ऑनलाइन कक्षाओं से छात्रों के बीच डिजिटल खाई गहरी हुई

ऑनलाइन कक्षाओं से छात्रों के बीच डिजिटल खाई गहरी हुई

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  • Publish Date - November 17, 2020 / 11:06 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:46 PM IST

(माणिक गुप्ता और तृषा मुखर्जी)

नयी दिल्ली, 17 नवंबर (भाषा) एक स्मार्ट फोन, तीन भाई-बहन, नतीजा कोई ऑनलाइन क्लास नहीं। यह कड़वी सच्चाई है मोहित अहिरवार की। वह एक श्रमिक का बेटा है, लेकिन यह हकीकत सिर्फ मोहित के अकेले की नहीं बल्कि ‘डिजिटल विभाजन’ के शिकार लाखों बच्चों की है।

आसान शब्दों में कहें तो डिजिटल विभाजन वास्तव में उन लोगों के बीच का अंतर है जिनके पास ऑनलाइन कक्षाएं लेने के लिये इंटरनेट कनेक्शन के साथ डिजिटल उपकरण हैं और जिनके पास डिजिटल उपकरण नहीं हैं। यह प्राथमिक कक्षाओं से लेकर परास्नातक स्तर पर है और यह खाई इतनी चौड़ी हो चुकी है कि दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज (एलएसआर) की छात्रा एश्वर्या रेड्डी ने इस महीने हैदराबाद स्थित अपने घर पर खुदकुशी कर ली क्योंकि उसके माता-पिता एक लैपटॉप या स्मार्टफोन का खर्चा नहीं उठा सकते थे।

एश्वर्या के पिता जी श्रीनिवास रेड्डी ऑटो ठीक करने वाले मिस्त्री का काम करते हैं और उन्होंने अपनी छोटी बेटी की पढ़ाई इस लिये छुड़वा दी ताकि एश्वर्या दिल्ली के प्रतिष्ठित कॉलेज में जा सके। रेड्डी ने कहा कि उसे ऑनलाइन कक्षाओं के लिये डिजिटल उपकरण की आवश्यकता थी और मदद के पहुंची भी थी। उन्होंने कहा, लेकिन फीस और छात्रवृत्ति समेत चिंताएं बढ़ गई थीं और दो नवंबर को वह घर में फंदे से लटकती पाई गई।

इस समस्या के बढ़ते दायरे ने लोगों का ध्यान खींचा है, जम्मू में एक सरकारी विद्यालय में पढ़ने वाले कक्षा 10 के छात्र 16 वर्षीय अहिरवार को समझ नहीं आ रहा कि वह इससे कैसे उबरेगा। उसे ‘डिजिटल विभाजन’ जैसे शब्द की जानकारी नहीं है लेकिन वह गणित में अच्छा है और हताशाभरी स्थिति को कमतर करने के लिये उसकी अपनी गणनाएं हैं।

उसने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “एक स्मार्टफोन, तीन भाई-बहन यानि शून्य ऑनलाइन कक्षा। मेरे पिता श्रमिक हैं। हमारे यहां एक स्मार्टफोन हैं जो काम पर जाते समय वह अपने साथ ले जाते हैं। इसलिये मेरी 12 वर्षीय बहन और मैं ऑनलाइन कक्षा में शामिल नहीं हो पाते। मेरा भाई इन सब की वजह से पहले ही स्कूल छोड़ चुका है और अब बढ़ई का काम सीख रहा है।”

अहिरवार ने कहा, “मैंने अपने पिता से कहा कि क्या हमारे लिये एक स्मार्टफोन की व्यवस्था कर सकते हैं, उन्होंने कहा है कि वह कोशिश करेंगे।”

अपनी उम्र से कहीं ज्यादा परिपक्वता दिखाते हुए अहिरवार ने कहा कि उसके पिता महीने का 15-20 हजार रुपया कमाते हैं, जो बमुश्किल से जरूरतें पूरी करने के काम आता है- निश्चित रूप से कोई उपकरण नहीं खरीद सकते।

उपकरण की कमी ही डिजिटल कक्षाओं की राह में एक बाधा नहीं है। इंटरनेट की धीमी गति भी एक बाधा है।

उसकी तरह, कई छात्र महामारी के इस दौर में पढ़ाई से जुड़ी चुनौतियों से जूझ रहे हैं। महामारी की वजह से मार्च से ही देशभर में स्कूल और कॉलेजों में ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है।

भाई-बहनों और माता-पिता से ‘उपकरण पर समय बिताने’ के लिये प्रतिस्पर्धा के साथ ही छात्रों को इंटरनेट के खराब कनेक्शन से भी जूझना होता है खास तौर पर जम्मू-कश्मीर में जहां 4जी प्रतिबंधित है और सुदूरवर्ती इलाकों में अक्सर होने वाली बिजली कटौती भी गुणवत्तायुक्त शिक्षा की राह में आने वाली कई बाधाओं में से एक है।

एक बात बिल्कुल स्पष्ट है: भारत में ऑनलाइन शिक्षा एक ‘लग्जरी’ है जिसे सभी लोग वहन नहीं कर सकते।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की 2017-2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में 10 घरों में से सिर्फ एक में कंप्यूटर, डेस्कटॉप, लैपटॉप या टेबलेट है। रिपोर्ट के मुताबिक इसके अलावा सिर्फ 23.8 प्रतिशत घरों में इंटरनेट कनेक्शन है और देश के 35 करोड़ छात्रों में से सिर्फ 12.5 प्रतिशत की पहुंच स्मार्टफोन तक है।

एलएसआर द्वारा किये गए डिजिटल सर्वेक्षण में पाया गया कि उसके करीब 30 प्रतिशत छात्राओं के पास अपना लैपटॉप नहीं है और 40 प्रतिशत ने कहा कि वे बिना समुचित इंटरनेट कनेक्शन के ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल हो रही हैं। सर्वेक्षण में शामिल 95 प्रतिशत से ज्यादा छात्राओं ने कहा कि ऑनलाइन कक्षाओं से उनका मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है। इस सर्वेक्षण में कॉलेज की 2000 छात्राओं में से 1450 ने अपनी प्रतिक्रियाएं भेजी थीं।

इस सर्वेक्षण में शामिल होकर ऑनलाइन कक्षाओं पर चिंता जाहिर करने वाली छात्राओं में से एक एश्वर्या रेड्डी भी थी।

इंटरनेट की उपलब्धता ने इस खाई को और चौड़ा कर दिया है। शिक्षा पर 2017-18 की राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 24 प्रतिशत भारतीय घरों में इंटरनेट की सुविधा है। भारत की 66 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है और इंटरनेट कनेक्शन वाले ग्रामीण घरों की संख्या 15 प्रतिशत से थोड़ी ज्यादा है जबकि इंटरनेट सुविधा वाले शहरी घरों की संख्या की बात करें तो यह करीब 42 प्रतिशत है।

कक्षा 10 और कक्षा 12 के विद्यार्थियों के लिये स्थिति और विकट है। गवर्नमेंट स्कूल टीचर्स असोसिएशन (जीएसटीए), दिल्ली के जिला सचिव (पश्चिम ए) संत राम कहते हैं कि इन विद्यार्थियों की समूची शिक्षण सामग्री सिर्फ ऑनलाइन उपलब्ध है और उन्हें इसके लिये प्रति घंटे एक जीबी डाटा की जरूरत है जो बेहद मुश्किल है।

एक गैर सरकारी संगठन ‘सेव द चिल्ड्रन’ के एक सर्वेक्षण में खुलासा हुआ कि 62 प्रतिशत भारतीय घरों में बच्चों ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान पढ़ाई छोड़ दी। उसने सात जून से 30 जून के बीच देश के 15 राज्यों में 7,235 परिवारों का सर्वेक्षण किया था।

भाषा

प्रशांत नरेश

नरेश