Physical relationship with consent is not rape ; नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने कहा है कि जब कोई महिला शारीरिक संबंध बनाने के लिए तर्कसंगत विकल्प चुनती है, तो सहमति को गलत धारणा पर आधारित नहीं कहा जा सकता, जब तक कि शादी के झूठे वादे का साफ सबूत न हो। दरअसल, जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने यह बात एक व्यक्ति के खिलाफ रेप के मामले को रद्द करते हुए कही है। यह देखते हुए कि मामला उसके और महिला के बीच सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझ गया है और उन्होंने अब एक-दूसरे से शादी कर ली है।
कोर्ट ने कहा कि जब भी कोई महिला परिणामों को पूरी तरह से समझने के बाद शारीरिक संबंध बनाने का तर्कसंगत विकल्प चुनती है, तो ‘सहमति’ को तथ्य की गलत धारणा पर आधारित नहीं कहा जा सकता है, जब तक कि कोई स्पष्ट सबूत न हो।
Physical relationship with consent is not rape बता दें कि महिला ने उस व्यक्ति के खिलाफ रेप का केस दर्ज कराया था और आरोप लगाया था कि उसने शादी के बहाने उसके साथ बार-बार शारीरिक संबंध बनाए लेकिन बाद में यह कहते हुए शादी करने से इनकार कर दिया कि उसके परिवार ने उसकी शादी किसी और के साथ तय कर दी है। बाद में अदालत को बताया गया कि उस व्यक्ति और शिकायतकर्ता ने अपना विवाद सुलझा लिया और कोर्ट में शादी कर ली।
शिकायतकर्ता ने हाई कोर्ट को बताया कि वह उस आदमी के साथ खुशी से रह रही है और वह FIR के साथ आगे बढ़ना नहीं चाहती थी, जो “गलत धारणा” के तहत दर्ज की गई थी क्योंकि आरोपी अपने परिवार के विरोध के कारण शादी नहीं करना चाह रहा था।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता (पुरुष) और प्रतिवादी नंबर 2 (महिला) के बीच संबंधों के रवैये को देखते हुए, ऐसा नहीं लगता है कि ऐसा कोई भी कथित वादा बुरे विश्वास में या महिला को धोखा देने के लिए था। इसमें कहा गया है कि जब जांच चल रही थी, तब पुरुष ने खुद महिला से शादी की थी और इसलिए यह नहीं माना जा सकता है कि उसने शुरू में जो वादा किया था, उसे पूरा न करने के इरादे से किया था।