नयी दिल्ली, 20 फरवरी (भाषा) रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी ‘दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड’ (डीएएमईपीएल) ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह डीएमआरसी से कोई हर्जाना नहीं मांग रही है, बल्कि 2017 के मध्यस्थता आदेश के परिप्रेक्ष्य में, यहां एयरपोर्ट मेट्रो लाइन पर चलाने के लिए खरीदी गई ट्रेन की लागत वापस चाहती है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की एक विशेष पीठ ने डीएएमईपीएल के पक्ष में 8,000 करोड़ रुपये के मध्यस्थता आदेश के खिलाफ दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी) की सुधारात्मक याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
डीएमआरसी ने इस मामले में न्यायालय द्वारा अपनी पुनर्विचार याचिका खारिज किये जाने के खिलाफ सुधारात्मक याचिका दायर की है।
अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की प्रमुख कंपनी डीएएमईपीएल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और कपिल सिब्बल ने शीर्ष अदालत के फैसलों के खिलाफ डीएमआरसी की सुधारात्मक याचिका को ‘घात लगाकर किया गया मुकदमा’ करार दिया।
डीएमआरसी इस आधार पर मध्यस्थता आदेश के फैसले को चुनौती दे रहा है कि राष्ट्रीय राजधानी में एयरपोर्ट मेट्रो लाइन के संचालन से संबंधित रियायती समझौते को समाप्त करने के लिए डीएएमईपीएल की ओर से जारी आठ अक्टूबर 2012 का नोटिस ‘अवैध’ था।
डीएमआरसी की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी एवं वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने दलील दी कि सुधारात्मक याचिका विचार योग्य है और मध्यस्थता आदेश गलत है तथा इसे (आदेश को) बरकरार रखना ‘‘न्याय न होने’’ के समान होगा।
साल्वे ने इससे पहले, रिलायंस फर्म की ओर से अपनी दलीलें रखीं और कहा, “मैं उन पर (डीएमआरसी पर) नुकसान के लिए मुकदमा नहीं कर रहा हूं। मैं हर्जाने के तौर पर एक रुपये की भी मांग नहीं कर रहा हूं। मैं ट्रेन की लागत मांग रहा हूं।’’
साल्वे ने अपनी दलीलें पूरी करते हुए कहा, ‘‘उनके (डीएमआरसी के) पास ट्रेन हैं। उन्हें ट्रेन के लिए भुगतान करना होगा तथा यह (मध्यस्थ) फैसला ट्रेन की कीमतों से संबंधित है। ठीक है, अगर रकम बढ़ गई है तो मध्यस्थता कानून इसी तरह लागू होता है।’’
उन्होंने एयरपोर्ट मेट्रो लाइन में कुछ संरचनात्मक कमियों का भी जिक्र किया और कहा कि किसी भी अप्रिय घटना के मामले में, फर्म को उत्तरदायी ठहराया जाएगा और कभी-कभी, दायित्व आपराधिक भी हो सकता है।
सिब्बल भी रिलायंस कंपनी की ओर से पेश हुए। उन्होंने न्यायिक सिद्धांतों और सुधारात्मक याचिका से संबंधित कानून पर चर्चा की और कहा कि डीएमआरसी की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
सिब्बल ने कहा, ‘‘सुधारात्मक याचिका का निर्धारण हर मामले के तथ्यों के आधार पर नहीं किया जा सकता। यदि घोषित तथ्यों के आधार पर इस प्रकार की याचिकाओं को अनुमति दी जाती है तो इससे भानुमती का पिटारा खुल जाएगा’’
भाषा सुरेश अविनाश
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