नयी दिल्ली, 19 दिसंबर (भाषा) हाल के महीनों में अमेरिका से अवैध भारतीय प्रवासियों को भारत वापस भेजे जाने और भविष्य में संभावित बड़े पैमाने पर निर्वासन का संज्ञान लेते हुए एक संसदीय समिति ने सरकार से ऐसी स्थिति से “अधिक सहानुभूतिपूर्ण” तरीके से निपटने का आग्रह किया है।
विदेश मंत्रालय ने अपने जवाब में समिति को बताया है कि उसने इस सिफारिश का संज्ञान लिया है।
‘ एनआरआई, पीआईओ, ओसीआई और प्रवासी श्रमिकों सहित भारतीय प्रवासी समुदाय : उनकी स्थिति और कल्याण के सभी पहलू, तथा प्रवासन विधेयक की स्थिति’ विषय पर संसदीय समिति की छठी रिपोर्ट में की गई टिप्पणियों और सिफारिशों पर सरकार द्वारा की गई कार्रवाई से संबंधित यह रिपोर्ट बृहस्पतिवार को संसद के दोनों सदनों में पेश की गई।
विदेश मामलों की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष कांग्रेस नेता शशि थरूर हैं।
रिपोर्ट में समिति ने कहा, “अमेरिका से अवैध भारतीय प्रवासियों के निर्वासन और भविष्य में संभावित सामूहिक निर्वासन की पृष्ठभूमि में, समिति ने इस मुद्दे से जुड़े मानवीय सरोकारों पर स्पष्ट शब्दों में अपनी भावनाएं व्यक्त की थीं।”
समिति को बताया गया कि चूंकि भारत अवैध आव्रजन के खिलाफ है, इसलिए अन्य देशों में अवैध रूप से रह रहे अपने नागरिकों को वापस लेने के लिए वह प्रतिबद्ध है।
यह भी समिति को बताया गया कि अधिकतर देशों में निर्वासन से जुड़े मामलों से निपटने के लिए आवश्यक मानक संचालन प्रक्रियाएं (एसओपी) मौजूद हैं और उसी के अनुरूप विदेश मंत्रालय ने भी एसओपी बनाया है, जिसके तहत अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय कर नागरिकता और सुरक्षा सत्यापन की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
अमेरिकी वायुसेना की उड़ानों के दौरान निर्वासित लोगों को हथकड़ी, कमर में जंजीर और पैरों में बेड़ियां लगाए जाने को लेकर समिति की चिंताओं पर प्रतिक्रिया देते हुए बताया गया कि अमेरिका की यह कार्रवाई ‘रेस्ट्रेंट्स पॉलिसी नंबर 11155.1’ की धारा 5.10 के तहत थी, जो 19 नवंबर 2012 से प्रभावी है।
समिति को यह भी बताया गया कि विदेश मंत्रालय के बार-बार किए गए अनुरोधों का सम्मान करते हुए, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को बेड़ियां न पहनाने के संबंध में, 15 फरवरी की दूसरी निर्वासन उड़ान में अमेरिकी आव्रजन एवं सीमाशुल्क प्रवर्तन ने महिलाओं और बच्चों को बेड़ियां नहीं पहनाईं।
हालांकि, समिति का यह भी मानना था कि बिना वैध दस्तावेजों के किसी देश में प्रवेश करने और रहने वाले अपने नागरिकों को वापस लेना किसी भी सरकार की अनिवार्य जिम्मेदारी है, लेकिन समिति चाहती है कि सरकार मानवाधिकारों का सम्मान करते हुए अधिक सहानुभूतिपूर्ण तरीके से स्थिति से निपटे और ऐसे अवैध प्रवासियों के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाए बिना, उनकी भारत वापसी को सुगम बनाने के उपाय तलाशे।
केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा कि जो विदेशी नागरिक अमेरिका में अवैध रूप से प्रवेश करते हैं, वीजा अवधि से अधिक समय तक रहते हैं, बिना वैध दस्तावेजों के पाए जाते हैं या जिनको अपराध साबित होने पर दोषी ठहराया गया है, उन्हें निर्वासित किए जाने की संभावना रहती है।
सरकार ने कहा, “यह सभी देशों का दायित्व है कि यदि उनके नागरिक विदेशों में अवैध रूप से रहते पाए जाते हैं तो वे उन्हें वापस लें। हालांकि, यह उनकी नागरिकता के स्पष्ट सत्यापन पर निर्भर करता है। यह केवल भारत द्वारा अपनाई जाने वाली नीति नहीं है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में यह एक सामान्य रूप से स्वीकार किया गया सिद्धांत है।”
समिति ने सरकार से राज्यों के अनुभव और विशेषज्ञता को शामिल करते हुए विशेष और विस्तृत “पुनःएकीकरण कार्यक्रम” तैयार करने की भी सिफारिश की है, ताकि विदेश से लौटने वाले कामगारों का समाज में पुनर्वास किया जा सके।
सरकार ने समिति को बताया कि उसने इस सिफारिश का संज्ञान लिया है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि लौटे हुए भारतीय प्रवासियों के पुनःएकीकरण की जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों की है, न कि केंद्र सरकार की।
संसदीय समिति ने उन संदिग्ध कंपनियों के मामलों का भी उल्लेख किया, जो सोशल मीडिया के माध्यम से फर्जी भर्ती और नौकरी के प्रस्तावों के जरिए भारतीय नागरिकों को लुभाती हैं और कंबोडिया, म्यांमा और लाओ पीडीआर सहित दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में उन्हें ले जाकर साइबर अपराध और अन्य धोखाधड़ी गतिविधियों के लिए बंधुआ मजदूर के रूप में उनका इस्तेमाल कर रही हैं।
समिति ने कहा कि हालांकि इन देशों में फंसे भारतीय नागरिकों की सटीक संख्या ज्ञात नहीं है, लेकिन समन्वित प्रयासों के जरिए अब तक कंबोडिया से 1,091, लाओस से 770 और म्यांमा से 497 भारतीय नागरिकों को बचाया गया है। इनमें सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि यह स्थिति पेशेवरों सहित नौकरी के इच्छुक भारतीयों की उन कमजोरियों को उजागर करती है, जिनका फायदा बेईमान एजेंट और बिचौलिए उठाते हैं।
समिति ने यह भी इच्छा जताई कि गंतव्य देशों में स्थित भारतीय दूतावास और वाणिज्य दूतावास ई-मेल या फोन कॉल के माध्यम से नियोक्ताओं की सत्यता की जांच में सहायता के लिए हमेशा उपलब्ध रहें।
केंद्र ने समिति को बताया कि कंबोडिया, म्यांमा और लाओ पीडीआर में फंसे भारतीय नागरिकों की सटीक संख्या ज्ञात नहीं है, क्योंकि कई भारतीय नागरिक धोखाधड़ी करने वाले भर्ती एजेंटों और अवैध माध्यमों से अपनी इच्छा से इन देशों में पहुंचते हैं।
पीआईओ (पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन) कार्ड को ओसीआई (ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया) कार्ड में बदलने के मुद्दे पर समिति ने कहा कि पीआईओ कार्ड योजना 2015 से बंद कर दी गई है और सभी पीआईओ कार्डधारकों (हस्तलिखित और मशीन-पठनीय) को 31 दिसंबर 2025 से पहले अपने कार्ड को ओसीआई कार्ड में परिवर्तित करने की सलाह दी गई है।
भाषा
मनीषा माधव
माधव