी पैदावार देता है।

नंबर-2, क्या यह हेल्थ के लिए अच्छा है

मोटा अनाज यानि मिलेट्स हेल्थ के लिए सबसे अच्छे अनाज हैं। इसमें कॉर्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शीयम, मैगनीशियम, मैगनीज, जिंक, आयरन और पोटेशियम भरपूर पाया जाता है। यह डायबिटीज, हृदयरोग, हाई बीपी, कब्ज, एसिडिटी, दंतरोग, हड्डी, कॉल्स्ट्रॉल आदि में मददगार होता है। यह शरीर को गर्म रखता है इससे ठंड में होने वाली बीमारियां नहीं होती।

नंबर-3, उत्पादन, ट्रेडिंग

इसका भारत में दुनिया का 20 फीसद उत्पादन होता है और भारत निर्यात के मामले में 5वें नंबर पर है। भारत अकेले ही 170 लाख मीट्रिक टन उत्पादन करता है। लेकिन 2003 से 2022 के बीच में इसमें भारी गिरावट आई है। यह 21.32 बिलियन एमटी से घटकर 15.92 एमटी तक आ गया है। जबकि दुनिया में इसकी मांग बढ़ रही है। दुनिया के 130 देश उत्पादन करते हैं। भारत में हरितक्रांति 1960 से पहले तक यह 40 फीसद तक पैदा होता था, जो अब सिर्फ 20 फीसद रह गया है। इसके बाइ-प्रॉडक्ट नए स्टार्टप में जान डाल सकते हैं।

नंबर-4, इसके अभियान की बात

इस पर केंद्र सरकार देशभर में अलग-अलग राज्यों के साथ मिलकर विभिन्न गतिविधियां करेगी। इसमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, एक्सपर्ट्स व्यूज, स्पोर्ट्स एक्टिविटी, सही भोजन मेला आदि शामिल हैं। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसका प्रमोशन होगा। अजरबेजान, बेलारूस में भारतीय दूतावास अनेक गतिविधियां करेगा।

नंबर-5, इसके हेल्थ को फायदे

मोटा अनाज कुपोषण से लड़ेगा। भूजल स्तर के हालात गंभीर हैं। क्योंकि यह अनाज गेहूं, चावल की तुलना बहुत कम पानी लेता है। इससे भूजल सुधरेगा। यह भारत में बढ़ रही हृदय रोग समस्या को दूर करेगा। मोटा अनाज पेस्टीसाइड्स का उपयोग कम करके मिट्टी की गुणवत्ता संवारेगा। पेस्टीसाइड्स से पैदा होने वाली कैंसर जैसी बीमारियों से बचाएगा। मोटापे से लड़ेगा। जलवायु परिवर्तन के खतरों को बेअसर करेगा। धान प्रोसेसिंग सबसे ज्यादा कार्बन एमिशन का कारक है, जबकि मोटा अनाज न के बराबर एमिशन करेगा। भुखमरी से निपटेगा। भुखमरी के सूचकांक में भारत 81 में से 64 नंबर पर है। बच्चों के कुपोषण में दुनिया में दूसरे नंबर पर है।

नंबर-6, अब बात असली यानि सियासत की

इसके सबसे बड़ा उत्पादक राज्यों में सबसे ऊपर राजस्थान, हरियाणा, यूपी, एमपी, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिल, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना है। इनमें से राजस्थान, एमपी, कर्नाटक, तेलंगाना में 2023 में चुनाव हैं। एक अनुमान के मुताबिक राजस्थान में 72 फीसद, एमपी में 77 फीसद, कर्नाटक में 81 फीसद, तेलंगाना में 68 फीसद किसान हैं। इन राज्यों में 95 लोकसभा सीटें आती हैं। जिनमें से अभी भाजपा के पास 82 हैं। जबकि कर्नाटक, एमपी सिर्फ अभी भाजपा के पास है, राजस्थान कांग्रेस और तेलंगाना नए रूप में भारत राष्ट्र समिति के पास। इससे किसान जातियों से परे खेती के मामले में एक हो सकते हैं। भाजपा मानती है किसान आंदोलन से उसका कोर किसान वोटर खिसक रहा है। यह हार्डकोर ऐसा वोटर है जो ज्यादा आंकड़ों में नहीं उलझता और यह धर्म, राष्ट्रवाद से भी ऊपर अपनी आजीविका को रखता है। ऐसे में विरोधियों ने कर्जमाफी जैसे पैटर्न से चुनावों को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। इसलिए भाजपा चाहती है मोटा अनाज हेल्थ के लिए अच्छा होती ही है, पॉलिटिकल हेल्थ के लिए भी अच्छा सिद्ध हो। साथ ही साथ सिंधू घाटी सभ्यता में मोटे अनाज के इस्तेमाल का जिक्र, सही भोजन मेला जैसे कॉन्सेप्ट से इसका सनातन, राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, भारतीयता, किसान, कुपोषण, स्वास्थ्य, जीवनशैली का एक नया कॉम्बिनेशन तैयार हो ही रहा है।

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